आज कई दिनों के अंतराल के बाद आप के बीच एक ग़ज़ल लेकर उपस्थित हुआ हूँ आशा है आप पूर्व की भांति अपनी सारगर्भित टिप्पणियों से अनुग्रहित कर मेरा उत्साहवर्धन करेंगे !
ग़ज़ल
न हीरा, न मोती, न चाँदी, न सोना
है काफ़ी महज़ एक इंसान होना
ये जीवन भी तो एक रेखा गणित है
कभी गोल है तो कभी है तिकोना
न महुआ उगेगा ना बरगद उगेंगे
कभी गांव में तुम शहर को न बोना
जो अम्नो अमाँ की वफ़ा चाहते हो
लहू के निशाँ को लहू से न धोना
न छीनो ये चौखट ना छीनो ये आँगन
मकानों को दे दो मकानों का कोना
उसे सब पता है वही जानता है
किसे कब है हँसना किसे कब है रोना
उसे सब पता है वही जानता है
किसे कब है हँसना किसे कब है रोना
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
51 टिप्पणियां:
गहरी अभिव्यक्ति। आपसे साक्षात मिल लेने के बाद आनन्द भी गहरा गया।
मर्मज्ञ जी ग़ज़ल में मिसरा नहीं बल्कि सूक्ति लिखते हैं,
" जो अम्नो अमाँ की वफ़ा चाहते हो लहू के निशाँ को लहू से न धोना"
बापू ने भी तो यही कहा था, "आँख के बदले आँख, मतलब पूरी दुनिया अंधी।"
सलाह ही नहीं,तथ्य और अनुभव भी।
सुन्दर सार्थक ग़ज़ल ।
वापसी पर स्वागत है ज्ञानचंद जी ।
गजल उम्दा है। आप की सलाह पर 'जनहित'मे स्तुतियाँ देना प्रारम्भ किया है,कृपया एक बार अवलोकन कर लीजिएगा।
http://janhitme-vijai-mathur.blogspot.com/
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई .
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.
ये जीवन भी तो एक रेखा गणित है
कभी गोल है तो कभी है तिकोना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई .
Ekek shabd chunda....ekek pankti bemisaal! Wah!
bhaut hi umda gazal...
न हीरा, न मोती, न चाँदी, न सोना है काफ़ी महज़ एक इंसान होना
सही है, आज का मानव सब कुछ होना चाहता है पर इंसान नहीं होना चाहता...
उम्दा गजल !
सुभानाल्लाह...........हर शेर बेहतरीन .........कोई किसी से कम नहीं.........दाद कबूल करें.........स्वागत है आपका वापसी पर|
Raceived by mail:
Kunwar Kusumesh ने आपकी पोस्ट " है काफ़ी महज़ एक इंसान होना " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
बहुत ज़बरदस्त ग़ज़ल.निम्न शेर में जीवन को एकदम नई तरह से परिभाषित किया है आपने.
ये जीवन भी तो एक रेखा गणित है
कभी गोल है तो कभी है तिकोना
वाह.
मर्मज्ञ जी बधाई. हर शेर मुकम्मल और लाजवाब.
बेहतरीन लिखा है,
noreply-comment@blogger.com to me
show details 1:20 am (2 days ago)
इस्मत ज़ैदी ने आपकी पोस्ट " है काफ़ी महज़ एक इंसान होना " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
न महुआ उगेगा ना बरगद उगेंगे
कभी गांव में तुम शहर को न बोना
जो अम्नो अमाँ की फ़ज़ा चाहते हो
लहू के निशाँ को लहू से न धोना
बहुत ख़ूबसूरत और बा’मानी अश’आर
बहुत उम्दा !!
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!
Great expression...
न हीरा, न मोती, न चाँदी, न सोना है काफ़ी महज़ एक इंसान होना
..sach insan hona hi sabse aham baat hai..baaki sab to baad ke cheez hain..
sundar bhav..
Received by mail:
रचना दीक्षित ने आपकी पोस्ट " है काफ़ी महज़ एक इंसान होना " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
बहुत सुंदर गज़ल. फिर से ब्लॉग पर सक्रिय होने पर आपका स्वागत है.
रचना दीक्षित द्वारा मर्मज्ञ: "शब्द साधक मंच" के लिए ६ दिसम्बर २०११ २:१२ अपराह्न को पोस्ट किया गया
बेहद गहनता लिए प्रत्येक शब्द ... सार्थक प्रस्तुति ।
बेहद खुबसूरत लिखा है , अच्छी लगी .
न हीरा, न मोती, न चाँदी, न सोना है काफ़ी महज़ एक इंसान होना.........सुन्दर सार्थक ग़ज़ल ।
वाकई उसे सब पता है मर्मज्ञ जी !
शुभकामनायें आपको !
न छीनो ये चौखट ना छीनो ये आँगन
मकानों को दे दो मकानों का कोना
...बहुत खूब! हरेक शेर अपने आप में एक गहन सत्य समाये हुए..आभार
ये जीवन भी तो एक रेखा गणित है
कभी गोल है तो कभी है तिकोना
बहुत खूब!
ये जीवन भी तो एक रेखा गणित है
कभी गोल है तो कभी है तिकोना
न महुआ उगेगा ना बरगद उगेंगे कभी गांव में तुम शहर को न बोना
बेहद सुंदर गज़ल ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
अरसे बाद आप के दर्शन कर के प्रसन्नता हुई ज्ञानचन्द भाई जी। बहुत सही बात कही है - " है क़ाफ़ी महज़ एक इंसान होना।"
न महुआ उगेगा ना बरगद उगेंगे
कभी गांव में तुम शहर को न बोना
जो अम्नो अमाँ की फ़ज़ा चाहते हो
लहू के निशाँ को लहू से न धोना
laazwaab ,ati uttam ,pate ki baate hai sabhi .
सुन्दर सार्थक ग़ज़ल| बधाई|
बहुत सुन्दर प्रस्तुति । मेरे मए पोस्ट नकेनवाद पर आप सादर आमंत्रित हैं । धन्यवाद |
बहुत शानदार प्रस्तुति है आपकी.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आप आये,इसके लिए भी आभार.
आना जाना बनाये रखियेगा जी.
bahut hi sarthak abhivyakti..aabhar
mere blog par aapka swagat hai.
क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बहुत सुन्दर गजल ...जितनी तारीफ की जाय
कम होगी
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 28-12-2011 को चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष -2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद ।
न छीनो ये चौखट ना छीनो ये आँगन
मकानों को दे दो म
कानों का कोना, सुन्दर रचना .नव वर्ष मुबारक .
नव वर्ष 2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।
आपकी नई पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार है.
नए साल की हार्दिक बधाई,मर्मज्ञ जी.
उसे सब पता है वही जानता है
किसे कब है हँसना किसे कब है रोना
.........बहुत खूब !
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
न छीनो ये चौखट ना छीनो ये आँगन
मकानों को दे दो मकानों का कोना
बहुत खूब.मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।
प्रभावशाली रचना के लिए बधाई मर्मज्ञ जी !
umda rachna...... bohot sundar :) :)
nice post.....
बेहद सुंदर गज़ल ।
बहुत बढ़िया गजल.
लाजवाब...
gahri soch liye sundar sarthak prastuti
बिलकूल सही कहा आपने
श्रीमान जी आपकी इन रचनाओं में एक एक शब्द सार्थक लगता है
शुक्रिया
Sukhdev 'Karun'
sukhdevkarun.blogspot.com
हमें भी आपके मार्गदर्शन की उम्मीद है
कृपया एक बार आपने अनुभवों से जरुर अवगत कराएँ ।।
आपके मार्गदर्शन का इन्तजार . . .
उसे सब पता है वही जानता है
किसे कब है हँसना किसे कब है रोना
क्या कहें आपकी लेखनी के कायल हैं ।
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