जल सके ना उजालों की पहचान तक
जलने वाले जले फिर भी तूफ़ान तक
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक
बिक न पाते कभी हम मगर क्या करें
आ गयी वो वफ़ा चल के दूकान तक
हर गली हर मोहल्ले के बाज़ार में
बिकते देखा है लोगों को ईमान तक
चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाए इंसान तक
आदमी ने बनाया है कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तक
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
54 टिप्पणियां:
वाह मर्मज्ञ जी,
अतिसुन्दर
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था,
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक ॥
हर शब्द बिलकुल सही बात कह रहा है.वास्तविकता का खाका है यह कविता.
मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक....
wah ! sunder ! ati sunder 1 sampurn rachna hetu abhaar....
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
सभी शे'र लाजवाब मगर यह तो जबर्दश्त....... एक सुना-सुनाया वाकया याद आ गाया. एक बार अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा, "बीरबल कोई ऐसी बात बताओ जिसे दुःख में सुनने से खुशी और सुख मे सुनने से दुःख हो. चतुर बीरबल ने कहा, "यह वक़्त गुजर जाएगा." सच में दर्द तभी तक है जब तक मुस्कराते नहीं हैं. संसार में कुछ भी सनातन नहीं है. कुछ भी स्थाई नहीं है. सब क्षणभंगुर. बहुत अच्छा !!! धन्यवाद !!!!!
मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक !
आनंद आ गया मर्मज्ञ जी,....
शुभकामनायें
जल सके ना उजालों की पहचान तक
जलने वाले जले फिर भी तूफ़ान तक
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
Aapki lekhani mujhe nishabd kar detee hai!
गज़ब है मर्मज्ञ जी,
पूरी ग़ज़ल लाजवाब है .
एक एक शेर चुना हुआ.
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
इस शेर की कोई टक्कर नहीं.
वाह वाह.
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है,मर्मज्ञ जी.
वफ़ा के हाथों बिकने क्या तस्वीर खींची है आपने.
बिक न पाते कभी हम मगर क्या करें
आ गयी वो वफ़ा चल के दूकान तक
और मक्ता भी लाजवाब.
आदमी ने बनाया है कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तक
सलाम.
bahut sundar likha hai आपका एक एक शब्द और बाते बेशकीमती .. सादर
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
क्या बात कही है ज्ञान जी आपने। हर शे’र को पढने के बाद बस वाह-वाह ही निकल रहा है मुंह से।
‘ रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक।
बढिया मकाम तक पहुंचाया है दर्द को। बधाई:)
मर्मज्ञ जी!
कविता और ग़ज़ल आपके आँगन में ऐसे ही लगते हैं जैसे खिली धूप में अठखेलियाँ करते ख़रगोश!! इतने नाज़ुक शेर और इतनी गहरी बात! दिल खुश हो गया!
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था,
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक ॥
बहुत सुंदर ...निशब्द करती पंक्तियाँ......
जल सके ना उजालों की पहचान तक
जलने वाले जले फिर भी तूफ़ान तक
खुबसूरत गज़ल हर शेर दाद के क़ाबिल, मुबारक हो
आदमी ने बनाया है, ये कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तलक
शब्द-शब्द अनमोल, वास्तविकता से ओतप्रोत प्रस्तुति...
मर्मज्ञ जी
खुबसूरत गज़ल ...... मुबारक हो
मर्मज्ञ जी
खुबसूरत गज़ल ...... मुबारक हो
आदमी ने बनाया है कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तक
वाह, वाह, वाह
मर्मज्ञ जी,
खुबसूरत गज़ल ...... हर शेर दाद के क़ाबिल
बहुत सार्थक प्रस्तुति har sher bahut achchha laga .shubhkamnayen swikar karen ..
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
ये पंक्तियाँ भा गईं.
उत्कृष्ट पंक्तियाँ।
बिक न पाते कभी हम मगर क्या करें
आ गयी वो वफ़ा चल के दूकान तक
..राह गुलशन की जाती है शमशान तक
.. दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
एकदम सच, बहुत ही उम्दा ,अति सुंदर ...!!
चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाए इंसान तक
Beautiful expression !
.
काफी दमदार पंक्ितयां संजोई हैं आपने बधाई।
इस गजल कि हर पंक्ति लाजवाब है, बहुत बहुत बधाई !
चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाए इंसान तक
waah... kitni sahi baat
अत्यंत प्रेरक रचना। हार्दिक बधाई।
---------
काले साए, आत्माएं, टोने-टोटके, काला जादू।
चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाय इन्सान तक
बहुत लाजवाब शेर .....सुन्दर ग़ज़ल
बहुत ही सार्थक और सशक्त संदेश ।
आदमी ने बनाया है कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तक
बहुत खूब ..हर शेर सार्थक है.
''..राह गुलशन की जाती है शमशान तक''
वह सर जी!
बिक न पाते कभी हम मगर क्या करें
आ गयी वो वफ़ा चल के दूकान तक
हर गली हर मोहल्ले के बाज़ार में
बिकते देखा है लोगों को ईमान तक
बहुत अच्छे भाव छुपे हैं इन पँक्तियों मे। बहुत बहुत बधाई।
अति सुंदर, किस किस पंक्ति का उल्लेख करूँ. इतना सुंदर है कि बस वाह वाह करे का मन कर रहा है.
कविता मन के अन्दर तक छू लेने वाली है.
bahut sunder......
sach kahate hai prem ki hi raah hai jo bhagvan tak jati hai......
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक
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वाह..वाह..मर्मज्ञ जी!
बहुत ही उम्दा शेर कहे हैं आपने।
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गजल सीधे दिल में उतर गई है!
चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाए इंसान तक
क्या बात कही आपने....वाह...वाह...वाह...
हमेशा की तरह दिल को छू लेने वाली,मुग्ध कर देने वाली रचना...
बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर......
मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक
बहुत सुन्दर ग़ज़ल । वास्तविकता से परिपूर्ण ।
शहरों में हरियाली बनी रहे.
आदमी ने क्या राह बनाई है राह जाती है शमशान तक...
आ गयी वफ़ा चल कर दूकान तक ...
सत्य तो यही है ...
यथार्थपरक रचना !
चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाए इंसान तक
क्या बात कही है आप ने...लाजवाब...।
मेरी बधाई...।
प्रियंका गुप्ता
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
क्या बात है ....
ये तो मेरे लिए लिखीं लगती हैं .....
मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक
वाह गज़ब बात कह दी .....
बिक न पाते कभी हम मगर क्या करें
आ गयी वो वफ़ा चल के दूकान तक
क्या बात है .....बहुत खूब .....!!
आदमी ने बनाया है कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तक
सुभानाल्लाह .....!!
आज दिल को सकूं मिला .....
शुक्रिया .....
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
वाह ....बहुत खूब कहा है आपने ।
'चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाए इंसान तक .'
वाह !
बहुत बड़ी बात कह दी है !
आदमी ने बनाया है कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तक
sach me sir!! bahut khub likha hai aapne:)
मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक
बहुत खूबसूरत गज़ल ..हर शेर उम्दा
bahut khoobsoorat !
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न
था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक.
क्या बात है. बहुत खूब.
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
ये शेर दिल के करीब और अपना सा लगा . आभार आपका .
मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक
बहुत सुंदर बात कही आपने।
सार्थक संदेश देती हुई अच्छी ग़ज़ल।
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
Vaah .. kya gazab ki baat kahi hai Marmagy ji ... kitna sach hai is baat mein ..
व्यक्ति और व्यवस्था-दोनों की ओर उत्तम ध्यानाकर्षण।
अति सुंदर सब्द जैसे भाव बन गए है
अदभुत !!
शुभकामनाये
वाह...
क्या कहू... सवाल या सवालों में जवाब...
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