ज़िन्दगी है मुस्कराने के लिए
मुश्किलों को आज़माने के लिए
वक़्त की क़ीमत समझ पाया न जो
रह गया आँसू बहाने के लिए
दो तरह की बात होती है यहाँ
एक बताने एक छुपाने के लिए
जो चले थे इन्कलाबों की डगर
वो खड़े हैं सर झुकाने के लिए
इन अँधेरों के शहर में आदमी
जल रहा है झिलमिलाने के लिए
ख्वाहिशों के रत्न सारे बिक गए
सब्र की क़ीमत चुकाने के लिए
तौलते हैं लोग रिश्तों को यहाँ
कुछ घटाने कुछ बढ़ाने के लिए
रेत की दीवार सारी ढह गयी
हम चले थे घर बनाने के लिए
राजपथ पर इत्र छिड़के जायेंगे
उम्र ख़ुशबू की बढ़ाने के लिए
ख़ून में लथपथ परिंदा गिर पड़ा
देश की हालत सुनाने के लिए
कुछ तो ऐसे गीत लिखते जाइए
काम आयें गुनगुनाने के लिए
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
64 टिप्पणियां:
Harek pankti lajawab hai!Aapkee har rachana isee star kee hoti hai!
कुछ तो ऐसे गीत लिखते जाइए
काम आयें गुनगुनाने के लिए
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
...बहुत सुन्दर सार्थक रचना
रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख
...बहुत सुन्दर सोचभरी लाजवाब पंक्तियाँ
.
आपको आपकी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें के प्रकाशन पर हार्दिक शुभकामनायें .... आज समाज में ऐसे ही समाजोपयोगी कृतियों की जरुरत है...आपकी यह कृति निश्चित ही सोयी मानवता को जगाने में समर्थ हों, यही मेरी हार्दिक कामना है...
ज़िन्दगी है मुस्कराने के लिए
बहुत सुन्दर , मुस्कराते हैं तो है जिन्दगी ..वरना कैसी जिन्दगी ...
वक़्त की क़ीमत समझ पाया न जो
रह गया आँसू बहाने के लिए
बहुत सुन्दर ग़ज़ल । सकारात्मक विचार ।
कुछ तो ऐसे गीत लिखते जाइए
काम आयें गुनगुनाने के लिए... apne in panktiyo se samaj ki succhai ko samne rakh diya hai... bhut hi acchi achna hai...
एक-एक पंक्ति अपनी पूरी शक्ति से प्रहार करती हुई। कई बार पढ़ा। फिर पढूंगा।
दो तरह की बात होती है यहाँ
एक बताने एक छुपाने के लिए
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
गहन अभिव्यक्ति.... बहुत ही बढ़िया
वक़्त की क़ीमत समझ पाया न जो रह गया आँसू बहाने के लिए..
जिन्दगी की सच्चाई है इन पंक्तियों में ...
फिर भी...
ज़िन्दगी है मुस्कराने के लिए
मुश्किलों को आज़माने के लिए
बहुत ही खूबसूरत रचना.. देश और समाज की पूरी तस्वीर खीच दी आपने इसके माध्यम से...
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
समाज और व्यवस्था पर कठोर व्यंग्य।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल । यदि हौसला हो मन में तो निराशा को आशा में बदला जा सकता है।
मर्म समझना होगा, इस जीवन का।
रेत की दीवार सारी ढह गय हम चले थे घर बनाने के लिए
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ...
ज़िंदगी होती है कभी हंसने के लिए कभी रोने के लिए:)
ज्ञान चंद जी! मेरी और से स्टैंडिंग ओवेशन!! हाथों में तकलीफ है इसलिए तालियाँ नहीं बजा सकता.. एक एक शेर नगीना है..
तौलते हैं लोग रिश्तों को यहाँ
कुछ घटाने कुछ बढ़ाने के लिए
रेत की दीवार सारी ढह गयी
हम चले थे घर बनाने के लिए.
यथार्थपरक सुन्दर सार्थक ग़ज़ल...
इन अँधेरों के शहर में आदमी
जल रहा है झिलमिलाने के लिए
ख्वाहिशों के रत्न सारे बिक गए
सब्र की क़ीमत चुकाने के लिए
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
निशब्द कर दिया……………गहरा वार करती रचना इंसानी फ़ितरत के कच्चे चिट्ठे खोल रही है।
ज्ञानचंद जी,
शानदार....बेहतरीन.....बहुत ही खुबसूरत अशआरों से सजी अहि ये ग़ज़ल.....माशाल्लाह|
ये दो शेर तो गज़ब के हैं....कितना मर्म, कितना व्यंग्य है ......बहुत खूब....
जो चले थे इन्कलाबों की डगर
वो खड़े हैं सर झुकाने के लिए
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ ! हर शेर अपने आप में मुक्कमल लगा, बधाई !
जो चले थे इन्कलाबों की डगर
वो खड़े हैं सर झुकाने के लिए
वाह क्या बात है.आपके शेर में साफ़गोई और सादगी तो देखते ही बनती है.
कुछ तो ऐसे गीत लिखते जाइए
काम आयें गुनगुनाने के लिए
आपकी क़लम इस काम को बखूबी कर रही है मर्मज्ञ जी.
बहुत प्यारा लिखते हैं आप.
सुंदर कविता भाई मर्मग्य जी बधाई |
सुंदर कविता भाई मर्मग्य जी बधाई |
सुंदर कविता भाई मर्मग्य जी बधाई |
रेत की दीवार सारी ढह गयी
हम चले थे घर बनाने के लिए
कुछ तो ऐसे गीत लिखते जाइए
काम आयें गुनगुनाने के लिए
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
बहुत बढ़िया.
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए ...
हरेक पंक्ति दिल को छू जाती है...लाज़वाब प्रस्तुति
एक से बढ़ कर एक शेर है ...हर एक में गहरी बात कही है ...कोई एक चुन ही नहीं पा रही ...
तौलते हैं लोग रिश्तों को यहाँ
कुछ घटाने कुछ बढ़ाने के लिए
*********
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ चल दिए बहुएँ जलाने के लिए .
बहुत संवेदनशील ...अच्छी रचना सोचने पर मजबूर करती हुई
ज़िन्दगी है मुस्कराने के लिए
मुश्किलों को आज़माने के लिए
--
आपने इस गीत में जिन्दगी को सही परिभाषित किया है!
कुछ तो ऐसे गीत लिखते जाइए
काम आयें गुनगुनाने के लिए.
शब्द-शब्द अनमोल,
बेहतरीन गजलों का सुन्दर गुलदस्ता...
दो तरह की बात होती है यहाँ
एक बताने एक छुपाने के लिए
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
सुन्दर अभिव्यक्ति.... बहुत ही बढ़िया
'जिंदगी है मुस्कारने के लिये
मुश्किलों को आजमाने के लिए'
बहुत खूब,प्रेरणादायक अभिव्यक्ति के लिए आभार आपका .
मेरी ब्लॉग पर भी आईये.
'वन्दे वाणी विनयाकौ' मेरी नई पोस्ट है.
आपके अमूल्य विचारों का इंतजार है
इन अँधेरों के शहर में आदमी
जल रहा है झिलमिलाने के लिए
शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी उम्दा ग़ज़ल ...
जिन्दगी को बड़ी बारीकी से व्याख्यायित किया है आपने।
शुभकामनायें।
ख्वाहिशों के रत्न सारे बिक गए
सब्र की क़ीमत चुकाने के लिए
तौलते हैं लोग रिश्तों को यहाँ
कुछ घटाने कुछ बढ़ाने के लिए
जीवन के यथार्थ को खूबसूरती से शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है आपने।
एक-एक शेर जीवन सूत्र है।
ख़ून में लथपथ परिंदा गिर पड़ा
देश की हालत सुनाने के लिए
सभी पंक्तियाँ लाजवाब ....!!
बहुत दिल से लिखते हैं आप ....
बहुत बढ़िया,लाज़वाब प्रस्तुति|
बहुत सुन्दर .......
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
आदरणीय ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी
नमस्कार !
रेत की दीवार सारी ढह गयी
हम चले थे घर बनाने के लिए
दिल को छू जाती है हरेक पंक्ति ...लाज़वाब प्रस्तुति
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
जो चले थे इन्कलाबों की डगर
वो खड़े हैं सर झुकाने के लिए
क्या बात है ज्ञान जी. बहुत सुन्दर.
जिंदगी का फलसफा सुन्दरतम शब्दों में रुचिकर लगा .
बेहतरीन!!
Sundar..
क्या विडम्बना है,
“जो चले थे इन्कलाबों की डगर
वो खड़े हैं सर झुकाने के लिए”
बहुत ही मार्मिक, सामयिक और सत्य।
बहुत-बहुत धन्यवाद !
sakraatmak soch deti aapki ye rachna bahut bahut sarthak hai. aaj aisi rachnao ka akal hai jo aap pura kar rahe hain.
बहुत सुंदर......और सच ।
बहुत प्यारी बात कहीहै। बधाई स्वीकारें।
............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
एच.आई.वी. और एंटीबायोटिक में कौन अधिक खतरनाक?
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
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बहुत भाव पूर्ण ...यथार्थ ..सुन्दर
हर शेर लाजवाब
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
gahan abhivyakti .bahut badhia rachna ....!
कितनी खुबसूरत रचना है... बार बार पढ़ गया...
सादर नमन...
ख्वाहिशों के रत्न सारे बिक गए
सब्र की क़ीमत चुकाने के लिए
तौलते हैं लोग रिश्तों को यहाँ
कुछ घटाने कुछ बढ़ाने के लिए
रेत की दीवार सारी ढह गयी
हम चले थे घर बनाने के लिए
bahut hi badhiya har ek .
एक मुस्कराती हुई रचना सकारात्मक सोच के साथ ..
बहुत ही सुन्दर भाव है..
एक एक पंक्ति जीवन में साथ ही दिल में उतारने लायक है..!!
कुछ तो ऐसे गीत लिखते जाइए
काम आयें गुनगुनाने के लिए
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए ...।
हर एक पंक्ति गहन भाव समेटे हुये ...बहुत लाजवाब प्रस्तुति ।
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
बिलकुल सही कहा मर्मज्ञजी, आपसे पूरी तरह सहमत।
---------
भगवान के अवतारों से बचिए!
क्या सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए?
मेरे ब्लॉग पर पुनः आपको बुलावा है ,रामजन्म
के शुभावसर पर. रामजन्म -आध्यात्मिक चिंतन-१ मेरी नई पोस्ट है.कृपया ,आiयेगा जरूर.
"ख्वाहिशों के रत्न सारे बिक गए सब्र की क़ीमत चुकाने के लिए "
बहुत सुन्दर रचना बेहतरीन भाव ! हार्दिक शुभकामनायें आपको !
ek ek sher behtareen..
.ख़ून में लथपथ परिंदा गिर पड़ा देश की हालत सुनाने के लिए par iska to kahna hi kya...
कौन सी पंक्ति का प्रशंसा करूँ और क्या कहूँ समझ नहीं आ रहा है ... पूरी रचना गजब की है ... सोच, समझ, भाषा, कविता सबकुछ बेहतरीन है ...
raat ko raat likh yoo saveraa n likh ,
roshni ki kalam se andheraa n likh .
vaah !bhaisahib !behtreen andaaz aapke ,
veerubhai .
एक एक शब्द मन तक पहुँच इसे आंदोलित कर गए...
मर्मस्पर्शी बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना....
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए
सार्थक.
दुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...
जान से प्यारी थीं जिनको बेटियाँ
चल दिए बहुएँ जलाने के लिए.....
समाज की कडवी सच्चाई को व्यक्त किया है आपने
जाने कब हम इससे सबक सीखेंगे.
बहुत सुन्दर सोचभरी लाजवाब पंक्तियाँ!!
bahut sunder gajal hai.....
वाह वाह इक इक पंक्ति में दर्द और टीस छुपी है वाकई लाज़वाब लिखा है ..........ऐसी अदभुत रचना लिखने के लिए धन्यवाद
देर से आये आपके ब्लॉग पर फिर भी "देर आयद दुरुस्त आयद "बहुत अच्छी अपने वक्त से संवाद करती ग़ज़लें कह रहें आप ,ये इश्क मुश्क के किस्से से ऊपर की बातें हैं ,मेरी तेरी सबकी बातें हैं ,हमारी खुद की सौगातें हैं ."बधाई आपको ,आपकी लेखनी को ,कलम को .किसी ने वैसे ही तो नहीं कहा था -"जब तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो
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