" मौत " भाग -४
" फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा "
किसने चौखट पे दस्तक लगाई ,
किसने दरवाज़ा यूँ खटखटाया !
सुन के जो भी गया खोलने को ,
लौट कर वो कभी भी न आया !
फिर सितारों की बारात होगी,
फिर किसी को सजाना पड़ेगा!
यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा!
रो रहा आज इतिहास कल का,
वक़्त पर झुर्रियाँ पड़ गयी हैं !
कल सलीबें उठाई गयी थीं,
आज कीलें भी तो गड़ गयी हैं!
हम नहीं,तुम नहीं, वो न होंगे ,
वक्त फिर भी गुज़रता रहेगा !
ज़ख्म यूँ ही सँवरते रहेंगे ,
दर्द यूँ ही तड़पता रहेगा !
-अगले अंकों में जारी
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ