देश का यूँ पतन नहीं होता
एक छोटा सुराख़ है बाकी ,
देख लेना कोई ग़म आ न जाए !
अँगुलियों के बढ़ गए नाख़ून फिर
ये उदासी इस शहर को खा न जाए!
लुट रही है सिया जंगलों में,
कर सका ना कोई राम रक्षा !
अब ना लपटों में सीता जलेगी,
अब ना देगी कोई भी परीक्षा !
अब कभी हँसने का मन नहीं होता
क्या करें कुछ जतन नहीं होता !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
अपने पैरों के छालों से डरकर,
रास्ते मखमली न बनाना !
बेबसी के शहर में कभी भी ,
हादसों की गली न बनाना !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
45 टिप्पणियां:
अपने पैरों के छालों से डरकर,
रास्ते मखमली न बनाना !
बहुत सही कहा आपने ... बेहतरीन रचना !
आपकी रचनायें ।झकझोर जाती हैं…………बेहद उम्दा रचना
अब कभी हँसने का मन नहीं होता
क्या करें कुछ जतन नहीं होता !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
बहुत खूब मर्मज्ञ भाई , एक सामयिक और अनुकरणीय रचना ! आभार आपका !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
जहाँ आँख खुले , वहीँ सवेरा है ।
अभी भी संभल जाएँ तो अच्छा है ।
बढ़िया रचना ।
देश के पतन का सही कारण ढूंढ़ लिया आपने, बधाई
दर्दनीय कविता ....सोंचने को बाध्य करती है !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
सही कहा आपने "देश का यूँ पतन नहीं होता"
सटीक और प्रासंगिक प्रस्तुति ...
अब कभी हँसने का मन नहीं होता
क्या करें कुछ जतन नहीं होता !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
बहुत सही कहा आपने ... …
बेहद उम्दा रचना
बहुत खूब.
एक छोटा सुराख़ है बाकी ,
देख लेना कोई ग़म आ न जाए !
अँगुलियों के बढ़ गए नाख़ून फिर
ये उदासी इस शहर को खा न जाए!
बहुत ही खूब.
लुट रही है सिया जंगलों में,
कर सका ना कोई राम रक्षा !
अब ना लपटों में सीता जलेगी,
अब ना देगी कोई भी परीक्षा !
अब कभी हँसने का मन नहीं होता
क्या करें कुछ जतन नहीं होता !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
Kya gazab baat kahee hai!Behad sashakt rachana!
बेबसी भरे हादसे ही दिखते हैं।
अपने पैरों के छालों से डरकर,
रास्ते मखमली न बनाना !
बेबसी के शहर में कभी भी ,
हादसों की गली न बनाना !
कर्तव्यों के प्रति सचेत करती पंक्तियाँ......
इस कविता में भी आपका निराला अंदाज झलक रहा है। हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
सटीक और प्रासंगिक प्रस्तुति|धन्यवाद|
लुट रही है सिया जंगलों में,
कर सका ना कोई राम रक्षा !
अब ना लपटों में सीता जलेगी,
अब ना देगी कोई भी परीक्षा ....
Very appealing lines !
.
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
बिलकुल सही कहा बहुत अच्छी रचना। बधाई।
अपने पैरों के छालों से डरकर,
रास्ते मखमली न बनाना !
पते की बात
सार्थक रचना, मर्मज्ञ जी, बेहद अच्छी अभिव्यक्ति!!
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सुज्ञ: ईश्वर सबके अपने अपने रहने दो
कभी-कभी लुटेरों से वफ़ा आदतन की जाती है कभी लोभ, कभी मजबूरी लेकिन कीमत हर हाल में चुकानी ही पड़ती है, सोचने पर विवश करती रचना !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
बहुत सटीक स्पष्ट और सही बात कही है आपने.
आपकी सोंच और क़लम का जवाब नहीं,मर्मज्ञ जी.
वाह.
बहुत सुन्दर. शानदार
दुनाली पर
लादेन की मौत और सियासत पर तीखा-तड़का
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
सटीक सोच, उत्तम अभिव्यक्ति.
आपकी कवितायेँ इतना ओज समेटे होती हैं कि नसों में लहू दौड़ने लगता है और दिमाग सोचने पर विवश हो जाता है.. जीवन का जीवन से परिचय कराती कविता..
अब कभी हँसने का मन नहीं होता
क्या करें कुछ जतन नहीं होता !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
एकदम सटीक सच्ची और अच्छी पंक्तियाँ..... बहुत बढ़िया
सुभानाल्लाह..........हैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए ..........
आदरणीय ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी
नमस्कार !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
बिलकुल सही कहा बहुत अच्छी रचना। बधाई।
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी विशेषकर
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
आभार.
अब कभी हँसने का मन नहीं होता
क्या करें कुछ जतन नहीं होता !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
सोंचने को बाध्य करती है....बेहद उम्दा रचना
बहुत बहुत सुन्दर सार्थक ओजपूर्ण इस रचना के लिए आपका साधुवाद !!
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
सोंचने को बाध्य करती है !सटीक और प्रासंगिक प्रस्तुति|धन्यवाद|
'गर लुटेरों से वफ़ा ना करते
देश का यूँ पतन नहीं होता '
.................यथार्थ का भावपूर्ण चित्रण
..............सभी मुक्तक अर्थपूर्ण
अपने पैरों के छालों से डरकर,
रास्ते मखमली न बनाना !
बेबसी के शहर में कभी भी ,
हादसों की गली न बनाना !
बहुत अच्छे भाव हैं रचना के। धन्यवाद।
अब कभी हँसने का मन नहीं होता
क्या करें कुछ जतन नहीं होता !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
वाह, मर्मज्ञ जी, बहुत खूब।
इस प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए आभार।
आद. महेंद्र वर्मा जी की मेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी :
अब कभी हँसने का मन नहीं होता
क्या करें कुछ जतन नहीं होता !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता !
वाह, मर्मज्ञ जी, बहुत खूब।
इस प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए आभार।
mahendra verma द्वारा मर्मज्ञ: "शब्द साधक मंच" के लिए १२ मई २०११ ७:५४ अपराह्न को पोस्ट किया गया
अब कभी हँसने का मन नहीं होता
क्या करें कुछ जतन नहीं होता !
गर लुटेरों से वफ़ा ना करते,
देश का यूँ पतन नहीं होता ....
बहुत सच्ची बात लिखी है ज्ञान जी । आज भी यदि लुटेरों को पहचान सकें तो भी इस पतन से बचा जा सकता है।
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असरदार रचना
बधाई
भावों को रचना में बड़े कौशल से पिरोया गया है। साधुवाद।
झकझोर देने वाली रचना ..
गर लुटेरों से वफा न करते ,देश का यूं पतन न होता ...
सुन्दर रचना पढवाई आपने .शुक्रिया !
प्रभावशाली रचना, सही चिंता है आपकी !आभार !
एक छोटा सुराख़ है बाकी ,
देख लेना कोई ग़म आ न जाए !
अँगुलियों के बढ़ गए नाख़ून फिर
ये उदासी इस शहर को खा न जाए!
बहुत खूब मर्मज्ञ जी आपने तो अंदर तक हिला दिया. बहुत खूबसूरत शेर और सुंदर गज़ल. बहुत ही सामयिक रचना, धन्यबाद.
Very nice and meaningful. I wish you all the best.
अँगुलियों के बढ़ गए नाख़ून फिर
ये उदासी इस शहर को खा न जाए!
बहुत सृजनात्मक पंक्तियाँ हैं.
बहुत मखमली सी सुन्दर और भावप्रणव रचना!
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