फूल पर भी न सोया गया
बीज ऊसर में बोया गया
दर्द में दिल डुबोया गया
प्यास चुभने लगी कंठ में
फूल पर भी न सोया गया
फ़ेंक डाला धनुष तोड़कर
रंग सातों सँजोया गया
तोड़ कर मेरा जलता दिया
आसमाँ में पिरोया गया
बादलों में नमी ढल गयी
चाह कर भी न रोया गया
दाग़ मजबूरियों का लगा
ख़ून से भी न धोया गया
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ