आज कई दिनों के अंतराल के बाद आप के बीच एक ग़ज़ल लेकर उपस्थित हुआ हूँ आशा है आप पूर्व की भांति अपनी सारगर्भित टिप्पणियों से अनुग्रहित कर मेरा उत्साहवर्धन करेंगे !
ग़ज़ल
न हीरा, न मोती, न चाँदी, न सोना
है काफ़ी महज़ एक इंसान होना
ये जीवन भी तो एक रेखा गणित है
कभी गोल है तो कभी है तिकोना
न महुआ उगेगा ना बरगद उगेंगे
कभी गांव में तुम शहर को न बोना
जो अम्नो अमाँ की वफ़ा चाहते हो
लहू के निशाँ को लहू से न धोना
न छीनो ये चौखट ना छीनो ये आँगन
मकानों को दे दो मकानों का कोना
उसे सब पता है वही जानता है
किसे कब है हँसना किसे कब है रोना
उसे सब पता है वही जानता है
किसे कब है हँसना किसे कब है रोना
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ