जल सके ना उजालों की पहचान तक
जलने वाले जले फिर भी तूफ़ान तक
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक
बिक न पाते कभी हम मगर क्या करें
आ गयी वो वफ़ा चल के दूकान तक
हर गली हर मोहल्ले के बाज़ार में
बिकते देखा है लोगों को ईमान तक
चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाए इंसान तक
आदमी ने बनाया है कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तक
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ