ज्ञानचंद मर्मज्ञ

मेरे बारे में

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Bangalore, Karnataka, India
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
!! श्री गणेशाय नमः !!

" शब्द साधक मंच " पर आपका स्वागत है
मेरी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

- ज्ञान चंद मर्मज्ञ

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रविवार, 7 नवंबर 2010

प्रयोग


यूँ तो दुनियाँ में रोज नए नए प्रयोग किये जाते हैं जिसमें कुछ तो सफल होते हैं और कुछ असफल, मगर आज मैं जिस `प्रयोग`की बात करने जा रहा हूँ वह वर्षों पहले किया गया और पूरी तरह सफल हुआ !
लोकतंत्र की सफलता के लिए शायद ऐसे प्रयोग जरुरी हों तभी तो यह आज भी जारी है.........
हमेशा की तरह आपके सारगर्भित विचारों की बेसब्री से प्रतीक्षा रहेगी !


प्रयोग
एक फूल की पंखुड़ियों को
पीड़ा के नुकीले चाकू से काटकर
व्यवस्था की परखनली में लिया गया ,
फिर उसे
सपनों की आंच पर खूब भूना गया !
पंखुड़ियों  का रंग जब सफेद पड़ गया,
तो-
परखनली में       
बूंद भर
शुद्ध वादों के रस को डाल दिया गया !
पंखुड़ियाँ
स्पर्श पाते ही पिघल गयीं,
पूरी तरह तरल हो बहने लगीं,
फिर तभी उन्हें 
आशाओं के एक बड़े पात्र में उड़ेल कर 
सुनहरे भविष्य से ढक दिया गया !
अगली सुबह ,
जब खोला गया 
तो -
इन खोखले प्रयोगवादी
वैज्ञानिकों की 
खुशी का कोई ठिकाना न रहा !
क्यों कि -       
' प्रयोग ' 
पूरी तरह सफल हुआ था ,
वह ' फूल '
उस पात्र में जम कर 
पत्थर हो गया था ,
जिसे -
फूलों की ही तरह तराश कर 
हर घर में सजाया गया ,
और 
इस तरह
भारत का 
एक ' आम-आदमी ' बनाया गया !
                            - ज्ञानचंद मर्मज्ञ

27 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सबको आम आदमी बनाया जा रहा है।

निर्झर'नीर ने कहा…

wahhh ni:shabd

bandhaii swikaren

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

डॉ टी एस दराल :

यथार्थ को दर्शाती , एक मर्मस्पर्शी रचना ।
वर्तमान परिवेश पर गहरा कटाक्ष ।



डॉ टी एस दराल द्वारा मर्मज्ञ: "शब्द साधक मंच" के लिए ७ नवम्बर २०१० ९:०० अपराह्न को पोस्ट किया गया

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत शाशाक्त .. सामाजिक व्यवस्था पर गहरी चोट करती .... लाजवाब रचना ..... आपको और परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं ..

वाणी गीत ने कहा…

पत्थर होते जाते आम आदमी के निर्माण व्यवस्था पर सटीक कविता ...!

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

आपकी रचना बिल्कुल सत्य के करीब है। हृदय को छू गया आपका यह प्रयोग। बधाई स्वीकार करें।

सहज साहित्य ने कहा…

ज्ञानचन्द जी बहुत प्रभावी रचना है । बधाई !

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar ने कहा…

रचना के संदर्भ में कहें तो... अति सुन्दर ‘प्रयोग’ है यह!

और उस यथातथ्य रजनीतिक संदर्भ में कहें जिसे आप लेकर चलें हैं तो... यह समाज और सियासत की एक ‘कुरूप’ सच्चाई है!

चिंतन का कोर कुरेदने के लिए बधाई...!

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

bahut khoob...aam aadmi ki badi sahi vyakhya ki aapne...badhai...

PN Subramanian ने कहा…

मन को छू गया.

निर्मला कपिला ने कहा…

eएक सार्थक सुन्दर प्रयोग। बधाई।

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अलग तरीक़े से आपने आम आदमी को दर्शाया है। आपकी लेखनी को सलाम।

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

सभी पाठकों एवं शुभचिंतकों को अपनी सार्थक टिप्पणियों द्वारा मेरा मनोबल बढ़ाने हेतु धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

Kunwar Kusumesh ने कहा…

प्रतीकों और बिम्बों से लबरेज़ कविता.
आम आदमी पर आधारित
परन्तु आम आदमी की समझ से परे..
मेहनत तो की है रचनाकार ने.
शायद थोड़ा सरलीकरण की ज़रुरत थी.
मगर तब इसे प्रयोग की संज्ञा से नवाजना मुश्किल हो जाता.
फ़िलहाल तो इसे प्रयोग कहेंगे

Anamikaghatak ने कहा…

bahut sundar prastuti.....bhavpoorna

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

व्यवस्था पर कठोर कटाक्ष

shikha varshney ने कहा…

आपकी रचना में आपके अंतस की संवेदनशीलता साफ़ झलक रही है .प्रभावी लेखन .

अनुपमा पाठक ने कहा…

badi sundarta se prayogatmakta ke saath aam aadmi ki vyatha ko chuwa hai!
shubhkamnayen!
regards,

Coral ने कहा…

पत्थर होते जाते आम आदमी के निर्माण ....

आपकी रचना को सोचने पर मजबूर कर गयी

RAJWANT RAJ ने कहा…

ajijan mstani ki smiksha aapko pasand aai , bhut bhut dhnywaad .
pryod bhut tikha vyngy hai . sach ko ujagr krti , mnhsthiti ke vishad ko prstut krti bhut umda prstuti .

abhi ने कहा…

बेहतरीन लिखा है आपने...

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

प्रोत्साहन के लिए आप सभी का हृदय से आभार प्रकट करता हूँ !
ज्ञानचंद मर्मज्ञ

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy ने कहा…

मर्मज्ञ जी, आपकी यह कविता गहन चिंतन की पराकाष्ठा ही कही जायेगी. खास लोगों की गौरो-फिक्र करने वालों के इस दौर में आप जैसे चंद फ़रिश्ते भी मौजूद हैं जो आम आदमी के लिए खास ढ़ंग की सोच रखते हैं. आफरीन और बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए! मुझे अफ़सोस है कि मैं व्यस्त रहने के कारण आपकी पोस्ट बहुत देर बाद ही देख पाया हूँ. अश्विनी कुमार रॉय

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

bahut sunder aur skaratmak rachna.....

बेनामी ने कहा…

मेरे ब्लॉग जज़्बात....दिल से दिल तक पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया.....आशा करता हूँ की आप आगे भी ऐसे ही हौसलाफजाई करते रहेंगे|

कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए- (अरे हाँ भई, सन्डे को को भी)

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sandhyagupta ने कहा…

शशक्त रचना.बिबों का अनछुआ प्रयोग.यूँ ही लिखते रहें.

ZEAL ने कहा…

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असंवेदनशील समाज द्वारा किये गए खोखले वादों के मध्य , अपने सपनों को तलाशता हुआ , जिन्दा लाश बना , आम आदमी चरितार्थ कर रहा है परखनली में हुए इस प्रयोग को। बहुत सटीक व्यंग !

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