मुखौटा
उस चिलचिलाती धूप में
अगर मेरी आँखें पिघलकर बह जातीं
तो
पूरी भीड़ मझे पहचान लेती
और
मरे कफ़न की तरह
मुझे भी नोच डाला जाता !
साँसें
अहसास के बिखरे हुए टुकड़ों में बँट कर किसी लावारिश लाश की तरह
सड़क के किनारे पड़ी मिलतीं !
ऐसा कुछ भी न हो
बस इसी लिए मैंने वह मुखौटा लगाया था !
और इस लिए भी कि........
नागफनी पर पसरे प्रतीक्षा कर रहे
विश्वास के लहू में पैर रखकर आसानी से वह बाज़ार पार कर जाऊं
जहाँ
सिक्कों पर ईमान की मुस्कराहट बिक जाती है
जहाँ
केवल इंसान का व्यापार होता है
और लाँघ जाऊं
सड़क पर पड़े उन तमाम लाशों के ढेर को
जो अपने ही कफ़न के लिए भीख मांग रहे हैं!
कसमों और वादों की अर्थी उसी तरह ज्यों की त्यों पड़ी रह जाय
जिससे जिंदा होने का स्वांग करते ये मरे हुए लोग उधर से गुज़रें
तो उन्हें
अपना भविष्य उज्वल होने की कल्पना
साकार होने का स्वप्न फिर से दिखने लगे !
इस प्रकार
मुखौटा पहनकर
दिल पर पत्थर का दिल बांधकर
' व्यवस्था ' के बाज़ार को पार करने की मेरी कोशिश सफल तो हो गयी
मगर
जब दर्पण से सामना हुआ तो स्तब्ध रह गया
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ