ज्ञानचंद मर्मज्ञ

मेरे बारे में

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Bangalore, Karnataka, India
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
!! श्री गणेशाय नमः !!

" शब्द साधक मंच " पर आपका स्वागत है
मेरी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

- ज्ञान चंद मर्मज्ञ

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गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

ज़िन्दगी है मुस्कराने के लिए




       ज़िन्दगी  है  मुस्कराने  के  लिए 
       मुश्किलों  को  आज़माने के लिए 

                      वक़्त की क़ीमत समझ पाया न जो 
                      रह  गया   आँसू   बहाने   के  लिए 

       दो  तरह  की  बात  होती है यहाँ 
       एक  बताने  एक छुपाने के लिए 

                       जो चले  थे इन्कलाबों की डगर  
                       वो  खड़े  हैं  सर झुकाने के लिए 

       इन  अँधेरों  के  शहर  में आदमी
       जल रहा है झिलमिलाने के लिए 

                      ख्वाहिशों के रत्न सारे बिक गए 
                      सब्र की क़ीमत चुकाने  के लिए 

       तौलते  हैं  लोग  रिश्तों  को यहाँ 
       कुछ  घटाने  कुछ बढ़ाने के लिए

                     रेत  की  दीवार  सारी  ढह  गयी
                     हम  चले  थे घर बनाने के लिए  

       राजपथ  पर  इत्र  छिड़के जायेंगे 
       उम्र  ख़ुशबू  की  बढ़ाने  के  लिए

                    ख़ून में लथपथ परिंदा गिर पड़ा 
                    देश  की  हालत  सुनाने के लिए                      

       कुछ तो  ऐसे गीत लिखते जाइए 
       काम  आयें  गुनगुनाने  के  लिए 

                    जान से प्यारी  थीं जिनको बेटियाँ 
                    चल  दिए  बहुएँ  जलाने  के  लिए 

                                                         -ज्ञानचंद मर्मज्ञ