ज्ञानचंद मर्मज्ञ

मेरे बारे में

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Bangalore, Karnataka, India
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
!! श्री गणेशाय नमः !!

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मेरी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

- ज्ञान चंद मर्मज्ञ

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सोमवार, 28 मार्च 2011

मिट्टी की पलकें

                                                                  मिट्टी की पलकें 

मेरी आँखों  को 
एकटक घूरती अनगिनत आँखें 
हर आँख  में धंसी 
हज़ार हज़ार आँखें 
और उन पर ओढ़ाई गईं 
पुरानी पुरानी   
मिट्टी की बनी पलकें !
ये पलकें, 
लगता है-
खुशियों के बह जाने से बनी हैं ,   
किसी महल के ढह जाने से बनी हैं !
चुपचाप 
मौन-शांत निरीह सी 
सदियों से बेजान टंगी,
खुली की खुली ये पलकें
अपनी बुझी आँखों से 
न जाने कब से घूरे जा रही हैं  
मेरी उन पलकों को 
जो हिल रही हैं  
छूने की कोशिश में
उन सपनों की खुशियों को 
जो 
आँखों की झीलों में खिल रही हैं !
उनमें भी 
मेरी पलकों की तरह हिलने की गहरी प्यास है 
तभी तो 
ये सारी की सारी मिट्टी की पलकें 
इस कदर उदास हैं !
लगता है-
आज आँसुओं को बहना ही पड़ेगा,
मुखौटा हटाकर 
इनसे कहना ही पड़ेगा -
लो नोच लो मेरे चहरे को 
और देख लो मेरी वो आँखें 
जो बह गयी हैं खण्डहर बनकर
आंसुओं में ढल के!
मेरे पास भी हैं 
तुम्हारी ही तरह 
मिट्टी की बनी मेरी असली पलकें !

                          -ज्ञानचंद मर्मज्ञ