मेरे बारे में

- ज्ञानचंद मर्मज्ञ
- Bangalore, Karnataka, India
- मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख
- ज्ञान चंद मर्मज्ञ
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शनिवार, 8 जनवरी 2011
आतंकवाद : :भाग -५
अगर अक्षरधाम की मासूम चीखें आज भी आपके जेहन में गूंज रही हैं तो प्रस्तुत है आतंकवाद की पांचवीं कड़ी उन्हीं बेगुनाहों को समर्पित करते हुए !
आतंकवाद : :भाग -५
कैसी पूजा रचाई गई है,
क्यूँ ये लाशें बिछाई गईं हैं!
हैं यही वो दीये आरती के,
जिनमें खुशियाँ जलाई गई हैं!
शंख की नाँद चीखें सुनाये,
मन्त्र गूंजा तो रो दीं हवाएं !
जिनकी ख़ातिर थीं माँगी दुआएं,
उनको काँधों पे कैसे उठायें !
कल जो पत्थर के भगवान गढ़ना ,
आँसुओं से नयन जोड़ देना !
मंदिरों में कोई क़त्ल हो तो,
ख़ून के दाग़ यूँ छोड़ देना !
सुन सके जो न चीत्कार चीखें,
कर्ण ऐसे कभी ना बनाना !
हाथ पत्थर के उठ ना सकेंगे,
व्यर्थ है अस्त्र से यूँ सजाना !
गर मिले कोई ख़ामोश बैठा ,
अपनी मिट्टी की पलकें झुकाए!
शोर साँसों का भी रोक लेना,
आहटों से कहीं मर न जाए!
............अगले अंकों में जारी
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
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