यूँ तो दुनियाँ में रोज नए नए प्रयोग किये जाते हैं जिसमें कुछ तो सफल होते हैं और कुछ असफल, मगर आज मैं जिस `प्रयोग`की बात करने जा रहा हूँ वह वर्षों पहले किया गया और पूरी तरह सफल हुआ !
लोकतंत्र की सफलता के लिए शायद ऐसे प्रयोग जरुरी हों तभी तो यह आज भी जारी है.........
हमेशा की तरह आपके सारगर्भित विचारों की बेसब्री से प्रतीक्षा रहेगी !
प्रयोग
पीड़ा के नुकीले चाकू से काटकर
व्यवस्था की परखनली में लिया गया ,
फिर उसे
सपनों की आंच पर खूब भूना गया !
पंखुड़ियों का रंग जब सफेद पड़ गया,
परखनली में
बूंद भर
शुद्ध वादों के रस को डाल दिया गया !
पंखुड़ियाँ
स्पर्श पाते ही पिघल गयीं,
पूरी तरह तरल हो बहने लगीं,
फिर तभी उन्हें
आशाओं के एक बड़े पात्र में उड़ेल कर
आशाओं के एक बड़े पात्र में उड़ेल कर
सुनहरे भविष्य से ढक दिया गया !
अगली सुबह ,
जब खोला गया
तो -
इन खोखले प्रयोगवादी
वैज्ञानिकों की
खुशी का कोई ठिकाना न रहा !
पूरी तरह सफल हुआ था ,
वह ' फूल '
उस पात्र में जम कर
पत्थर हो गया था ,
जिसे -
फूलों की ही तरह तराश कर
हर घर में सजाया गया ,
और
इस तरह
भारत का
एक ' आम-आदमी ' बनाया गया !
- ज्ञानचंद मर्मज्ञ
27 टिप्पणियां:
सबको आम आदमी बनाया जा रहा है।
wahhh ni:shabd
bandhaii swikaren
डॉ टी एस दराल :
यथार्थ को दर्शाती , एक मर्मस्पर्शी रचना ।
वर्तमान परिवेश पर गहरा कटाक्ष ।
डॉ टी एस दराल द्वारा मर्मज्ञ: "शब्द साधक मंच" के लिए ७ नवम्बर २०१० ९:०० अपराह्न को पोस्ट किया गया
बहुत शाशाक्त .. सामाजिक व्यवस्था पर गहरी चोट करती .... लाजवाब रचना ..... आपको और परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं ..
पत्थर होते जाते आम आदमी के निर्माण व्यवस्था पर सटीक कविता ...!
आपकी रचना बिल्कुल सत्य के करीब है। हृदय को छू गया आपका यह प्रयोग। बधाई स्वीकार करें।
ज्ञानचन्द जी बहुत प्रभावी रचना है । बधाई !
रचना के संदर्भ में कहें तो... अति सुन्दर ‘प्रयोग’ है यह!
और उस यथातथ्य रजनीतिक संदर्भ में कहें जिसे आप लेकर चलें हैं तो... यह समाज और सियासत की एक ‘कुरूप’ सच्चाई है!
चिंतन का कोर कुरेदने के लिए बधाई...!
bahut khoob...aam aadmi ki badi sahi vyakhya ki aapne...badhai...
मन को छू गया.
eएक सार्थक सुन्दर प्रयोग। बधाई।
बहुत अलग तरीक़े से आपने आम आदमी को दर्शाया है। आपकी लेखनी को सलाम।
सभी पाठकों एवं शुभचिंतकों को अपनी सार्थक टिप्पणियों द्वारा मेरा मनोबल बढ़ाने हेतु धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
प्रतीकों और बिम्बों से लबरेज़ कविता.
आम आदमी पर आधारित
परन्तु आम आदमी की समझ से परे..
मेहनत तो की है रचनाकार ने.
शायद थोड़ा सरलीकरण की ज़रुरत थी.
मगर तब इसे प्रयोग की संज्ञा से नवाजना मुश्किल हो जाता.
फ़िलहाल तो इसे प्रयोग कहेंगे
bahut sundar prastuti.....bhavpoorna
व्यवस्था पर कठोर कटाक्ष
आपकी रचना में आपके अंतस की संवेदनशीलता साफ़ झलक रही है .प्रभावी लेखन .
badi sundarta se prayogatmakta ke saath aam aadmi ki vyatha ko chuwa hai!
shubhkamnayen!
regards,
पत्थर होते जाते आम आदमी के निर्माण ....
आपकी रचना को सोचने पर मजबूर कर गयी
ajijan mstani ki smiksha aapko pasand aai , bhut bhut dhnywaad .
pryod bhut tikha vyngy hai . sach ko ujagr krti , mnhsthiti ke vishad ko prstut krti bhut umda prstuti .
बेहतरीन लिखा है आपने...
प्रोत्साहन के लिए आप सभी का हृदय से आभार प्रकट करता हूँ !
ज्ञानचंद मर्मज्ञ
मर्मज्ञ जी, आपकी यह कविता गहन चिंतन की पराकाष्ठा ही कही जायेगी. खास लोगों की गौरो-फिक्र करने वालों के इस दौर में आप जैसे चंद फ़रिश्ते भी मौजूद हैं जो आम आदमी के लिए खास ढ़ंग की सोच रखते हैं. आफरीन और बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए! मुझे अफ़सोस है कि मैं व्यस्त रहने के कारण आपकी पोस्ट बहुत देर बाद ही देख पाया हूँ. अश्विनी कुमार रॉय
bahut sunder aur skaratmak rachna.....
मेरे ब्लॉग जज़्बात....दिल से दिल तक पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया.....आशा करता हूँ की आप आगे भी ऐसे ही हौसलाफजाई करते रहेंगे|
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए- (अरे हाँ भई, सन्डे को को भी)
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एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
शशक्त रचना.बिबों का अनछुआ प्रयोग.यूँ ही लिखते रहें.
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असंवेदनशील समाज द्वारा किये गए खोखले वादों के मध्य , अपने सपनों को तलाशता हुआ , जिन्दा लाश बना , आम आदमी चरितार्थ कर रहा है परखनली में हुए इस प्रयोग को। बहुत सटीक व्यंग !
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