"मौत" भाग-२
"हम अभी से धुआं पी रहे हैं"
मौत का जाम खाली हुआ तो,
ढल गयीं खुद शराबी निगाहें!
मौत के सामने सर झुका लीं,
हाय वो इन्क़लाबी निगाहें!
भूल से जिंदगी पी गए जो,
मौत की बद्ददुआ पी रहे हैं!
कल तो अंगार पीना पड़ेगा,
हम अभी से धुआं पी रहे हैं !
बर्फ की मूर्तियाँ ना बिकेंगी,
माटी के नयन कौन लेगा !
रंग चाहे हज़ारों खिले हों ,
पत्थरों के सपन कौन लेगा !
किस लहू से समंदर भरा था,
वक्त पर ज्वार भी आ सका ना!
चल पड़े थे पकड़ने किनारा,
हाथ मँझधार भी आ सका ना!
अगले अंकों में ज़ारी ...........
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ