ग़ज़ल
किस डगर हम इधर आ गए
उलझनों के शहर आ गए
अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए
क़त्ल की रात ढलने को थी
भीड़ को हम नज़र आ गए
लूट लेते हैं ख़ुद मंज़िलें
कौन से राहबर आ गए
ज़िन्दगी का सफ़र यूँ लगे
बस उधर से इधर आ गए
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
- ज्ञान चंद मर्मज्ञ