जाने कैसी ये होली है
आँसू में रंग घुला बैठे जाने कैसी ये होली है
उम्मीदों को बहला बैठे जाने कैसी ये होली है
दंगों की आहट होते ही दुल्हन विधवा हो जाती है
फिर भी हम माँग सजा बैठे जाने कैसी ये होली है
हाथों में एक मशाल लिए आँखों में लाख सवाल लिए
कितने खुद को पिघला बैठे जाने कैसी ये होली है
मंदिर का रंग लगे फ़ीका मस्जिद का रंग उड़ा सा है
खूं से इनको नहला बैठे जाने कैसी ये होली है
रंगों के इस बाज़ार से वो जब भी गुज़रे हैं चुपके से
अपना हर रंग छुपा बैठे जाने कैसी ये होली है
दुनियाँ के रंग निराले हैं दिखते सफ़ेद जो काले हैं
किस रंग से रंग मिला बैठे जाने कैसी ये होली है
रोटी के रंगों की कीमत भूखों ने पूछा जब उनसे
व्यापारी थे झुझला बैठे जाने कैसी ये होली है
बेबस ममता के रंगों की पहचान करेगी क्या दुनियाँ
जब बेटे ही झुठला बैठे जाने कैसी ये होली है
इस भीड़ में गाँधी बुद्ध नहीं हमें शांति चाहिए युद्ध नहीं
नन्हा सा मन दहला बैठे जाने कैसी ये होली है
बस तीन रंग के दीवाने 'मर्मज्ञ' शहीदों की होली
हम भूल गए बिसरा बैठे जाने कैसी ये होली है
होली की अनन्त शुभकामनाएं.........
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
41 टिप्पणियां:
नेह और अपनेपन के
इंद्रधनुषी रंगों से सजी होली
उमंग और उल्लास का गुलाल
हमारे जीवनों मे उंडेल दे.
आप को सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.
इतने सारे कष्ट झेलती,
होली फिर भी होली है।
रोटी के रंगों की कीमत भूखों ने पूछा जब उनसे
व्यापारी थे झुझला बैठे जाने कैसी ये होली है
हालात तो ऐसे ही हैं । फिर भी होली तो होली है ।
होली की हार्दिक शुभकामनायें ज्ञानचंद जी ।
हाथों में एक मशाल लिए आँखों में लाख सवाल लिए
कितने खुद को पिघला बैठे जाने कैसी ये होली है
जी आज के हालत कुछ इस तरह हैं ....सवाल लिए हैं बहुत ....आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
होली पर आपकी इस रचना ने बहुत प्रभावित किया है. होली की शुभकामनाएँ.
आपने सम्माज का सच्चा चेहरा सामने लाया है !
आपकी रचना उत्तम है !
आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें !
कष्ट रहें चाहे जितने भी
होली फिर भी होली है ।
आपको होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ...
बेबसममता के रंगों की पहचान करेगी क्या दुनियाँ
जब बेटे ही झुठला बैठे जाने कैसी ये होलीहै
इस भीड़में गाँधी बुद्ध नहीं हमें शांति चाहिए युद्धनहीं
नन्हासा मन दहला बैठे जाने कैसी ये होली है....
बहुत ही भावासिक्त यथार्थपरक रचना....
इन भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !
होली के दिन तो उमंग होना चाहिए बंधु :)
आपकी ग़ज़लें आपके दिल से निकलकर कागज़ पर आती हैं और पढ़ते ही ज़ेहन नशीन हो जाती हैं.यथार्थ का खूबसूरत चित्रण आपके कलाम में मिलता हैं.होली पर ये ग़ज़ल मत्ले से मक्ते तक बेहतरीन है मर्मज्ञ जी.हर शेर का अंदाज़ लाजवाब है.किस किस का ज़िक्र करूं.निम्न शेर तो अभी तक दिलो दिमाग में कौंध रहा है:-
दुनियाँ के रंग निराले हैं दिखते सफ़ेद जो काले हैं
किस रंग से रंग मिला बैठे जाने कैसी ये होली है
हाथों में एक मशाललिए आँखों में लाख सवाल लिए
कितने खुद को पिघला बैठे जाने कैसी ये होली है
मंदिर का रंग लगे फ़ीका मस्जिद का रंग उड़ा सा है
खूं से इनको नहला बैठे जाने कैसी ये होली है.....
अंतस को झकझोरती हुई रचना...
होली की हार्दिक शुभकामनायें
बहुत से सवाल उठाती यह रचना ...फिर भी मेल मिलाप कराने आती हर साल निराली होली
इन विषमताओं और निराशाओं के बीच त्योहारों के रंग कुछ लम्हों की ही सही , खुशियाँ लाते हैं ...
रंगों के पर्व की शुभकामनायें !
Bahut hi vicharniya prastuti...holi ki hardik shubhkamnaye.
आदरणीय ज्ञानचंद जी
नमस्कार !
यथार्थपरक रचना...होली की ढेरों शुभकामनाएं
रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
भावपूर्ण रचना ! होली मुबारक!
बेहद मार्मिक और संवेदनशील चित्रण्।
आप को सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएं. सादर !
ज्ञानचंद जी,
बहुत मार्मिक......नंगा सच बयां करती है पोस्ट.....प्रशंसनीय
इक दर्द इक टीस है इस गीत में ...मर्मज्ञ जी ,माफ़ कीजियेगा , कीमत के साथ आपको पूछी शब्द लगाना ठीक रहेगा .
रोटी के रंगों की कीमत भूखों ने पूछा जब उनसे
की जगह ..
रोटी के रंगों की कीमत भूखों ने पूछी जब उनसे
.
भावपूर्ण रचना...आप को सपरिवार होली की शुभकामनाएं
holi to beet gayee, par hamari shubhkamnayen aapke liye hain..:)
ek pyari see rachna..
वर्तमान समाज और संबंधों की विद्रूपताओं को आईना दिखाती रचना....
ये कैसी होली है ?.......सार्थक प्रश्न
फिर भी होली की क्या चिंता , होली तो अब हो ली है !
रंगों के इस बाज़ार से वो जब भी गुज़रे हैं चुपके से
अपना हर रंग छुपा बैठे जाने कैसी ये होली है
दुनियाँ के रंग निराले हैं दिखते सफ़ेद जो काले हैं
किस रंग से रंग मिला बैठे जाने कैसी ये होली है
आजकल पर्वों की स्वस्थ परम्पराएं विकलांग नज़र आ रही हैं।
सचमुच, जाने ये कैसी होली है।
होली पर्व की अशेष हार्दिक शुभकामनाएं।
बस तीन रंग के दीवाने 'मर्मज्ञ' शहीदों की होली
हम भूल गए बिसरा बैठे जाने कैसी ये होली है
सार्थक विचार....खूब लिखा आपने.... शुभकामनायें आपको भी....
सचेत कर दिया और संदेश भी दिया
आद. संगीता जी,
चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए शुक्रिया !
वाह... ! मर्मज्ञजी के कथ्य में एकबार फिर सामजिक सरोकार मुखर है. व्यंग्य भी मासूमियत से लबरेज है. मुझे लग रहा है कि यह उनकी अभिनव रचना है. पुनरावलोकन से और निखार आयेगा. विलम्ब से प्रतिक्रिया के लिए क्षमाप्रार्थना और सुन्दर रचना के लिए बधाई एवं धन्यवाद.
दुखों में भी सुखों की अनुभूति को सतत प्रेरित करती अच्छी ग़ज़ल पेश करने के लिए बहुत बहुत बधाई, भाई ज्ञान चंद्र मर्मज्ञ जी|
मंदिर का रंग लगे फ़ीका मस्जिद का रंग उड़ा सा है
खूं से इनको नहला बैठे जाने कैसी ये होली है
बहुत खूब.
सन्देश परक ग़ज़ल.
देर से ही सही होली मुबारक.
बेशक खाली झोली है
होली फिर भी होली है
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
होली की हार्दिक शुभकामनायें!
रंग सदा ऐसे ही रहे पर होली ही बदलती रही।
समय भी ऐसा ही रहा,मंशा हमारी बदलती रही।
बस हमी जी न सके आशाएं सदा मसलती रहीं।
शुभकामना आपको मेरी होली तो बस होली रही।
दिखावटी रंगों के भीतर छिपी इस बेरंग दुनिया को बेनकाब किया आपने।
क्या बात है।
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्या ख्याa।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
सही कहा आपने मर्मज्ञ जी.. परम्परागत रूप में त्यौहारों के मनाने का कोई कारण नहीं दीख पड़ता..
chaahe kitna vair bhaav bhara hai duniya me.
par ye rang kuchh pal ko to halke hote hain.
holi me jab sab milte hain to
duriyon ke dard bhi simta karte hain.
gyan chand ji
bahut hi arthak aur manko bah gai aapki post bahut hi sateek bhav purn abhi vyakti
dhanyvaad
poonam
बेहद मार्मिक और संवेदनशील चित्रण्। धन्यवाद|
sunder............
holi ki shubhkaamnayen.........
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