कविता ,गीत और ग़ज़ल के बाद आज मै आप सबके बीच कुछ मुक्तक लेकर उपस्थित हुआ हूँ ! आशा है आप पूर्व की भाँति अपनी सार्थक टिप्पणियों द्वारा मुझे अनुग्रहीत करेंगे !
मुक्तक
१. ये अंधेरों का शहर है दीप आ तुझको जला दूँ ,
धुन्ध सा वीरान घर है दीप आ तुझको जला दूँ ,
कौन से तूफ़ान की क़ीमत चुकानी है तुझे ,
रोशनी तो बेख़बर है दीप आ तुझको जला दूँ !
२.
हर सुबह को साँझ में ढलते हुए देखा गया है ,
पत्थरों को बर्फ सा गलते हुए देखा गया है ,
राम तो वनवास जाते अब नहीं दिखते कभी ,
पर सिया को आज भी जलते हुए देखा गया है!
३.
टूट कर जो गिर गये, वो तारे कहाँ मिलते हैं,
नदी की उम्र तक किनारे कहाँ मिलते हैं,
ढूढने वालों बस एक बात याद रख लेना,
वक्त की राख में अंगारे कहाँ मिलते हैं!
४.
रोशनी दिये में पाई आग पाई राख में,
बादलों की साजिशें सावन ने पाई आँख में ,
रोशनी दिये में पाई आग पाई राख में,
बादलों की साजिशें सावन ने पाई आँख में ,
उम्र भर उड़ता रहा, उड़ता रहा, उड़ता रहा,
सब्र का आकाश पाया एक टूटी पाँख में!
37 टिप्पणियां:
टूट कर जो गिर गये, वो तारे कहाँ मिलते हैं, नदी की उम्र तक किनारे कहाँ मिलते हैं,
ढूढने वालों बस एक बात याद रख लेना,
वक्त की राख में अंगारे कहाँ मिलते हैं!
सच्चाई को वयां करती रचना , बधाई
सभी मुक्तक बेहतरीन हैं...लाजवाब..सभी एक से बढ़कर एक...
ये थोड़ी ज्यादा पसंद आई...
टूट कर जो गिर गये, वो तारे कहाँ मिलते हैं, नदी की उम्र तक किनारे कहाँ मिलते हैं,
ढूढने वालों बस एक बात याद रख लेना,
वक्त की राख में अंगारे कहाँ मिलते हैं
बहुत ही सुन्दर पंक्तिया लिखी है आपने .
शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर मुक्तक हैं ....तीनों ही उम्दा ..
बहुत ही सुन्दर कविता।
मर्मज्ञ जी, बेहतरीन मुक्तक! हर एक लाजवाब!!
पहला, यह कहानी है दिये की और तूफ़ान की. आपने दोहरा दी.
दूसरा, दिल को छूने वाला मुक्तक.
तीसरा, राख गुज़रे हुए लम्हों की कुरेदा न करो.
चौथा, जब मेरे हाथ में टूटा हुआ पर होता है, दुषयन्त याद आ गए!
मर्मज्ञ जी! एक बार और मेरी बधाई स्वेकार करें!!
achha hai..
pratipakshi.blogspot.com
बहुत सुन्दर , मन की पीड़ा बोल उठी है । अंगारे तो नहीं मिलते मगर चिन्गारी तो छुपाई है वक्त की इस राख ने ।
हर सुबह को साँझ में ढलते हुए देखा गया है
पत्थरों को बर्फ सा गलते हुए देखा गया है
राम तो वनवास जाते अब नहीं दिखते कभी
पर सिया को आज भी जलते हुए देखा गया है ..
बहुत ही लाजवाब .. सटीक ... बहुत ही सार्थक लिखा है ज्ञान जी .... आज के हालात पर सही तप्सरा है ..
वैसे तो सभी मुक्तक लाजवाब हैं,पर दूसरा वाला बहुत ख़ास लगा...
पढवाने के लिए आभार !!!
सभी मुक्तक लाजवाब्।
सभी मुक्तक बेहतरीन.....
गरिमामय,उत्साहवर्धक टिप्पणियों के लिए सभी सुधि पाठकों के प्रति कृतज्ञता पूर्वक आभार प्रकट करता हूँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
मुक्तक क्या हैं... अलग-अलग बेशकीमती मोतियों को जैसे प्रस्तुती के माले में पिरो दिया हो... ! बहुत सुंदार ! लाजवाब !!! मार्गदर्शक !!!! ज्ञानवर्धक !!!!!
राम तो वनवास जाते अब नहीं दिखते कभी
पर सिया को आज भी जलते हुए देखा गया है
बहुत अच्छे भाई मर्मज्ञ जी
सुंदर प्रेरणादायक मुक्तक
मर्म को जीते हुए सुन्दर मुक्तक!
“हर सुबह को साँझ में ढलते हुए देखा गया है,
पत्थरों को बर्फ सा गलते हुए देखा गया है,
राम तो वनवास जाते अब नहीं दिखते कभी,
पर सिया को आज भी जलते हुए देखा गया है!” मर्मज्ञ जी, आप शब्द साधक मंच के माध्यम से जिस कारीगरी से शब्दों के मर्म को समझते हुए काव्य सृजन करते हैं वह देखते ही बनता है. मुझे आपकी लिखी इन पंक्तियों ने बेहद प्रभावित किया है. इस सुन्दर कृति के लिए बहुत बहुत बधाई.
खलील जिब्रान पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया...आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ .....बहुत सुन्दर ब्लॉग है आपका...देर से आने की माफ़ी के साथ आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे|
आपके मुक्तक बहुत अच्छे लगे...दूसरा और तीसरा बहुत पसंद आया....ऐसे ही लिखते रहिये ...शुभकामनायें|
अति उत्तम. बेहद उम्दा. उम्दा. उम्दा. वाह.
शुक्रिया. जारी रहें.
---
कुछ ग़मों के दीये
करन जी, कुसुमेश जी,सुग्य जी, अनुपमा जी,अश्विनी जी,इमरान जी,अमित जी और मनोज जी ,
आप सबने अपने प्रेरणादायक विचारों से मेरा मनोबल बढाया इसके लिए आभार और धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सभी लाजवाब...
राम तो वनवास जाते अब नहीं दिखते कभी ,
पर सिया को आज भी जलते हुए देखा गया है!
क्या खूब...सच में , शायद सिया के भाग्य में सारी ज़िन्दगी जलना ही लिखा है...।
मेरी बधाई...।
... bahut sundar ... behatreen ... badhaai !!!
०विज्ञप्ति०
लेखकगण कृपया ध्यान दें-
देश की चर्चित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक त्रैमासिक पत्रिका ‘सरस्वती सुमन’ का आगामी एक अंक ‘मुक्तक विशेषांक’ होगा जिसके अतिथि संपादक होंगे सुपरिचित कवि जितेन्द्र ‘जौहर’। उक्त विशेषांक हेतु आपके विविधवर्णी (सामाजिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, शैक्षिक, देशभक्ति, पर्व-त्योहार, पर्यावरण, श्रृंगार, हास्य-व्यंग्य, आदि अन्यानेक विषयों/ भावों) पर केन्द्रित मुक्तक/रुबाई/कत्अ एवं तद्विषयक सारगर्भित एवं तथ्यपूर्ण आलेख सादर आमंत्रित हैं।
इस संग्रह का हिस्सा बनने के लिए न्यूनतम 10-12 और अधिकतम 20-22 मुक्तक भेजे जा सकते हैं।
लेखकों-कवियों के साथ ही, सुधी-शोधी पाठकगण भी ज्ञात / अज्ञात / सुज्ञात लेखकों के चर्चित अथवा भूले-बिसरे मुक्तक/रुबाइयात/कत्आत भेजकर ‘सरस्वती सुमन’ के इस दस्तावेजी ‘विशेषांक’ में सहभागी बन सकते हैं। प्रेषक का नाम ‘प्रस्तोता’ के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। प्रेषक अपना पूरा नाम व पता (फोन नं. सहित) अवश्य लिखें।
प्रेषित सामग्री के साथ फोटो एवं परिचय भी संलग्न करें। समस्त सामग्री केवल डाक या कुरियर द्वारा (ई-मेल से नहीं) निम्न पते पर अति शीघ्र भेजें-
जितेन्द्र ‘जौहर’
(अतिथि संपादक ‘सरस्वती सुमन’)
IR-13/6, रेणुसागर,
सोनभद्र (उ.प्र.) 231218.
मोबा. # : +91 9450320472
ईमेल का पता : jjauharpoet@gmail.com
यहाँ भी मौजूद : jitendrajauhar.blogspot.com
मर्मज्ञ जी,
उक्त सूचना के संदर्भ में आपके मुक्तक आमंत्रित हैं।
मुक्तक-संग्रहों की संदर्भ-सूची एवं उन पर संक्षिप्त समीक्षा भी प्रकाशित करने की योजना है...इस दिशा में आप एवं सभी लेखक बंधुओं का सहयोग अपेक्षित है।
कृपया इसके लिए मित्रों को भी सूचित करने का आग्रह स्वीकारें...तथास्तु!
आपके जो मुक्तक यहाँ पोस्टेड हैं...बहुत ही प्यारे हैं...बधाई!
रोशनी दिये में पाई आग पाई राख में,
बादलों की साजिशें सावन ने पाई आँख में , उम्र भर उड़ता रहा, उड़ता रहा, उड़ता रहा, सब्र का आकाश पाया एक टूटी पाँख में!
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ बहुत अच्छा लगा क्या कहूँ हर एक मुक्तक बेहतरीन हैं और सच सामने रख रहा है
सुन्दर पंक्तिया लिखी है आपने .....
शुभकामनाएं !!!
पूजा जी,प्रियंका जी,उदय जी,जितेन्द्र जी,रचना जी,और डा.हरदीप जी,
प्रोत्साहित करने के लिए धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
वाह ग्यान जी क्या पुस्तक डाक से भेज सकेंगे
नेटकास्टिंग:प्रयोग
लाईव-नेटकास्टिंग
Editorials
राम तो वनवास जाते अब नहीं दिखते कभी ,
पर सिया को आज भी जलते हुए देखा गया है!
टूट कर जो गिर गये, वो तारे कहाँ मिलते हैं
नदी की उम्र तक किनारे कहाँ मिलते हैं,
ढूढने वालों बस एक बात याद रख लेना,
वक्त की राख में अंगारे कहाँ मिलते हैं!
वाह समझ नही आ रहा कि किस किस पँक्ति की तारीफ करूँ। बेहतरीन मुकतक हैं। बधाई।पुस्तक प्रकाशन की भी बधाई।
यूँ तो सभी मुक्तक बेहतरीन हैं......पर ये ज्यादा पसंद आया ....
हर सुबह को साँझ में ढलते हुए देखा गया है ,
पत्थरों को बर्फ सा गलते हुए देखा गया है ,
राम तो वनवास जाते अब नहीं दिखते कभी ,
पर सिया को आज भी जलते हुए देखा गया है!
रोशनी दिये में पाई आग पाई राख में,
बादलों की साजिशें सावन ने पाई आँख में ,
उम्र भर उड़ता रहा, उड़ता रहा, उड़ता रहा,
सब्र का आकाश पाया एक टूटी पाँख में!
'सरस्वती-सुमन' का अगला अंक मुक्तक विशेषांक निकल रहा है ....जिसके अतिथि संपादक जितेन्द्र जौहर जी होंगे ....आप भी अपने मुक्तक भेजिएगा .....!!
bahut hi sateek avam jindgi ki sachchaiyo se avgat karvaati aapki ye silsile vaar muktak bhaut bhaut hi achhilagi.
रोशनी दिये में पाई आग पाई राख में,
बादलों की साजिशें सावन ने पाई आँख में ,
उम्र भर उड़ता रहा, उड़ता रहा, उड़ता रहा,
सब्र का आकाश पाया एक टूटी पाँख
में!
dhanyvaad sahit----------poonam
गिरीश जी,निर्मला जी,हरकीरत जी,पूनम जी,
मुझे उत्साहित कर मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आप सभी का आभार !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सुन्दर कृति
शानदार और खूबसूरत मुक्तकें
आप ke muktak bahut achhe lage . कल मैं यह लिंक चर्चामंच पर रखूंगी .. आपका आभार .. http://charchamanch.blogspot.com .. on dated 17-12-2010..आप वह भी आ कर अपने विचार दें
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