ज्ञानचंद मर्मज्ञ

मेरे बारे में

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Bangalore, Karnataka, India
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
!! श्री गणेशाय नमः !!

" शब्द साधक मंच " पर आपका स्वागत है
मेरी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

- ज्ञान चंद मर्मज्ञ

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बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

जल सके ना उजालों की पहचान तक




               जल सके ना  उजालों की पहचान तक 
               जलने  वाले जले  फिर भी तूफ़ान तक 

                           रोने  वालों  तुम्हें  तो  पता  भी  न  था 
                           दर्द   की  उम्र  होती  है  मुस्कान  तक

               मंदिरों   की  नहीं  मस्जिदों  की  नहीं
               प्रेम  की  राह  जाती  है  भगवान तक

                           बिक न पाते कभी हम मगर क्या करें
                           आ  गयी  वो वफ़ा चल के दूकान तक 

               हर  गली  हर  मोहल्ले  के  बाज़ार  में 
               बिकते  देखा  है लोगों  को ईमान तक 


                           चाँद   पर  जाने  वालों  बताना   मुझे 
                           आदमी  जब  पहुँच जाए इंसान  तक  

               आदमी   ने    बनाया   है   कैसा  शहर 
               राह गुलशन की जाती है शमशान तक 

                                                          -ज्ञानचंद मर्मज्ञ  

54 टिप्‍पणियां:

सुज्ञ ने कहा…

वाह मर्मज्ञ जी,
अतिसुन्दर
रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था,
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक ॥

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

हर शब्द बिलकुल सही बात कह रहा है.वास्तविकता का खाका है यह कविता.

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक....
wah ! sunder ! ati sunder 1 sampurn rachna hetu abhaar....

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

करण समस्तीपुरी ने कहा…

रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक

सभी शे'र लाजवाब मगर यह तो जबर्दश्त....... एक सुना-सुनाया वाकया याद आ गाया. एक बार अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा, "बीरबल कोई ऐसी बात बताओ जिसे दुःख में सुनने से खुशी और सुख मे सुनने से दुःख हो. चतुर बीरबल ने कहा, "यह वक़्त गुजर जाएगा." सच में दर्द तभी तक है जब तक मुस्कराते नहीं हैं. संसार में कुछ भी सनातन नहीं है. कुछ भी स्थाई नहीं है. सब क्षणभंगुर. बहुत अच्छा !!! धन्यवाद !!!!!

Satish Saxena ने कहा…

मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक !

आनंद आ गया मर्मज्ञ जी,....
शुभकामनायें

kshama ने कहा…

जल सके ना उजालों की पहचान तक
जलने वाले जले फिर भी तूफ़ान तक

रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
Aapki lekhani mujhe nishabd kar detee hai!

Kunwar Kusumesh ने कहा…

गज़ब है मर्मज्ञ जी,
पूरी ग़ज़ल लाजवाब है .
एक एक शेर चुना हुआ.

रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक

इस शेर की कोई टक्कर नहीं.
वाह वाह.

विशाल ने कहा…

बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है,मर्मज्ञ जी.
वफ़ा के हाथों बिकने क्या तस्वीर खींची है आपने.

बिक न पाते कभी हम मगर क्या करें
आ गयी वो वफ़ा चल के दूकान तक

और मक्ता भी लाजवाब.

आदमी ने बनाया है कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तक

सलाम.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

bahut sundar likha hai आपका एक एक शब्द और बाते बेशकीमती .. सादर

मनोज कुमार ने कहा…

रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
क्या बात कही है ज्ञान जी आपने। हर शे’र को पढने के बाद बस वाह-वाह ही निकल रहा है मुंह से।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

‘ रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था

दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक।

बढिया मकाम तक पहुंचाया है दर्द को। बधाई:)

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

मर्मज्ञ जी!
कविता और ग़ज़ल आपके आँगन में ऐसे ही लगते हैं जैसे खिली धूप में अठखेलियाँ करते ख़रगोश!! इतने नाज़ुक शेर और इतनी गहरी बात! दिल खुश हो गया!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था,
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक ॥

बहुत सुंदर ...निशब्द करती पंक्तियाँ......

Sunil Kumar ने कहा…

जल सके ना उजालों की पहचान तक
जलने वाले जले फिर भी तूफ़ान तक
खुबसूरत गज़ल हर शेर दाद के क़ाबिल, मुबारक हो

Sushil Bakliwal ने कहा…

आदमी ने बनाया है, ये कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तलक

शब्द-शब्द अनमोल, वास्तविकता से ओतप्रोत प्रस्तुति...

संजय भास्‍कर ने कहा…

मर्मज्ञ जी
खुबसूरत गज़ल ...... मुबारक हो

संजय भास्‍कर ने कहा…

मर्मज्ञ जी
खुबसूरत गज़ल ...... मुबारक हो

संध्या शर्मा ने कहा…

आदमी ने बनाया है कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तक
वाह, वाह, वाह
मर्मज्ञ जी,
खुबसूरत गज़ल ...... हर शेर दाद के क़ाबिल

Shikha Kaushik ने कहा…

बहुत सार्थक प्रस्तुति har sher bahut achchha laga .shubhkamnayen swikar karen ..

Bharat Bhushan ने कहा…

रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था

दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक

ये पंक्तियाँ भा गईं.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उत्कृष्ट पंक्तियाँ।

रजनीश तिवारी ने कहा…

बिक न पाते कभी हम मगर क्या करें
आ गयी वो वफ़ा चल के दूकान तक
..राह गुलशन की जाती है शमशान तक
.. दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
एकदम सच, बहुत ही उम्दा ,अति सुंदर ...!!

ZEAL ने कहा…

चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाए इंसान तक

Beautiful expression !

.

Rajeysha ने कहा…

काफी दमदार पंक्‍ि‍तयां संजोई हैं आपने बधाई।

Anita ने कहा…

इस गजल कि हर पंक्ति लाजवाब है, बहुत बहुत बधाई !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाए इंसान तक
waah... kitni sahi baat

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

अत्‍यंत प्रेरक रचना। हार्दिक बधाई।

---------
काले साए, आत्‍माएं, टोने-टोटके, काला जादू।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

चाँद पर जाने वालों बताना मुझे

आदमी जब पहुँच जाय इन्सान तक

बहुत लाजवाब शेर .....सुन्दर ग़ज़ल

OM KASHYAP ने कहा…

बहुत ही सार्थक और सशक्त संदेश ।

shikha varshney ने कहा…

आदमी ने बनाया है कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तक
बहुत खूब ..हर शेर सार्थक है.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

''..राह गुलशन की जाती है शमशान तक''

वह सर जी!

निर्मला कपिला ने कहा…

बिक न पाते कभी हम मगर क्या करें
आ गयी वो वफ़ा चल के दूकान तक

हर गली हर मोहल्ले के बाज़ार में
बिकते देखा है लोगों को ईमान तक
बहुत अच्छे भाव छुपे हैं इन पँक्तियों मे। बहुत बहुत बधाई।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

अति सुंदर, किस किस पंक्ति का उल्लेख करूँ. इतना सुंदर है कि बस वाह वाह करे का मन कर रहा है.
कविता मन के अन्दर तक छू लेने वाली है.

Suman ने कहा…

bahut sunder......
sach kahate hai prem ki hi raah hai jo bhagvan tak jati hai......

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक

मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक
---- ----
वाह..वाह..मर्मज्ञ जी!
बहुत ही उम्दा शेर कहे हैं आपने।
--
गजल सीधे दिल में उतर गई है!

रंजना ने कहा…

चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाए इंसान तक

क्या बात कही आपने....वाह...वाह...वाह...

हमेशा की तरह दिल को छू लेने वाली,मुग्ध कर देने वाली रचना...

बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर......

डॉ टी एस दराल ने कहा…

मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक

बहुत सुन्दर ग़ज़ल । वास्तविकता से परिपूर्ण ।

Rahul Singh ने कहा…

शहरों में हरियाली बनी रहे.

वाणी गीत ने कहा…

आदमी ने क्या राह बनाई है राह जाती है शमशान तक...
आ गयी वफ़ा चल कर दूकान तक ...

सत्य तो यही है ...
यथार्थपरक रचना !

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाए इंसान तक

क्या बात कही है आप ने...लाजवाब...।
मेरी बधाई...।

प्रियंका गुप्ता

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक

क्या बात है ....
ये तो मेरे लिए लिखीं लगती हैं .....

मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक

वाह गज़ब बात कह दी .....

बिक न पाते कभी हम मगर क्या करें
आ गयी वो वफ़ा चल के दूकान तक

क्या बात है .....बहुत खूब .....!!

आदमी ने बनाया है कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तक

सुभानाल्लाह .....!!

आज दिल को सकूं मिला .....
शुक्रिया .....

सदा ने कहा…

रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
वाह ....बहुत खूब कहा है आपने ।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

'चाँद पर जाने वालों बताना मुझे
आदमी जब पहुँच जाए इंसान तक .'
वाह !
बहुत बड़ी बात कह दी है !

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

आदमी ने बनाया है कैसा शहर
राह गुलशन की जाती है शमशान तक

sach me sir!! bahut khub likha hai aapne:)

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक

बहुत खूबसूरत गज़ल ..हर शेर उम्दा

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

bahut khoobsoorat !

संतोष पाण्डेय ने कहा…

रोने वालों तुम्हें तो पता भी न
था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक.
क्या बात है. बहुत खूब.

ashish ने कहा…

रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक
ये शेर दिल के करीब और अपना सा लगा . आभार आपका .

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

मंदिरों की नहीं मस्जिदों की नहीं
प्रेम की राह जाती है भगवान तक

बहुत सुंदर बात कही आपने।
सार्थक संदेश देती हुई अच्छी ग़ज़ल।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

रोने वालों तुम्हें तो पता भी न था
दर्द की उम्र होती है मुस्कान तक

Vaah .. kya gazab ki baat kahi hai Marmagy ji ... kitna sach hai is baat mein ..

कुमार राधारमण ने कहा…

व्यक्ति और व्यवस्था-दोनों की ओर उत्तम ध्यानाकर्षण।

अभिव्यक्ति ने कहा…

अति सुंदर सब्द जैसे भाव बन गए है
अदभुत !!
शुभकामनाये

POOJA... ने कहा…

वाह...
क्या कहू... सवाल या सवालों में जवाब...