आतंकवाद की अगली कड़ी लिखते लिखते 26 दिसंबर २००४ का वह दिन याद आ गया जिसकी स्मृति मात्र से ही हृदय कांप उठता है और आँखें नम हो जाती हैं ! इसी दिन प्रकृति के प्रकोप ने `सुनामी` बन कर मौत का वीभत्स खेल खेला था और पागल समुद्र की लहरों ने न जाने कितने लोगों को जिन्दा निगल लिया !
आज उन्हीं को श्रधांजलि स्वरुप यह कविता प्रस्तुत है!
जो समंदर ने लिख दी लहर पर ,
हादसों की कहानी है पानी !
रेत पर आज तक बन न पाई,
एक ऐसी निशानी है पानी !
प्यास की प्यास को भी यकीं है,
उसके विश्वास का जल है पानी!
कर लिए बंद जो बोतलों में,
समझे पानी तो केवल है पानी!
इन तरंगों की धुन में नहाकर,
जो लिपटती थी पैरों में आकर !
वो लहर बन गयी कैसे नागिन ,
लौट जाती थी जो गुदगुदाकर !
किसने चंदा की शीतल किरन में,
आग विकराल ऐसी लगाई!
जिसको पीते रहे उम्र भर हम,
प्यास उसकी समझ में न आई!
कल तो सपने सँजोती थीं लहरें,
चांदनी को पिरोती थीं लहरें!
आज लाशों की बारिश हुई है,
वरना सावन में रोती थीं लहरें!
क्यूँ हैं ख़ामोश लहरें निगोरी,
लील कर आज चंदा चकोरी!
लोग पागल हो चिल्ला रहे हैं,
की है सागर ने लाशों की चोरी !
साँस `कल` हो गई एक पल में,
उम्र पल हो गई एक पल में!
देख कर खूं का प्यासा समंदर,
प्यास `जल`हो गई एक पल में!
हो के विकराल पानी की लहरें,
बन गयीं काल पानी की लहरें!
जब समंदर लहू में घुला तो,
हो गयीं लाल पानी की लहरें!
डूब जाता था सागर जहाँ पर,
वो किनारे बहे जा रहे हैं!
सूनी आँखों का आकाश देखो,
चाँद तारे बहे जा रहे हैं!
जो चुराती थीं साजन के मन को,
वो चुनर- चूड़ियाँ बह गयी हैं !
पालनों में समंदर बहा है,
माँ के संग लोरियाँ बह गयी हैं!
कुछ निगाहें बही हैं लहर में,
कुछ निगाहों के सपने बहे हैं!
रेत के हर निशाँ बह गए हैं,
बहने वालों में अपने बहे हैं!
छू लिया चाँद फिर भी करेंगे,
कब तलक बेबसी की गुलामी!
काश कुदरत के `मर्मज्ञ`होते,
फिर ना होती ये लहरें सुनामी!