ज्ञानचंद मर्मज्ञ

मेरे बारे में

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Bangalore, Karnataka, India
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
!! श्री गणेशाय नमः !!

" शब्द साधक मंच " पर आपका स्वागत है
मेरी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

- ज्ञान चंद मर्मज्ञ

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सोमवार, 29 नवंबर 2010

आतंकवाद

आज अपनी काव्यकृति "मिट्टी की पलकें" से आतंकवाद पर कुछ मुक्तक लेकर आपके बीच उपस्थित हुआ हूँ ! आशा है पूर्व की भांति आप अपने स्नेह-पूरित विचारों से अनुग्रहीत करेंगे !

                                           आतंकवाद

          तेज   नाख़ून  से   वार  करते,
          ख़ून  से ये बहुत प्यार  करते !
          पास इनके कफ़न लेके  जाना,
          ये तो लाशों का व्यापार करते !

                         चीख़   से ये शहर भर गया है,
                         कोई  बहरा  इन्हें कर गया है !
                         क़त्ल  इतने  हुए  हैं  यहाँ पर,
                         दर्द  भी  दर्द  से  मर गया है !

          मौत का साज़ो-सामान लेकर ,
          ख़ौफ गलियों में रहने लगा है!
          देखकर  इतना  बेदर्द   मंज़र,
          ख़ून  आँखों  से बहने लगा है !

                         उस गली से कभी न गुज़रना,
                         लोग  ज़िंदा  जलाये  गए  हैं !
                         बच गईं  चंद पत्थर की आँखें ,
                         जिनमें  सावन छुपाये गए हैं !

          कोई   पहचान  इनकी  बताओ ,
          नोचकर  अंग   खाए   गए   हैं !
          हाथ   के  ज़ख्म  में चूड़ियों के,
          चंद   टुकड़े   भी   पाए  गए  हैं !

                        .......... अगले अंकों में जारी  
                                             -ज्ञानचंद मर्मज्ञ
                 

35 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आक्रोश की आग में प्रतीक्षा.....

M VERMA ने कहा…

दर्द भी दर्द से मर गया है !
दर्द हद से बढ़ता है तो दर्द नहीं रहता ... शायद
सुन्दर

Kunwar Kusumesh ने कहा…

कोई पहचान इनकी बताओ ,
नोचकर अंग खाए गए हैं !
हाथ के ज़ख्म में चूड़ियों के,
चंद टुकड़े भी पाए गए हैं !

आपकी उक्त पंक्तिया बहुत कुछ कह रही है. सुन्दर लेखन

Asha Joglekar ने कहा…

खौफ इतना है कि आँख से आँसू नही खून । पूरी कविता आज के हालातों को बयाँ कर रही है ।

करण समस्तीपुरी ने कहा…

दर्द भी दर्द से मर गया है.... ! ज्ञानजी के श्रीमुख से यह ग़ज़ल सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है मुझे.... इसीलिये शेष अशआर का बेसब्री से इंतिजार कर रहा हूँ. धन्यवाद !

बेनामी ने कहा…

ज्ञानचंद जी,


बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति है आपकी रौंगटें खड़े कर देने वाली......बहुत नंगा सच बयां किया है आपने इस पोस्ट के माध्यम से.....शुभकामनायें|

POOJA... ने कहा…

बहुत खूब और पूरा सच...
एक-एक पंक्ति सत्य एवं आक्रोश से भरी हुई थी... बधाई...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बेहतरीन रचना ... सच ही है कि अब हिंसा देखते दखते सब संवेदनहीन हो चुके हैं और डरे सहमे लोगों पर और कहर ढा रहे हैं आतंकवादी ..

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आपका लेखन सोचने को विवश करता है...बहुत असरदार तरीके से आपने अपने भाव व्यक्त किये हैं ...मेरी बधाई स्वीकार करें...


नीरज

Apanatva ने कहा…

naam ko sarthak karta lekhan intzar hai agalee post ka.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मौत का साज़ो-सामान लेकर ,
ख़ौफ गलियों में रहने लगा है!
देखकर इतना बेदर्द मंज़र,
ख़ून आँखों से बहने लगा है !
बहुत ही प्रभावी पंक्तियाँ हैं.... सच यही हाल है.... आभार एक संवेदनशील रचना के लिए

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

bahut acchi rechna....bdhayi....

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

आज पहली बार आप के ब्लॉग पर आई हूं और बहुत उम्दा लेखन से रू ब रू हुई हूं ,सुंदर मुक्तक ,उम्दा ग़ज़ल ,यहां तो साहित्यि का ख़ज़ाना है
बधाई

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

कविता भावुक कराती हैं पर तस्वीरें विचलित!!कृपया इनसे परहेज़ करें!!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

सभी पाठकों और शुभचिंतकों को मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय ज्ञानचंद जी,
नमस्कार !
बहुत खूब और पूरा सच
.....बेहतरीन रचना ..

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar ने कहा…

मर्मज्ञ जी,
ये मुक्तक...अपने समय और समाज की एक बदनुमा सच्चाई से रू-ब-रू हैं...! यक़ीनन, लिखते समय आपके दिलो-दिमाग़ में आतंकवाद को लेकर काफी हलचल रही होगी...वही टपक पड़ी कग़ज़ पर...और मुक्तक बन गयी...ख़ुद-ब-ख़ुद...है न?

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar ने कहा…

विज्ञप्ति०
‘मुक्तक विशेषांक’ हेतु रचनाएँ आमंत्रित-
देश की चर्चित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक त्रैमासिक पत्रिका ‘सरस्वती सुमन’ का आगामी एक अंक ‘मुक्‍तक विशेषांक’ होगा जिसके अतिथि संपादक होंगे सुपरिचित कवि जितेन्द्र ‘जौहर’। उक्‍त विशेषांक हेतु आपके विविधवर्णी (सामाजिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, शैक्षिक, देशभक्ति, पर्व-त्योहार, पर्यावरण, श्रृंगार, हास्य-व्यंग्य, आदि अन्यानेक विषयों/ भावों) पर केन्द्रित मुक्‍तक/रुबाई/कत्अ एवं तद्‌विषयक सारगर्भित एवं तथ्यपूर्ण आलेख सादर आमंत्रित हैं।

इस संग्रह का हिस्सा बनने के लिए न्यूनतम 10-12 और अधिकतम 20-22 मुक्‍तक भेजे जा सकते हैं।

लेखकों-कवियों के साथ ही, सुधी-शोधी पाठकगण भी ज्ञात / अज्ञात / सुज्ञात लेखकों के चर्चित अथवा भूले-बिसरे मुक्‍तक/रुबाइयात/कत्‌आत भेजकर ‘सरस्वती सुमन’ के इस दस्तावेजी ‘विशेषांक’ में सहभागी बन सकते हैं। प्रेषक का नाम ‘प्रस्तुतकर्ता’ के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। प्रेषक अपना पूरा नाम व पता (फोन नं. सहित) अवश्य लिखें।

इस विशेषांक में एक विशेष स्तम्भ ‘अनिवासी भारतीयों के मुक्तक’ (यदि उसके लिए स्तरीय सामग्री यथासमय मिल सकी) भी प्रकाशित करने की योजना है।

भावी शोधार्थियों की सुविधा के लिए मुक्तक संग्रहों की संक्षिप्त समीक्षा सहित संदर्भ-सूची तैयार करने का कार्य भी प्रगति पर है।इसमें शामिल होने के लिए कविगण अपने प्रकाशित मुक्तक/रुबाई के संग्रह की प्रति प्रेषित करें! प्रति के साथ समीक्षा भी भेजी जा सकती है।

प्रेषित सामग्री के साथ फोटो एवं परिचय भी संलग्न करें। समस्त सामग्री केवल डाक या कुरियर द्वारा (ई-मेल से नहीं) निम्न पते पर अति शीघ्र भेजें-

जितेन्द्र ‘जौहर’
(अतिथि संपादक ‘सरस्वती सुमन’)
IR-13/6, रेणुसागर,
सोनभद्र (उ.प्र.) 231218.
मोबा. # : +91 9450320472
ईमेल का पता : jjauharpoet@gmail.com
यहाँ भी मौजूद : jitendrajauhar.blogspot.com

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

भयावह।

निर्मला कपिला ने कहा…

मौत का साज़ो-सामान लेकर ,
ख़ौफ गलियों में रहने लगा है!
देखकर इतना बेदर्द मंज़र,
ख़ून आँखों से बहने लगा है !
सही कहा आज के हालात देख कर बहुत दुख होता है लेकिन शायद हम सब बेबस हैऔर झेलने के आदी हो गयी हैं। धन्यवाद।

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy ने कहा…

मर्मज्ञ जी आपकी इस दर्द एवं आक्रोश युक्त रचना का प्रभाव चित्रों के बिना भी पूर्णतया उजागर हो रहा है. अतः मेरा अनुरोध है कि आप इन विचलित करने वाले चित्रों को हटा लें तो शायद अधिक अच्छा लगेगा.

मनोज कुमार ने कहा…

हृदय विदारक दृश्य प्रस्तुत कर दिया है आपने।
मार्मिक।

ASHOK BAJAJ ने कहा…

बेहतरीन रचना की प्रस्तुति .

डॉ टी एस दराल ने कहा…

हाथ के ज़ख्म में चूड़ियों के, चंद टुकड़े भी पाए गए हैं !

ओह ! कितना दर्द छुपा है इन पंक्तियों में ।
कौन्सियस को झझकोरती रचना ।

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

हाथ के ज़ख्म में चूड़ियों के,
चंद टुकड़े भी पाए गए हैं !
....मार्मिक, हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं। सुंदर रचना के लिए साधुवाद ढ़ेर सारी बधाईयाँ।

अनुपमा पाठक ने कहा…

सत्य उद्घाटित करती रचना!

सूबेदार ने कहा…

bahut marmik

सूबेदार ने कहा…

bahut marmik

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

bahut dardbhair par khoobsurat rachna!

केवल राम ने कहा…

तेज नाख़ून से वार करते,
ख़ून से ये बहुत प्यार करते !
पास इनके कफ़न लेके जाना,
ये तो लाशों का व्यापार करते !
अब इससे आगे क्या कहें ...बहुत संजीदा रचना
चलते -चलते पर आपका स्वागत है

प्रेम सरोवर ने कहा…

Hanth ke jakhm mein chudiyon ke,
chand tukre bhi paye gaye hain.Marmsparshi post.Mera dusara sasamaran aapke injaar mein hai.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

उस गली से कभी न गुज़रना,
लोग ज़िंदा जलाये गए हैं !
बच गईं चंद पत्थर की आँखें ,
जिनमें सावन छुपाये गए हैं ...

बहुत कुछ शब्दों के माध्यम से कह दिया है आपने ... शोले से निकल रहे हैं जैसे दिल से ....
लाजवाब ज्ञान जी ... बेहतरीन रचना ..

Archana writes ने कहा…

aaj hi varanasi me visphot ki news padi...aur aaj hi aapki kavita padi...satik chitran...

रंजना ने कहा…

क्या कहूँ.....प्रशंसा को शब्द नहीं मेरे पास...

अति प्रभावशाली लेखनी !!!

इस अप्रतिम लेखनी को नमन !!!!!

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

उस गली से कभी न गुज़रना,
लोग ज़िंदा जलाये गए हैं !
बच गईं चंद पत्थर की आँखें ,
जिनमें सावन छुपाये गए हैं ...
ज्ञानचंद जी,नमस्कार.एक संवेदनशील प्रस्तुति.सुन्दर लेखन................