आप सभी के अमूल्य विचारों की प्रतीक्षा के साथ !
आतंकवाद: अंतिम भाग
जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!
दूध माँ ने पिलाया तो होगा,
थपकियाँ दे सुलाया तो होगा!
गिर पड़े जब खड़े होते होते,
दौड़ उसने उठाया तो होगा!
वो समाई है इन धड़कनों में,
जिसकी साँसें पिए जा रहे हो!
नोच कर दूध के स्तनों को,
क़त्ल माँ का किये जा रहे हो!
कुछ यहाँ कुछ वहां तन-बदन है,
लाश पर हर पलक बिन नयन है!
लाल धरती पर रोया गगन है,
हर जनाज़ा यहाँ बेकफ़न है!
चीख़ उभरी है फिर वादियों में,
ख़ून फिर से बहा बन के पानी!
लाख ख़ूनी कलम आज़मा लो,
लिख न पाओगे कोई कहानी!
तेरी आँखों के सैलाब होंगे !
जब तेरे स्वप्न भी चूर होंगे,
तुम भी रोने को बेताब होगे !
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
64 टिप्पणियां:
जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!
अहा,गज़ब लिखते हैं आप मर्मज्ञ जी.
कमाल है भाई कमाल.
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
आदरणीय ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी
बहुत सार्थक तरीके से आपने अपनी बात कही है ....हर एक पंक्ति गहरा अर्थ संप्रेषित करती है ...शुक्रिया
आपकी प्रस्तुति न हमें ठहर जाने के लिए कहा... यहाँ ..और हम ठहर गए .....शुभकामनायें
bahut marmik shabdon me yatharth ko chitrit kiya hai .kash... manavta ke dushman bhi ise padhkar sahi raste par aane ka prayas to karen .aabhar .
जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!
मर्मज्ञ जी क्या सही बात कही है आपने.बिल्कुल सच्चाई बयां करती हुई कविता .
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी
यही प्रयास शायद कामयाब हो ...बहुत अच्छी रचना ...
आपकी रचना गहरे विचारों से परिपूर्ण होती है।
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
कमाल की अभिव्यक्ति ...... यही है जीवन जीने की अर्थपूर्ण राह.....
प्रभाशाली लेखन।
आभार,
bahut khub....
आतंकवाद के प्रभावों का करुणक्रंदन। सुन्दर अभिव्यक्ति।
सही कह रहे हैं। आशा का दीपक नहीं बुझना चाहिए। वो सुबह कभी तो आएगी.....
बेहद मार्मिक चित्रण किया है दिल गमगीन हो गया है …………कुछ कहने की सामर्थ्य नही है सिर्फ़ इतना ही कि आप की कलम इसी तरह चलती रहे और जहाँ को रोशनी देती रहे।
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
आदरणीय मर्मज्ञजी,
एक दीया तो आपने जला ही दिया है. भगवान इस दीये में तेल की बरक़त करते रहें ताकि एक दिन इसकी रोशनी उनतक भी पहुँच सके जो आज जाति, धर्म, देश, प्रांत, भाषा, वेश-भूषा आदि के नाम पर नसले आदम का खून पानी की तरह बहा रहे हैं. बहुत ही प्रभावशाली !!!
जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं ...
ज्ञान जी ... ये पूरा सिलसिला सच में दहला देने वाला था ... बहुत मुश्किल होता है शब्दों में बयान करना ... पर आप सफल हुवे हैं इस ख़ौफ़ के मंज़र को हूबहू उतरने में ...
ज्ञानचंद जी,
आपकी इस पोस्ट को पड़कर रोंगटे खड़े हो गए है.......बहुत ही सुन्दर......ढेरो शुभकामनायें आपको इस रचना के लिए|
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
आतंकवाद की वीभत्सतता का सिलसिलेवार चित्रण कर दिया है आपने ।
मर्मज्ञ जी!
आप सचमुच मर्मज्ञ हैं.. इस शृंखला की हर कड़ी दिल को झकझोरती है. शायद इसीलिये
.
मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देखकर दुनिया, बड़ा होने से डरता है!
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html
आद.संगीता जी,
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
बहुत सार्थक सन्देश देती पँक्तियाँ है। आपने इस रचना मे जो दिया जलाया है उसकी रोशनी सब तक पहुँचे। धन्यवाद।
.
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!
बहुत गहराई से सत्य को चित्रित करती हुई उम्दा रचना।
.
बेहतरीन रचना !
आदरणीय मर्मज्ञ जी.
नमस्कार !
बिल्कुल सच्चाई बयां करती हुई कविता
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
दिल की गहराई से निकली हुई मर्मज्ञ रचना पढवाने के लिए शुक्रिया .
आपकी लेखन कला को इस बालक का प्रणाम
- अमन अग्रवाल "मारवाड़ी"
amanagarwalmarwari.blogspot.com
marwarikavya.blogspot.com
ज्ञान चंद जी, आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ और मैं अभिभूत हूँ, आपकी लेखनी में तो सुप्त चेतना को जागृत करने की शक्ति है. एक एक शब्द झकझोर देता है आत्मा को... आपकी लेखनी को प्रणाम... धन्यवाद करती हूँ चर्चामंच का जिसके माध्यम से आपकी रचनाएँ पढ़ने का सुअवसर मिला
रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!
बहुत ही सार्थक रचना ...
रोंगटे खड़े हो गए ...
लेखनी तो यही है बड़े भाई !
ऐसे झकझोरा है आपकी इस रचना ने कि कुछ कहते नहीं बन पड़ रहा...
ईश्वर आपकी लेखनी पर सदा sahaay rahen...
अक्सर ही aapke adwiteey lekhni निःशब्द कर जाया करती है...
कमाल की अभिव्यक्ति ...... यही है जीवन जीने का मर्म। सार्थक है आप मर्मज्ञ है।
जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!
हृदयविदारक,बेहद मार्मिक और दिल से निकली बातें
waah bahut sunder rachna ........
http://amrendra-shukla.blogspot.com/
इस नाचीज के ब्लॉग मे आकार टिपण्णी करने के लिए आपका ह्रदय की गहरइयो से अभिनन्दन. आपने मेरे ब्लॉग मे आकार जो मेरा मान बदाय है उसका मे कोटि कोटि आभारी हूँ . हम जैसे नवोदित कलाकार आपके ही सहयोग से आगे बढ़ पाते है
सर, क्या प्रतिक्रिया दें? आपकी रचना के आगे मेरे शब्द छोटे पड़ जाएंगे. बेहद उम्दा. लाजबाव.
-
सागर by AMIT K SAGAR
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
bahot hi sunder... kash is diye ki roshni badti jaae.
achchhi, prabhavshalee kavitaa parh kar tasalli hui ki itana sundar-sargarbhit likhane vale log abhi bhi hai. badhai.
कल यही हादसे फिर पिघल कर,
तेरी आँखों के सैलाब होंगे !
जब तेरे स्वप्न भी चूर होंगे,
तुम भी रोने को बेताब होगे !
--
रचना के सभी छंद मन को झकझोर देते हैं!
बहुत उम्दा रचना है!
मन को छू लेने वाली रचना है आपकी
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
दुनियाँ का जो रूप अपने पेश किया है, ऊपर लिखी पंक्तियों ने उसका सार बयान कर दिया है.
इस अभिव्यक्ति के लिए आप बधाई के पात्र है.
"नोच कर दूध के स्तनों को, क़त्ल माँ का किये जा रहे हो!" बहुत खूब. इसकेलिए एक फोटो अलग से भेज रहा हूँ.
aacha blog hai aapka dear\\
Music Bol
Lyrics Mantra
कुछ यहाँ कुछ वहां तन-बदन है,
लाश पर हर पलक बिन नयन है!
लाल धरती पर रोया गगन है,
हर जनाज़ा यहाँ बेकफ़न है!
गज़ब...बहुत प्रेरक गीत है आपका..बधाई स्वीकारें
नीरज
काश ऐसा हो और जल्द से जल्द हो.
बहुत मार्मिक कविता .... शुभकामनाओं के साथ!
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
बस इसी रात के गुजरने का इन्तजार है ....
ये दिया हमें ही जलाना है ....
जिसे आपकी ये पंक्तियाँ जलाये जा रही हैं .....
आदरणीय ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी
नमस्कार !
कमाल है आपकी लेखनी ! आतंकवाद पर पूरी शृंखला ने प्रभावित किया ।
… जैसे सार भी बता दिया …
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
आप दक्षिण में रहते हुए भी हिंदी में उत्कृष्ट लेखन कर रहे हैं , नमन है !
~*~आपके संपूर्ण लेखन के लिए हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
गहरा प्रभाव छोड़ती है आपकी कविता .कुछ पंक्तियाँ तो बार-बार मन में घूमने लगती हैं - साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
बस आशा का स्वर बना रहे जो अँधेरों में खोने न दे !
.....जब से आकाश उनका हुआ है,
पंख नीलाम करने लगे हैं!
हादसों की ख़बर सुन के बच्चे,
पैदा होने से डरने लगे हैं!............
बहुत ही सुन्दर......ढेरो शुभकामनायें आपको इस रचना के लिए|
kewal jee...aman aur shanti ke naam aapke iss sandesh "bas diya jalana jaruri hai"..........dil ko choo gayeee........:)
bahut acchhi bhaavnaa se likhi gayi hai kavitaa....!!
hats of to you Gyanchand ji...
bahut hi lajvaab likhte hai...
अंत बहुत सुंदर रहा ...
बहुत ही खुबसूरत अंदाज़ है आपका कविता कहने का ।
एक ही शब्द ”बेहतरीन"
चीख़ उभरी है फिर वादियों में,
ख़ून फिर से बहा बन के पानी!
लाख ख़ूनी कलम आज़मा लो,
लिख न पाओगे कोई कहानी!
कल यही हादसे फिर पिघल कर,
तेरी आँखों के सैलाब होंगे !
जब तेरे स्वप्न भी चूर होंगे,
तुम भी रोने को बेताब होगे !
क्या बात है !
ये रात अवश्य गुज़र जाएगी
इंशाअल्लाह ! एक दिन शायद इस रात की सुबह आ ही जाएगी...। बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर गई आप की यह धारावाहिक रचना...।
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
बहुत -बहुत धन्यवाद इस सुन्दर रचना के लिए..
बहुत सार्थक तरीके से आपने अपनी बात कही है ...
ज्ञानजी, आपकी भावनाओं को सलाम करने का जी चाहता है।
---------
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेखा,टोने-टोटके।
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है ?
... behad prasanshaneey lekhan ... badhaai !!
मार्मिक कविता के लिए मर्मग्य जी धन्यवाद.
आप सचमुच मर्मज्ञ हैं
ये गीत अच्छे लगे
भावप्रवण तो हैं ही मुद्दे भी ज्वलंत हैं
सभी पाठकों एवं शुभचिंतकों के प्रति हृदय से आभार प्रकट करता हूँ !
साँस आधी है धड़कन अधूरी,
फिर भी जीने की कोशिश है पूरी!
रात गुज़रेगी इस 'रात' की भी,
बस दीया है जलाना ज़रूरी!
bahut hi badhiya .kamaal ka likha hai .badhai .
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