ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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Bangalore, Karnataka, India
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
!! श्री गणेशाय नमः !!

" शब्द साधक मंच " पर आपका स्वागत है
मेरी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

- ज्ञान चंद मर्मज्ञ

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शनिवार, 13 नवंबर 2010

ग़ज़ल

                    कुछ बढ़ाई गई  कुछ घटाई गई


            कुछ  बढ़ाई  गई  कुछ  घटाई  गई
            ज़िन्दगी  उम्र  भर आज़माई  गई 

                        फेंक  दो  ऐ  किताबें  अंधेरों  की  हैं 
                        जिल्द उजली किरन की चढ़ाई गई 

            जब भी आँखों से आँसू बहे जान लो 
            मुस्कराने  की  क़ीमत  चुकाई  गई  

                        घेर ली  रावनों  ने   अकेली  सिया
                        और  रेखा लखन  की  मिटाई गई 

            टांग देते थे जिन खूटीयों  पे गगन 
            उनकी  दीवारे हिम्मत गिराई  गई

                        झील  में  डूबता  चाँद  देखा  गया 
                        और तारों  पे  तोहमत लगाईं गई 

            झूठ की एक गवाही को सच मानकर 
            हर  सज़ा  पे  सज़ा  फिर  सुनाई गई

                        यूँ तो चिंगारियों  में कोई दम न था 
                        पर अदा बिजलियों की  दिखाई गई 

             राम  की  मुश्किलों  में  हमेशा यहाँ 
             बेगुनाही   की   सीता   जलाई   गई 

                        देश  की हर गली में भटकती मिली 
                        वो दुल्हन जो तिरंगे  को ब्याही गई 

                                                -ज्ञानचन्द मर्मज्ञ  

34 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

ग़ज़ल का एक-एक शे’र उम्दा है। यह न सिर्फ़ दिल को छूती है बल्कि दिमाग पर भी असर करती है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दमदार पंक्तियाँ।

vandana gupta ने कहा…

देश की हर गली में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई

यूँ तो पूरी गज़ल झंझोड देती है हर शेर एक कडवा सच पेश कर रहा है और ये आखिरी शेर ने तो गज़ब कर दिया कुछ कहने लायक ही नही छोडा।

उस्ताद जी ने कहा…

7.5/10

बहुत खूब .. बहुत खूब
क्या बेहतरीन ग़ज़ल लिख दी आपने
"कुछ बढ़ाई गई कुछ घटाई गई
ज़िन्दगी उम्र भर आज़माई गई "
हर शेर बेहतरीन .. वाह :
"झील में डूबता चाँद देखा गया
और तारों पे तोहमत लगाईं गई "
गजब ढा दिया जनाब :
"यूँ तो चिंगारियों में कोई दम न था
पर अदा बिजलियों की दिखाई गई "
और आखिर में तो लूट ही लिया :
"देश की हर गली में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई "

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

मनोज जी,प्रवीन जी,वंदना जी और उस्ताद जी,
हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

दिगम्बर नासवा ने कहा…

घेर ली रावनों ने अकेली सिया
और रेखा लखन की मिटाई गई

झील में डूबता चाँद देखा गया
और तारों पे तोहमत लगाईं गई

बहुत बधाई इस लाजवाब ग़ज़ल पर ... कमाल के श्वेर निकाले हैं सुभान अल्ला ....

रंजना ने कहा…

वाह...वाह...वाह...

और क्या कहूँ....

बस लाजवाब !!!!

ZEAL ने कहा…

.

विरले ही कोई इतनी गहराई से हकीकत को उतार पाता है अपनी रचनाओं में। सच को बयान करती बेहतरीन रचना। आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ। आना सफल हो गया।

.

abhi ने कहा…

बेहतरीन गज़ल है सर

mridula pradhan ने कहा…

wah. bahut sunder likhe hain aap.

Kunwar Kusumesh ने कहा…

"यूँ तो चिंगारियों में कोई दम न था
पर अदा बिजलियों की दिखाई गई "


वाह क्या शेर है, बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत बढ़िया गज़ल ....

हर शेर सोचने पर मजबूर करता हुआ

तिलक राज कपूर ने कहा…

राम की मुश्किलों में हमेशा यहाँ
बेगुनाही की सीता जलाई गई
बहुत बढिया कटाक्ष है।

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy ने कहा…

"कुछ बढ़ाई गई कुछ घटाई गई ज़िन्दगी उम्र भर आज़माई गई" दमदार ग़ज़ल लिख दी आपने. बहुत बहुत बधाई इस लाजवाब रचना के लिए!

shikha varshney ने कहा…

जब भी आँखों से आँसू बहे जान लो
मुस्कराने की क़ीमत चुकाई गई
क्या बात कही है .

देश की हर गली
में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई
जबर्दस्त्त...

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

aanand aa gya sahab....

निर्मला कपिला ने कहा…

sसब से पहले काव्य संग्रह छपने के लिये बधाई। गज़ल दिल को छू गयी हर शेर उमदा भाव लिये।
जब भी आँखों से आँसू बहे जान लो
मुस्कराने की क़ीमत चुकाई गई

घेर ली रावनों ने अकेली सिया
और रेखा लखन की मिटाई गई
वाह बहुत खूब।

PN Subramanian ने कहा…

"झील में डूबता चाँद देखा गया
और तारों पे तोहमत लगाईं गई"
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति.

Unknown ने कहा…

ज़िन्दगी उम्र भर आज़माई गई
jindagi roj hi aajmai jaati hai.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मन को छूने वाली हैं सभी पंक्तियाँ..... बहुत सुंदर

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

मन को छू गई...एक बेहतरीन ग़ज़ल..।
एक सशक्त रचना के लिए मेरी हार्दिक बधाई...।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

देश की हर गली में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई
बहुत सुन्दर गज़ल है. बधाई.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

मैं सभी पाठकों एवं शुभचिंतकों को प्रोत्साहित करने हेतु धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

कुमार राधारमण ने कहा…

ये हम सब के अनुभव की बाते हैं मगर आम आदमी जिस अभिव्यक्ति के लिए शब्द और शैली नहीं ढूंढ पाता,कवि-हृदय उसे सहजता से करता है।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

very nice

प्रेम सरोवर ने कहा…

Dil aur dimag ko sparsh karti hui aapki yeh Gazal antarman mein sthayi roop sthapit karne mein aapki abhivyakati purnrupen saphal sidh rahi. Marmik aur sargarbhit post ke liye dhanyavad.mere blog par aap amantrit hain.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा।
..अच्छी गज़ल।

अनुपमा पाठक ने कहा…

laajawab panktiyan!
sundar rachna!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हरकीरत ' हीर' ने कहा…

ज्ञान जी आपकी पूरी प्रोफाइल देखी ....सम्मान भी और गजलें भी ....
बहुत ही उम्दा लेखन है आपका ....और लेखन के अनुसार सम्मान भी ....बधाई ....!!
फेंक दो ऐ किताबें अंधेरों की हैं
जिल्द उजली किरन की चढ़ाई गई
बहुत बढिया शे'र ......
बिलकुल न्य और तजा ......

पर मुझे लगा फेंक दो ऐ की जगह फेंक दो ये किताबें होता तो ज्यादा अच्छा लगता ....

झूठ की एक गवाही को सच मानकर
हर सज़ा पे सज़ा फिर सुनाई गई

बहुत उम्दा .....वाह .....!!

देश की हर गली में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई

लाजवाब ......!!
गज़ब का लिखते हैं आप .....!!

स्वागत है ....!!

रचना दीक्षित ने कहा…

सोच रही हूँ क्या लिखूं. सब कुछ तो सभी ने लिख दिया. आपके ब्लॉग पर आकार बहुत अच्छा लगा. एक से बढ़ कर एक ग़ज़ल हैं सभी.
देश की हर गली में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई
लाजवाब !!

ZEAL ने कहा…

टूट कर जो गिर गये, वो तारे कहाँ मिलते हैं,
नदी की उम्र तक किनारे कहाँ मिलते हैं,
ढूढने वालों बस एक बात याद रख लेना,
वक्त की राख में अंगारे कहाँ मिलते हैं!

......

बेहतरीन ग़ज़ल !

.

ZEAL ने कहा…

झील में डूबता चाँद देखा गया
और तारों पे तोहमत लगाईं गई

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बेहतरीन ग़ज़ल

.

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

ghazal muktak kavita sab kuch padha...bahut anand aaya....is ghazal ne to man moh liya jane kitni baar padhunga ise.... aapka bahut bahut dhanyawad meri ghazal ko waqt dene ke liye