कोई सन्नाटा तो लाओ, ये शहर अब सो रहा है!
हादसों को मत जगाओ, ये शहर अब सो रहा है !
भागने की होड़ है सबको उलझना है यहाँ ,
रस्ते वीरान हैं फिर भी पहुंचना है वहां ,
पांव धीरे से उठाओ ये शहर अब सो रहा है !
पांव धीरे से उठाओ ये शहर अब सो रहा है !
कौन हैं वो लोग जिनके हाँथ में तलवार है,
कंठ की ये प्यास कैसी खून की दरकार है ,
सब्र को मत आजमाओ, ये शहर अब सो रहा है!
कहकहे नादान हैं खुशियों से कतराते हैं ये ,
जब भी होठों पर बुलाओ दूर छुप जाते हैं ये ,
फिर भी थोड़ा मुस्कराओ,ये शहर अब सो रहा है !
खोखली दीवार को चीखों से कोई भर गया,
आईना भी आदमी पहचानते ही डर गया,
कौन हो कुछ तो बताओ, ये शहर अब सो रहा है!
खौफ के बाज़ार में बेची गयी है हर ख़ुशी ,
ढूंढ़ लो इस ढेर में शायद पड़ी हो ज़िन्दगी ,
क्या पता पहचान जाओ,ये शहर अब सो रहा है!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ