ज्ञानचंद मर्मज्ञ

मेरे बारे में

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Bangalore, Karnataka, India
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
!! श्री गणेशाय नमः !!

" शब्द साधक मंच " पर आपका स्वागत है
मेरी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

- ज्ञान चंद मर्मज्ञ

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सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

रातों की स्याही है ...

रातों की स्याही है,धूप का निखार है,
यार यही जीवन है, रोना   बेकार  है!

सुनसान  गलियों में सहमी हैं सांसे ,
दंगों  के  खेतों   में  उगती  हैं  लाशें,
सांसों का मोल नहीं कैसा व्यापार है!
यार  यही  जीवन है, रोना  बेकार है!

जब भी  लिखी हादसों  की  कहानी,
लुटती रही यूँ  ही खुशियों की  रानी,
माटी की दुल्हन है,सोलह श्रृंगार है!
यार  यही जीवन है, रोना बेकार  है!

आहट  है  चिंगारी, दस्तक हैं  शोले,
कैसे   उठें    और   दरवाज़ा    खोलें,
बूढ़ी है अभिलाषा, आशा  बीमार  है!
यार  यही  जीवन है, रोना बेकार  है!

फिर  से  वही  शोर, सहमी  ज़मी  है,
गिद्धों  की  बस्ती में  खूं  की कमी है,
कितना घिनौना ज़माने का प्यार  है!
यार यही  जीवन  है, रोना  बेकार  है!

खुशियों की गौरैया,दहशत का आंगन,
बोझिल सी  आँखों  में डूबा है  जीवन,
आँखों की जीत हुई,सावन की हार  है!
यार  यही  जीवन  है,  रोना  बेकार है!

इन  पत्थरों  का  पिघलना  है  बाकी,
कुछ  कोशिशों का उछलना  है बाकी,
बौना   है   आदमी,  ऊँची  दीवार   है, 
यार  यही  जीवन है, रोना  बेकार  है!
                           -ज्ञानचंद मर्मज्ञ