जो समाज औरत को देवी का दर्ज़ा देता है वही उस औरत को वेश्या बनने के लिए मजबूर करते समय देवी तो क्या माँ ,बहन, बेटी सभी को भूल जाता है ! किसी के कोमल सपनों को रौंद कर उसकी मजबूरियों को नंगा करने का यह अक्षम्य अपराध हमारे खूबसूरत समाज का एक ऐसा दाग़ है जो हर युग में चीख़ चीख़ कर इस बात की गवाही देता रहेगा कि मनुष्य सभ्यता का नक़ाब ओढ़े एक बेहद घिनौना प्राणी है !
कुछ ऐसे ही टूटे हुए बेजान सपनों की मजबूरियों से उपजी आँहों और सिसकियों की सौगात "वेश्या" लेकर आज आपके बीच उपस्थित हुआ हूँ ! यह एक प्रयास है उनके दुखों को बाँटने का और समाज के घिनौने चहरे से वह मुखौटा नोचकर फ़ेंकने का जिसे पहनकर यह समाज अच्छा होने का ढोंग रचता है ! इस प्रयास में मैं कितना सफल हुआ हूँ , यह तो आप ही बता सकते हैं !
रात भर ही ये दूल्हा जियेगा
फूल की बेबसी की कहानी,
फूल से फिर सजाई गयी है !
आदमी की वफ़ाओं की औरत,
आज वेश्या बनाई गयी है !
जिन किताबों की हैं दास्तानें ,
उनके पन्नों पे कीलें गडी हैं !
जिन निगाहों में सपने उगे थे ,
उनमें मजबूरियों की लड़ी है !
जिस्म के भेड़ियों को पता है ,
तू महज एक दिन की है रानी!
रोज राजा बदलते रहेंगे ,
जब तलक है महल में रवानी !
कोई बाबुल नहीं कोई भाई ,
याद कैसे ज़माने को आई!
तू है नीलाम की चीज कोई,
फिर दरिंदों ने बोली लगाई!
हो गयी रात अब लाश को तुम,
करके श्रृंगार दुल्हन बना लो!
कल जो चुम्बन दिया था किसी ने,
अपने होठों से तुम पोंछ डालो !
कल जो आया था वो जा चुका है,
भर गया जी तुम्हें खा चुका है !
आज नाज़ुक कली को मसलने ,
एक नया बागबाँ आ चुका है !
फ़ेंक दो दूर इन साड़ियों को ,
आँसुओं से बदन ढाँक डालो!
खोल दो स्तनों का जनाज़ा ,
चोलियों का कफ़न फूँक डालो !
तू अभागिन दुल्हन रात भर की ,
रात भर ही ये दूल्हा जियेगा !
रोयेगी बैठ कर फिर अकेली,
लौट कर ना ये आँसू पियेगा !
रो रही है तू सदियों से यूँ ही,
जाने कब तक तू रोती रहेगी !
राक्षसों के कलेजे से लगकर,
लाश बनकर तू सोती रहेगी !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
63 टिप्पणियां:
मार्मिक चित्रण!! मौन से बड़ा कोई वक्तव्य नहीं है!!
औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया!!आज आपकी कविता उसी मेयार की!!
कटु सत्य । वास्तव में मौन से बडा कोई वक्तव्य नहीं है ।
कल जो आया था वो जा चुका है
भर गया जी तुम्हें खा चुका है
आज नाज़ुक कली को मसलने
एक नया बागबाँ आ चुका है
जिस सादगी और सलासत से आप अपनी बात कह लेते हैं मर्मज्ञ जी, वो हुनर अल्लाह सबको नहीं देता. गज़ब की क़लम है आपकी.
गज़ब ढाते हैं आप गज़ब. वाह वाह वाह.
सच , नारी को वैश्यावृत्ति की तरफ धकेलने के लिए ये समाज ही ज़िम्मेदार है.
किसी का एक शेर याद आ रहा है,बड़ा मौज़ू है.. आप भी देखिये:-
उसने तो जिस्म को ही बेचा है,
एक फांके को टालने के लिए.
लोग ईमान बेच देते हैं ,
अपना मतलब निकालने के लिए.
आपने तो सारी सच्चाई इस तरह बयान की है कि अन्दर तक हिल गये है…………इतना मार्मिक और जीवन्त चित्रण किया है कि कुछ कहने के लिये शब्द नही हैं…………निशब्द कर दिया है।
रो रही है तू सदियों से यूँ ही,
जाने कब तक तू रोती रहेगी !
राक्षसों के कलेजे से लगकर,
लाश बनकर तू सोती रहेगी !
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बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना!
रो रही है तू सदियों से यूँ ही,
जाने कब तक तू रोती रहेगी !
राक्षसों के कलेजे से लगकर,
लाश बनकर तू सोती रहेगी !
समाज के इस घिनौनेपन को आपने इस तरह जीवंत किया है जैसे सामने कोई दृश्य घटित हो रहा हो .....इस वास्तविकता से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि जिस औरत को हम देवी समझते हैं ...उस वक़्त कहाँ जाता है हमारी यह श्रद्धा भाव जब हम किसी औरत को वेश्या बनाने की राह पर ले जाते हैं ...
बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना, कटु सत्य...........
स्त्री कों उपभोग की वस्तु समझ उसका अपमान सदियों से हो रहा है । उसकी लाचारी का फायदा वेह्शी दरिन्दे उठाते ही रहेंगे ।
मार्मिक ...संवेदनात्मक चित्रण ...... निशब्द करने वाली पंक्तियाँ रची हैं आपने ....
मुझे समझ नही अता किसी की लाचारी का, मजबुरी का लाभ ऊथा कर लोग केसे खुश हो जाते हे, एक तरफ़ इसे पुजते हे तो दुसरी तरफ़ इसे खरीदते हे.. बहुत मार्मिक लेख लिखा आप ने धन्यवाद
आद. वंदना जी,
मेरी अभिव्यक्ति को चर्चा मंच पर सम्मान देने के लिए आपका आभार प्रकट करता हूँ
आद. सलिल जी,सुशील जी, कुसुमेश जी ,वंदना जी,शास्त्री जी,केवल राम जी,संध्या जी,मोनिका जी,दिव्या जी,और राज भाटिया जी !
आप सभी का आशीर्वाद ही मेरे भावों को शब्दों में ढलने की प्रेरणा देता है !
आप सभी का हृदय से आभार !
वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर said...
डॉ. डंडा लखनवी जी के दो दोहे
माननीय डॉ. डंडा लखनवी जी ने वृक्ष लगाने वाले प्रकृतिप्रेमियों को प्रोत्साहित करते हुए लिखा है-
इन्हें कारखाना कहें, अथवा लघु उद्योग।
प्राण-वायु के जनक ये, अद्भुत इनके योग॥
वृक्ष रोप करके किया, खुद पर भी उपकार।
पुण्य आगमन का खुला, एक अनूठा द्वार॥
इस अमूल्य टिप्पणी के लिये हम उनके आभारी हैं।
http://pathkesathi.blogspot.com/
http://vriksharopan.blogspot.com/
पीड़ा बहा दी शब्दों से आपने।
बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना, कटु सत्य...........
अति मार्मिक......नंगा सच......सुन्दरतम|
नारी किसी उपभोग की वस्तु नहीं, ये पुरुषों की गन्दी मानसिकता ही उसे बाजार तक लेकर आई है. आभार.
सशक्त शब्दों में अति कटु सत्य ।
बहुत मार्मिक प्रस्तुति है ।
शब्द हीन हूँ..
कुछ कहते nahi बन रहा...
कोटि कोटि नमन आपकी कलम को...
हो गयी रात अब लाश को तुम,
करके श्रृंगार दुल्हन बना लो!
कल जो चुम्बन दिया था किसी ने,
अपने होठों से तुम पोंछ डालो !
बहुत ही मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...कटु सत्य जो मन को उद्वेलित कर देता है..निशब्द कर दिया आपके द्वारा चित्रित व्यथा ने..आभार
यद्यपि भाव बहुत अच्छे हैं,ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे विषय के लिए गेय शैली अनुकूल नहीं है।
तभी तो कहा गया है....
औरत ने जनम दिया मरदों को
मरदों ने उसे बाज़ार दिया :(
बेहद प्रभावशाली रचना है आपकी..
हमारे समय की एक कटु सच्चाई को अभिव्यक्त करती पंक्तियों के लिये आपको बधाई.
jinti tarif ki jaye aapke lekhan ki kam hai..... :)
इन बेबस नारियों के लिए आपकी यह संवेदना मन को छू गई .
लेकिन सदियों से अब तक चलती आई इस स्थिति को बदला नहीं जा सका -क्यों ?
आदरणीय ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी
नमस्कार !
बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना!
इस वास्तविकता से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि जिस औरत को हम देवी समझते हैं
नारी किसी उपभोग की वस्तु नहीं, ये पुरुषों की गन्दी मानसिकता ही उसे बाजार तक लेकर आई है. आभार.
बहुत सुन्दर रचना... और बहुत सटीक चित्रण... वेश्याओं की बेबसी और उनका शोषण ... आदमी ने क्यों औरतों को उपभोग की वस्तु बना डाला...
खैर ...आपकी रचना ने कई प्रश्न खड़े कर दिए ... सुन्दर रचना.. कटु सत्य बोलती
रो रही है तू सदियों से यूँ ही,
जाने कब तक तू रोती रहेगी !
राक्षसों के कलेजे से लगकर,
लाश बनकर तू सोती रहेगी !
बहुत मार्मिक और भावमय रचना है।
जिस औरत के दूध की पहचान है ज़िन्दगी
उसी औरत पर आज बेईमान है ज़िन्दगी
सच को ब्यां करती रचना के लिये साधूवाद।
साहिर की "जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं..." याद आगई...बेजोड़ रचना...
नीरज
मार्मिक ... बहुत संवेदना है ... सच्ची संवेदना झलकती है आपकी रचना में ...
जिन किताबों की हैं दास्तानें ,
उनके पन्नों पे कीलें गडी हैं !
जिन निगाहों में सपने उगे थे ,
उनमें मजबूरियों की लड़ी है !
मार्मिक रचना!
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ...
क्या कहूं? कटु सत्य है ये तो.
मार्मिक चित्रण ...।
कोई बाबुल नहीं कोई भाई ,
याद कैसे ज़माने को आई!
तू है नीलाम की चीज कोई,
फिर दरिंदों ने बोली लगाई!
sabdo ke jaal se aisa bandha hai aapne ki phir ab jane ki himaat na rahi.......
bahut umda rachna
aabhar
हो गयी रात अब लाश को तुम,
करके श्रृंगार दुल्हन बना लो!
कल जो चुम्बन दिया था किसी ने,
अपने होठों से तुम पोंछ डालो !
bahut hi marmik aur sateek chitran... sir, aap apni koshish mein bilkul kaamyaab hue hain...
मर्मज्ञ जी आपकी यह कविता उस विषय को फिर से उठा रही है जो सदियों से है लेकिन आज के रचनाकार भूल गए हैं..
ek jeeta jagta prmaan jo sabhy -sammj ka aaina dikhati hai .
itni gahri abhivykti aur bahut sateek avam marmik prastuti ,jo dilko bahut kuchh sochne par majbur karti hai.
kash! aap ki itni gahari soch aap ke dil ke dard ka agar das partishat bhisafal ho jaaye to yah vastav me apne aap me aap dwara bahut badi uplabhdhi hogi.ishwar se yahi mangal kamana karti hun.
bahut hi prabhav-shali avam man ki gaharaiyo tak chhoo gai aapki bhav purn prastuti.
poonam
कविता एक दिशा में सोचने मजबूर करती है ।
कटु सत्य ।
बहुत मार्मिक प्रस्तुति है ।
मार्मिक चित्रण ..सच में शब्द नहीं है कुछ और कहने को.
मार्मिक और जीवन्त चित्रण ....ज्ञान चंद जी बधाई
रही है तू सदियों से यूँ ही,
जाने कब तक तू रोती रहेगी !
राक्षसों के कलेजे से लगकर,
लाश बनकर तू सोती रहेगी !
बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना, कटु सत्य.निशब्द कर दिया है।
....
मर्मज्ञ जी आपने शोषित नारी की पीड़ा को शब्दों में बाँधकर नई ऊंचाई दी है ।
कटु सत्य को बखूबी कविता में बांधा....
मन में अवसाद भर देने वाली रचना.
kavita ke madhym se aapne ek vicharniy prasn uthaya hai |nice dost
अच्छी रचना है। आभार।
samaj ki sachai bayan karti rachna.
bahut marmik chitran kiya hai aapne......
samaj ke fatehaal hone ka saboot aapne badi tareeke se dikha diya...:(
pata nahi kab ye badlega....ummid kam hai!!
कामुक वासना ही थी क्या वह गिरा तुम्हारी !
एक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से भारी नारी !!
नर के बांटे क्या नारी की नग्न देह ही आयी !
और नहीं कोई क्या उसका पिता-पुत्र या भाई !!
प्रसंग भिन्न है किन्तु राष्ट्रकवि गुप्त की इन पंक्तियों की संवेदना बरबस याद आ गयी ! हमारे वांगमय में कहा गाया है, 'सत्यम ब्रूयात ! प्रियं ब्रूयात !! न ब्रूयात असत्यामाप्रियम !!! आपने सत्य भी बोला है, कर्णप्रिय भी बोला है.... असत्य तो किंचित नहीं है, प्रथा अप्रिय है, तो उसे बदलना होगा. एक कवि का अपने राष्ट्र और समाज के प्रति दायित्व को आप अपनी कलम से बखूबी जी रहे हैं. धन्यवाद !!
मर्मस्पर्शी रचना ... समाज के कटु सत्य को नंगा करती बेहतरीन कविता !
सत्य किंतु कटु ।
भगवान करे आपकी सुन्दर रचना व मार्मिक चित्रण का प्रभाव उनपर परे जो नारी की ऐसी स्थिति के लिए कारण बनते हैं ...तब ही कुछ चमत्कार हो सकता है
....मार्मिक, हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं। अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
कृपया, इसी विषय पर मेरा लेख (कुछ प्रश्नमय) http://sharadakshara.blogspot.com/ में देखें। शायद आपको रुचिकर लगे।
मन को बड़े गहरे तक छू कर झिंझोड़ डाला आपने...।हिन्दी साहित्य में औरत पर बहुत कविताएँ लिखी गई, पर औरत के इस ऐसे बेबस पहलू को शब्दों में पिरोने की शायद ही किसी ने सोची हो...।
काश ! औरत को इस रूप में धकेलने वालों का ज़मीर जाग पाता...।
बहुत खूब. नारी का महत्व सिर्फ जेण्डर इशू तक सीमित न रहे.
nari durdasha ka bhavpoorn marmik chitran hai aapki racgna me...
bahut sarahniy....
हृदय को आहत करने वाली पंक्तियां हैं।
आखिर कब बदलेगा समाज....कौन बदलेगा?
रो रही है तू सदियों से यूँ ही,
जाने कब तक तू रोती रहेगी !
राक्षसों के कलेजे से लगकर,
लाश बनकर तू सोती रहेगी !
ati uttam ,aapne unki durdasha ko is baariki se bayan kiya hai ki kya kahoon sujh nahi raha ,man bheeg gaya .mahila divas ke liye uttam kriti .dhero badhai ,prayas safal raha .
तू अभागिन दुल्हन रात भर की ,
रात भर ही ये दूल्हा जियेगा !
रोयेगी बैठ कर फिर अकेली,
लौट कर ना ये आँसू पियेगा !
मैं समझ नहीं पा रही हूं कि किन शब्दों में प्रशंसा करूं ,बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ,मन को उद्वेलित करने वाली रचना
आप अपने प्रयास में सफल हैं
कल जो आया था वो जा चुका है,
भर गया जी तुम्हें खा चुका है !
आज नाज़ुक कली को मसलने ,
एक नया बागबाँ आ चुका है !
उपर्युक्त पंक्तियों में बागबां शब्द का उपयोग उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि वह तो हमेशा ही बाग की हिफाज़त करता है. कविता अच्छी है. आपका लेखन पाठकों पर सदा प्रभाव छोड़ता है.
U have touched the very filthy aspect of so called modern human civilisation.
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