रातों की स्याही है ...
रातों की स्याही है,धूप का निखार है,
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
सुनसान गलियों में सहमी हैं सांसे ,
दंगों के खेतों में उगती हैं लाशें,
सांसों का मोल नहीं कैसा व्यापार है!
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
जब भी लिखी हादसों की कहानी,
लुटती रही यूँ ही खुशियों की रानी,
माटी की दुल्हन है,सोलह श्रृंगार है!
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
आहट है चिंगारी, दस्तक हैं शोले,
कैसे उठें और दरवाज़ा खोलें,
बूढ़ी है अभिलाषा, आशा बीमार है!
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
फिर से वही शोर, सहमी ज़मी है,
गिद्धों की बस्ती में खूं की कमी है,
कितना घिनौना ज़माने का प्यार है!
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
खुशियों की गौरैया,दहशत का आंगन,
बोझिल सी आँखों में डूबा है जीवन,
आँखों की जीत हुई,सावन की हार है!
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
इन पत्थरों का पिघलना है बाकी,
कुछ कोशिशों का उछलना है बाकी,
बौना है आदमी, ऊँची दीवार है,
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ