ज्ञानचंद मर्मज्ञ

मेरे बारे में

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Bangalore, Karnataka, India
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
!! श्री गणेशाय नमः !!

" शब्द साधक मंच " पर आपका स्वागत है
मेरी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

- ज्ञान चंद मर्मज्ञ

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रविवार, 16 जनवरी 2011

हर जनाज़ा यहाँ बेकफ़न है

आतंकवाद की पीड़ा को मुखरित करने में जो सहयोग आप सभी पाठकों एवं शुभचिंतकों का मिला ,उसके लिए आभार प्रकट करना शब्दों के बस में नहीं है ! हृदय से धन्यवाद व्यक्त करते हुए आज अंतिम कड़ी लेकर आप सभी के सम्मुख फिर उपस्थित हूँ ,
आप सभी के अमूल्य विचारों की प्रतीक्षा के साथ !




        आतंकवाद: अंतिम भाग 
                                                                                                                                                                                                                         


         जब से आकाश उनका हुआ है,
         पंख   नीलाम  करने  लगे   हैं!
         हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
         पैदा   होने   से  डरने  लगे  हैं!


                                      दूध  माँ  ने  पिलाया तो होगा,
                                      थपकियाँ दे  सुलाया तो होगा!
                                      गिर  पड़े  जब  खड़े  होते होते,
                                      दौड़  उसने  उठाया  तो  होगा!


         वो  समाई  है  इन धड़कनों में,
         जिसकी  साँसें  पिए जा रहे हो!
         नोच   कर  दूध  के  स्तनों को,
         क़त्ल  माँ  का किये जा रहे हो!


                                 कुछ  यहाँ कुछ वहां तन-बदन है,
                                 लाश पर हर पलक बिन नयन है!
                                 लाल   धरती  पर  रोया  गगन है,
                                 हर   जनाज़ा   यहाँ   बेकफ़न  है!


         चीख़  उभरी  है फिर वादियों में,
         ख़ून  फिर  से बहा बन के पानी!
         लाख  ख़ूनी  कलम आज़मा लो,
         लिख  न  पाओगे  कोई कहानी!

                                  कल यही हादसे फिर पिघल कर,
                                  तेरी   आँखों   के   सैलाब   होंगे !
                                  जब   तेरे  स्वप्न  भी  चूर  होंगे,
                                  तुम  भी  रोने  को   बेताब  होगे !


         साँस   आधी  है  धड़कन  अधूरी,
         फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
         रात  गुज़रेगी  इस  'रात' की  भी,
         बस   दीया   है   जलाना  ज़रूरी! 


                                                    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ  





64 टिप्‍पणियां:

Kunwar Kusumesh ने कहा…

जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!

अहा,गज़ब लिखते हैं आप मर्मज्ञ जी.
कमाल है भाई कमाल.

केवल राम ने कहा…

साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
आदरणीय ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी
बहुत सार्थक तरीके से आपने अपनी बात कही है ....हर एक पंक्ति गहरा अर्थ संप्रेषित करती है ...शुक्रिया

केवल राम ने कहा…

आपकी प्रस्तुति न हमें ठहर जाने के लिए कहा... यहाँ ..और हम ठहर गए .....शुभकामनायें

उपेन्द्र नाथ ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Shikha Kaushik ने कहा…

bahut marmik shabdon me yatharth ko chitrit kiya hai .kash... manavta ke dushman bhi ise padhkar sahi raste par aane ka prayas to karen .aabhar .

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!

मर्मज्ञ जी क्या सही बात कही है आपने.बिल्कुल सच्चाई बयां करती हुई कविता .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी

यही प्रयास शायद कामयाब हो ...बहुत अच्छी रचना ...

मनोज कुमार ने कहा…

आपकी रचना गहरे विचारों से परिपूर्ण होती है।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!

कमाल की अभिव्यक्ति ...... यही है जीवन जीने की अर्थपूर्ण राह.....

हरीश प्रकाश गुप्त ने कहा…

प्रभाशाली लेखन।

आभार,

Suman ने कहा…

bahut khub....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आतंकवाद के प्रभावों का करुणक्रंदन। सुन्दर अभिव्यक्ति।

कुमार राधारमण ने कहा…

सही कह रहे हैं। आशा का दीपक नहीं बुझना चाहिए। वो सुबह कभी तो आएगी.....

vandana gupta ने कहा…

बेहद मार्मिक चित्रण किया है दिल गमगीन हो गया है …………कुछ कहने की सामर्थ्य नही है सिर्फ़ इतना ही कि आप की कलम इसी तरह चलती रहे और जहाँ को रोशनी देती रहे।

करण समस्तीपुरी ने कहा…

रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!

आदरणीय मर्मज्ञजी,
एक दीया तो आपने जला ही दिया है. भगवान इस दीये में तेल की बरक़त करते रहें ताकि एक दिन इसकी रोशनी उनतक भी पहुँच सके जो आज जाति, धर्म, देश, प्रांत, भाषा, वेश-भूषा आदि के नाम पर नसले आदम का खून पानी की तरह बहा रहे हैं. बहुत ही प्रभावशाली !!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं ...

ज्ञान जी ... ये पूरा सिलसिला सच में दहला देने वाला था ... बहुत मुश्किल होता है शब्दों में बयान करना ... पर आप सफल हुवे हैं इस ख़ौफ़ के मंज़र को हूबहू उतरने में ...

बेनामी ने कहा…

ज्ञानचंद जी,

आपकी इस पोस्ट को पड़कर रोंगटे खड़े हो गए है.......बहुत ही सुन्दर......ढेरो शुभकामनायें आपको इस रचना के लिए|

Sushil Bakliwal ने कहा…

साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
आतंकवाद की वीभत्सतता का सिलसिलेवार चित्रण कर दिया है आपने ।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

मर्मज्ञ जी!
आप सचमुच मर्मज्ञ हैं.. इस शृंखला की हर कड़ी दिल को झकझोरती है. शायद इसीलिये
.
मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देखकर दुनिया, बड़ा होने से डरता है!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

आद.संगीता जी,

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद !

-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

निर्मला कपिला ने कहा…

साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
बहुत सार्थक सन्देश देती पँक्तियाँ है। आपने इस रचना मे जो दिया जलाया है उसकी रोशनी सब तक पहुँचे। धन्यवाद।

ZEAL ने कहा…

.

हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!

बहुत गहराई से सत्य को चित्रित करती हुई उम्दा रचना।

.

nilesh mathur ने कहा…

बेहतरीन रचना !

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय मर्मज्ञ जी.
नमस्कार !
बिल्कुल सच्चाई बयां करती हुई कविता
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं

संजय भास्‍कर ने कहा…

ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

k ने कहा…

दिल की गहराई से निकली हुई मर्मज्ञ रचना पढवाने के लिए शुक्रिया .
आपकी लेखन कला को इस बालक का प्रणाम
- अमन अग्रवाल "मारवाड़ी"

amanagarwalmarwari.blogspot.com

marwarikavya.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

ज्ञान चंद जी, आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ और मैं अभिभूत हूँ, आपकी लेखनी में तो सुप्त चेतना को जागृत करने की शक्ति है. एक एक शब्द झकझोर देता है आत्मा को... आपकी लेखनी को प्रणाम... धन्यवाद करती हूँ चर्चामंच का जिसके माध्यम से आपकी रचनाएँ पढ़ने का सुअवसर मिला

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

बहुत ही सार्थक रचना ...
रोंगटे खड़े हो गए ...
लेखनी तो यही है बड़े भाई !

रंजना ने कहा…

ऐसे झकझोरा है आपकी इस रचना ने कि कुछ कहते नहीं बन पड़ रहा...
ईश्वर आपकी लेखनी पर सदा sahaay rahen...
अक्सर ही aapke adwiteey lekhni निःशब्द कर जाया करती है...

सुज्ञ ने कहा…

कमाल की अभिव्यक्ति ...... यही है जीवन जीने का मर्म। सार्थक है आप मर्मज्ञ है।

रचना दीक्षित ने कहा…

जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!
हृदयविदारक,बेहद मार्मिक और दिल से निकली बातें

amrendra "amar" ने कहा…

waah bahut sunder rachna ........
http://amrendra-shukla.blogspot.com/

k ने कहा…

इस नाचीज के ब्लॉग मे आकार टिपण्णी करने के लिए आपका ह्रदय की गहरइयो से अभिनन्दन. आपने मेरे ब्लॉग मे आकार जो मेरा मान बदाय है उसका मे कोटि कोटि आभारी हूँ . हम जैसे नवोदित कलाकार आपके ही सहयोग से आगे बढ़ पाते है

Amit K Sagar ने कहा…

सर, क्या प्रतिक्रिया दें? आपकी रचना के आगे मेरे शब्द छोटे पड़ जाएंगे. बेहद उम्दा. लाजबाव.
-
सागर by AMIT K SAGAR

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!

bahot hi sunder... kash is diye ki roshni badti jaae.

girish pankaj ने कहा…

achchhi, prabhavshalee kavitaa parh kar tasalli hui ki itana sundar-sargarbhit likhane vale log abhi bhi hai. badhai.

बेनामी ने कहा…

कल यही हादसे फिर पिघल कर,
तेरी आँखों के सैलाब होंगे !
जब तेरे स्वप्न भी चूर होंगे,
तुम भी रोने को बेताब होगे !
--
रचना के सभी छंद मन को झकझोर देते हैं!
बहुत उम्दा रचना है!

Surendra Singh Bhamboo ने कहा…

मन को छू लेने वाली रचना है आपकी

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!

दुनियाँ का जो रूप अपने पेश किया है, ऊपर लिखी पंक्तियों ने उसका सार बयान कर दिया है.
इस अभिव्यक्ति के लिए आप बधाई के पात्र है.

PN Subramanian ने कहा…

"नोच कर दूध के स्तनों को, क़त्ल माँ का किये जा रहे हो!" बहुत खूब. इसकेलिए एक फोटो अलग से भेज रहा हूँ.

ManPreet Kaur ने कहा…

aacha blog hai aapka dear\\

Music Bol
Lyrics Mantra

नीरज गोस्वामी ने कहा…

कुछ यहाँ कुछ वहां तन-बदन है,
लाश पर हर पलक बिन नयन है!
लाल धरती पर रोया गगन है,
हर जनाज़ा यहाँ बेकफ़न है!



गज़ब...बहुत प्रेरक गीत है आपका..बधाई स्वीकारें



नीरज

Rahul Singh ने कहा…

काश ऐसा हो और जल्‍द से जल्‍द हो.

'साहिल' ने कहा…

बहुत मार्मिक कविता .... शुभकामनाओं के साथ!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!

बस इसी रात के गुजरने का इन्तजार है ....
ये दिया हमें ही जलाना है ....
जिसे आपकी ये पंक्तियाँ जलाये जा रही हैं .....

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीय ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी
नमस्कार !

कमाल है आपकी लेखनी ! आतंकवाद पर पूरी शृंखला ने प्रभावित किया ।
… जैसे सार भी बता दिया …
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!


आप दक्षिण में रहते हुए भी हिंदी में उत्कृष्ट लेखन कर रहे हैं , नमन है !
~*~आपके संपूर्ण लेखन के लिए हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~

शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

गहरा प्रभाव छोड़ती है आपकी कविता .कुछ पंक्तियाँ तो बार-बार मन में घूमने लगती हैं - साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!

बस आशा का स्वर बना रहे जो अँधेरों में खोने न दे !

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

.....जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!............
बहुत ही सुन्दर......ढेरो शुभकामनायें आपको इस रचना के लिए|

Suman ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

kewal jee...aman aur shanti ke naam aapke iss sandesh "bas diya jalana jaruri hai"..........dil ko choo gayeee........:)

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

bahut acchhi bhaavnaa se likhi gayi hai kavitaa....!!

POOJA... ने कहा…

hats of to you Gyanchand ji...
bahut hi lajvaab likhte hai...

मनोज भारती ने कहा…

अंत बहुत सुंदर रहा ...

बहुत ही खुबसूरत अंदाज़ है आपका कविता कहने का ।

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

एक ही शब्द ”बेहतरीन"



चीख़ उभरी है फिर वादियों में,
ख़ून फिर से बहा बन के पानी!

लाख ख़ूनी कलम आज़मा लो,
लिख न पाओगे कोई कहानी!
कल यही हादसे फिर पिघल कर,
तेरी आँखों के सैलाब होंगे !
जब तेरे स्वप्न भी चूर होंगे,
तुम भी रोने को बेताब होगे !

क्या बात है !
ये रात अवश्य गुज़र जाएगी

इस्मत ज़ैदी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
प्रियंका गुप्ता ने कहा…

इंशा‍अल्लाह ! एक दिन शायद इस रात की सुबह आ ही जाएगी...। बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर गई आप की यह धारावाहिक रचना...।

संध्या शर्मा ने कहा…

साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
बहुत -बहुत धन्यवाद इस सुन्दर रचना के लिए..
बहुत सार्थक तरीके से आपने अपनी बात कही है ...

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

ज्ञानजी, आपकी भावनाओं को सलाम करने का जी चाहता है।

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ज्‍योतिष,अंकविद्या,हस्‍तरेखा,टोने-टोटके।
सांपों को दुध पिलाना पुण्‍य का काम है ?

कडुवासच ने कहा…

... behad prasanshaneey lekhan ... badhaai !!

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

मार्मिक कविता के लिए मर्मग्य जी धन्यवाद.

alka mishra ने कहा…

आप सचमुच मर्मज्ञ हैं
ये गीत अच्छे लगे
भावप्रवण तो हैं ही मुद्दे भी ज्वलंत हैं

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

सभी पाठकों एवं शुभचिंतकों के प्रति हृदय से आभार प्रकट करता हूँ !

ज्योति सिंह ने कहा…

साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
bahut hi badhiya .kamaal ka likha hai .badhai .