कुछ बढ़ाई गई कुछ घटाई गई
कुछ बढ़ाई गई कुछ घटाई गई
ज़िन्दगी उम्र भर आज़माई गई
फेंक दो ऐ किताबें अंधेरों की हैं
जिल्द उजली किरन की चढ़ाई गई
जब भी आँखों से आँसू बहे जान लो
मुस्कराने की क़ीमत चुकाई गई
घेर ली रावनों ने अकेली सिया
और रेखा लखन की मिटाई गई
टांग देते थे जिन खूटीयों पे गगन
उनकी दीवारे हिम्मत गिराई गई
झील में डूबता चाँद देखा गया
और तारों पे तोहमत लगाईं गई
झूठ की एक गवाही को सच मानकर
हर सज़ा पे सज़ा फिर सुनाई गई
यूँ तो चिंगारियों में कोई दम न था
पर अदा बिजलियों की दिखाई गई
राम की मुश्किलों में हमेशा यहाँ
बेगुनाही की सीता जलाई गई
देश की हर गली में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई
-ज्ञानचन्द मर्मज्ञ