आतंकवाद:भाग-३
कितने सिंदूर धोये गए हैं,
किस कदर हाय रोये गए हैं!
तोड़ कर हाथ के कंगनों को,
दर्द के खेत बोये गए हैं!
लाल टुकड़ों में खुशियों का तन है,
कब से बेचैन मेंहदी का मन है!
कैसी बारात कैसा लगन है,
आधी दुल्हन है आधा सजन है!
वो गुलाबी अधर तो उठाना,
जिसमें पायल हो वो पैर लाना!
ढूंढ़ लाना पिया की वो आँखें,
एक पूरी दुल्हन है बनाना!
कैसी तड़पन की लम्बी घड़ी है,
साँस छोटी है, आहें बड़ी हैं!
ग़म के हाथों में लम्बी छड़ी है,
चार मौसम सभी पतझड़ी हैं!
...........अगले अंकों में जारी
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ