रंग ऐसा लगाने का वादा करो
चढ़ सके ना कभी जिस पर नफ़रत का रंग ,रंग ऐसा लगाने का वादा करो,
भर के हर साँस में प्रेम के रंग को ,हर गिले भूल जाने का वादा करो !
रास्ते जब भी काँटे उगाने लगें , पाँव जब भी तेरे डगमगाने लगें,
टूट जाएँ सभी सब्र की डोरियाँ , हिम्मतों के दीये थरथराने लगें ,
तब समूचे समन्दर को एक साँस में ,अंजुरी में उठाने का वादा करो !
कौन सा रंग किस रंग को है मिला ,किस चमन में गुलाबों का गुलशन खिला,
किसके रंगों को नोचा गया इस कदर,किसकी आँखों को रिमझिम का सावन मिला,
पंख नोचे गए तितलियों के जहाँ , वो चमन फिर बसाने का वादा करो !
बात रंगों की है रंग वालों की है, अनकहे अनबुझे कुछ सवालों की है !
जैसी तकदीर उनके गुलालों की है,वैसी किस्मत कहाँ अपने गालों की है !
हम हज़ारों क़दम दौड़ कर आयेंगे ,पाँव तुम भी उठाने का वादा करो !
लाल रंगों में लिपटी हुई होलियाँ , खेलते खेलते शाम ढल जाएगी,
फिर कोई भी सवेरा ना होगा कभी, बर्फ की ये कहानी पिघल जाएगी !
वक्त का हर दिया हो गया है धुआं,कुछ तो जलने जलाने का वादा करो !
आसमाँ से गिराई गयीं बिजलियाँ, हर गली में लगाईं गयी बोलियाँ ,
रंग परछाईयों में सिमटता गया,फिर भी ठहरी थीं विश्वास की तितलियाँ !
एक उम्मीद काफ़ी है मुस्कान को ,यूँ ही हँसने हँसाने का वादा करो !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
चढ़ सके ना कभी जिस पर नफ़रत का रंग ,रंग ऐसा लगाने का वादा करो,
भर के हर साँस में प्रेम के रंग को ,हर गिले भूल जाने का वादा करो !
रास्ते जब भी काँटे उगाने लगें , पाँव जब भी तेरे डगमगाने लगें,
टूट जाएँ सभी सब्र की डोरियाँ , हिम्मतों के दीये थरथराने लगें ,
तब समूचे समन्दर को एक साँस में ,अंजुरी में उठाने का वादा करो !
कौन सा रंग किस रंग को है मिला ,किस चमन में गुलाबों का गुलशन खिला,
किसके रंगों को नोचा गया इस कदर,किसकी आँखों को रिमझिम का सावन मिला,
पंख नोचे गए तितलियों के जहाँ , वो चमन फिर बसाने का वादा करो !
बात रंगों की है रंग वालों की है, अनकहे अनबुझे कुछ सवालों की है !
जैसी तकदीर उनके गुलालों की है,वैसी किस्मत कहाँ अपने गालों की है !
हम हज़ारों क़दम दौड़ कर आयेंगे ,पाँव तुम भी उठाने का वादा करो !
लाल रंगों में लिपटी हुई होलियाँ , खेलते खेलते शाम ढल जाएगी,
फिर कोई भी सवेरा ना होगा कभी, बर्फ की ये कहानी पिघल जाएगी !
वक्त का हर दिया हो गया है धुआं,कुछ तो जलने जलाने का वादा करो !
आसमाँ से गिराई गयीं बिजलियाँ, हर गली में लगाईं गयी बोलियाँ ,
रंग परछाईयों में सिमटता गया,फिर भी ठहरी थीं विश्वास की तितलियाँ !
एक उम्मीद काफ़ी है मुस्कान को ,यूँ ही हँसने हँसाने का वादा करो !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ