ज़िन्दगी है मुस्कराने के लिए
मुश्किलों को आज़माने के लिए
वक़्त की क़ीमत समझ पाया न जो
रह गया आँसू बहाने के लिए
दो तरह की बात होती है यहाँ
एक बताने एक छुपाने के लिए
जो चले थे इन्कलाबों की डगर
वो खड़े हैं सर झुकाने के लिए
इन अँधेरों के शहर में आदमी
जल रहा है झिलमिलाने के लिए
ख्वाहिशों के रत्न सारे बिक गए
सब्र की क़ीमत चुकाने के लिए
तौलते हैं लोग रिश्तों को यहाँ
कुछ घटाने कुछ बढ़ाने के लिए
रेत की दीवार सारी ढह गयी
हम चले थे घर बनाने के लिए
राजपथ पर इत्र छिड़के जायेंगे
उम्र ख़ुशबू की बढ़ाने के लिए
ख़ून में लथपथ परिंदा गिर पड़ा
देश की हालत सुनाने के लिए
कुछ तो ऐसे गीत लिखते जाइए
काम आयें गुनगुनाने के लिए
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ