कविता ,गीत और ग़ज़ल के बाद आज मै आप सबके बीच कुछ मुक्तक लेकर उपस्थित हुआ हूँ ! आशा है आप पूर्व की भाँति अपनी सार्थक टिप्पणियों द्वारा मुझे अनुग्रहीत करेंगे !
मुक्तक
१. ये अंधेरों का शहर है दीप आ तुझको जला दूँ ,
धुन्ध सा वीरान घर है दीप आ तुझको जला दूँ ,
कौन से तूफ़ान की क़ीमत चुकानी है तुझे ,
रोशनी तो बेख़बर है दीप आ तुझको जला दूँ !
२.
हर सुबह को साँझ में ढलते हुए देखा गया है ,
पत्थरों को बर्फ सा गलते हुए देखा गया है ,
राम तो वनवास जाते अब नहीं दिखते कभी ,
पर सिया को आज भी जलते हुए देखा गया है!
३.
टूट कर जो गिर गये, वो तारे कहाँ मिलते हैं,
नदी की उम्र तक किनारे कहाँ मिलते हैं,
ढूढने वालों बस एक बात याद रख लेना,
वक्त की राख में अंगारे कहाँ मिलते हैं!
४.
रोशनी दिये में पाई आग पाई राख में,
बादलों की साजिशें सावन ने पाई आँख में ,
रोशनी दिये में पाई आग पाई राख में,
बादलों की साजिशें सावन ने पाई आँख में ,
उम्र भर उड़ता रहा, उड़ता रहा, उड़ता रहा,
सब्र का आकाश पाया एक टूटी पाँख में!