"मौत" भाग -३
'आते आते कफ़न छोड़ आये'
प्राण के ब्याह की रात आई,
उम्र के गाँव बारात आई!
गल गयी फूल की पंखुरी तक,
एक ऐसी भी बरसात आई!
फिर से ख़ुशबू की रंगीन साँसें ,
हम ना मधुबन हैं जो पी सकेंगे!
प्राण मेरा ना संजीवनी है,
हम ना लक्षमन हैं जो जी सकेंगे!
दर्द में दो नयन छोड़ आये,
हम बिरह में सजन छोड़ आये!
बंद करके सलाख़ों के भीतर,
इक तड़पता सुगन छोड़ आये !
आँधियों में चमन छोड़ आये,
आँसुओं में सपन छोड़ आये!
याद आई ज़माने की फ़ितरत,
आते आते कफ़न छोड़ आये !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ