" मौत " भाग -४
" फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा "
किसने चौखट पे दस्तक लगाई ,
किसने दरवाज़ा यूँ खटखटाया !
सुन के जो भी गया खोलने को ,
लौट कर वो कभी भी न आया !
फिर सितारों की बारात होगी,
फिर किसी को सजाना पड़ेगा!
यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा!
रो रहा आज इतिहास कल का,
वक़्त पर झुर्रियाँ पड़ गयी हैं !
कल सलीबें उठाई गयी थीं,
आज कीलें भी तो गड़ गयी हैं!
हम नहीं,तुम नहीं, वो न होंगे ,
वक्त फिर भी गुज़रता रहेगा !
ज़ख्म यूँ ही सँवरते रहेंगे ,
दर्द यूँ ही तड़पता रहेगा !
-अगले अंकों में जारी
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
57 टिप्पणियां:
यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा!....
saunder prastuti hetu abhaar.
सच है जो भी मौत के लिए दरवाजा खोलने गया वह वापस न कभी आया .सार्थक प्रस्तुति .आभार .
virangna maina
बहुत खुबसूरत.......कितना दर्द समेटे है ये पोस्ट.....लाजवाब|
बिल्कुल सच और सही कहा है…………मार्मिक मगर सार्थ्क प्रस्तुति।
यही सच है अच्छी कविता बधाई
यही सच है अच्छी कविता बधाई
बहुत ही सुन्दर और सच्ची कविता....
आदरणीय मर्मज्ञ जी
नमस्कार !
बेहद गहरे अर्थों को समेटती संवेदनशील रचना...!
बहुत ही सुन्दर विशेषकर "यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा" बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ...आभार
सुंदर भावाभिव्यक्ति...
अगले अंक का इंतजार रहेगा।
"यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा"
बिल्कुल सच कहा है... संवेदनशील रचना...!
यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा!
यह सांसारिक ताकत वहां काम नहीं आती ।
बढ़िया प्रस्तुति ।
very touching lines with beautiful presentation.
वह तो सबके घर आयेगी।
हम न होंगे, हमारी दास्तां होगी॥
गहन अभिव्यक्ति लिए सच को समझाती पंक्तियाँ
ज़ख्म यूँ ही सँवरते रहेंगे ,
दर्द यूँ ही तड़पता रहेगा !
वा वाह, वा वाह, वा वाह.....
शुभकामनायें मर्मज्ञ जी
संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
जीवन का अंतिम सत्य तो वही है ... जो इस दरवाजे तक जाता है वापस नहीं आता ...
सार्थक चिंतन ....
यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा!
मर्मस्पर्शी पंक्तियां।
यही सबके साथ होना है।
संवेदनशील और मर्मस्पर्शी कविता ....
रो रहा आज इतिहास कल का,
वक़्त पर झुर्रियाँ पड़ गयी हैं !
कल सलीबें उठाई गयी थीं,
आज कीलें भी तो गड़ गयी हैं!
अहा,बहुत मार्मिक लिखा है आपने, मर्मज्ञ जी.
सीधे दिल तक पहुँचती है आपकी बात.
आपकी क़लम को सलाम करता हूँ.
सटीक प्रस्तुति ...यही अंत है
कर्म प्रधान ! अंत में चार की जरुरत पड़ेगी !
सही रेखांकन है।
आपकी इच्छानुसार 'स्तुतियों'हेतु नया ब्लाग "जनहित मे "27 जूलाई से प्रारम्भ हो चुका है,आपको मेल पर सूचित किया था जो शायद आपको रिसीव नहीं हो पाया है।
बहुत सुन्दर और सार्थक पोस्ट! मार्मिक प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
आदरणीय मर्मज्ञ जी
बहुत सही लिखा है आपने
अंतिम परिणति यही है,उस पर किसी का बस नहीं - लेकिन उससे पहले जो कर सकें,जहाँ हमारा वश है वही सही !
बहुत सुन्दर, बहुत सुन्दर।
Bahut dard,sachaai hai is rachna men..bahut2 badhai...
जीवन के सत्य को बयां कर दिया आपने। बधाई।
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लो जी, मैं तो डॉक्टर बन गया..
क्या साहित्यकार आउट ऑफ डेट हो गये हैं ?
ham sab ki niyati. Afsoso,ki jab tak hum chetate hain,samay kafi hud tak hamare haath se nikal chuka hota hai.
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!शुभकामनाएं.
रो रहा आज इतिहास कल का,
वक़्त पर झुर्रियाँ पड़ गयी हैं !
कल सलीबें उठाई गयी थीं,
आज कीलें भी तो गड़ गयी हैं!
bahut khoobsurat
अद्भुत शब्द प्रवाह और सुंदर कहन
हुनर सर चढ़ के बोलता है
फिर सितारों की बारात होगी,
फिर किसी को सजाना पड़ेगा!
यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा!
कडवा सच हर एक को पीना है
आपकी सभी रचनाएं गहरे अर्थ लिए होती हैं।
जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक
बहुत सुन्दर मार्मिक, भावपूर्ण रचना....बहुत सुंदर...
सुन्दर छंद....हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ
शाश्वत सत्य को उद्घाटित करती रचना
Shashwat satya.. sundar rachna...
यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा!....
bahut hi marmik prsatuti ghyanchand ji........
kafi dino baad aayi hun .......swasthy kharab ki vajah se
वाह...के सिवाय और क्या कहूँ...समझ कहाँ पड़ रहा....?
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
१७ अगस्त के बाद कुछ नहीं लिखा मर्मज्ञ जी !
आप स्वस्थ तो हैं ??
शुभकामनायें आपके लिए !
♥
भाई साहब ,
आप हमेशा अच्छा ही लिखते हैं …
आपकी यह रचना भी अच्छी है … लेकिन बोझिलता बढ़ने लगी है …
सादर निवेदन है कि
मौत की शृंखला को थोड़ा विराम दे'कर विविध रस-भाव की कुछ रचनाएं डालें अब … :)
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह वाह वाह ...क्या बात है ! बहुत खूब !
आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।
काव्य में सच
सच में काव्य
बहुत खुबसूरत..........लाजवाब|
aajkal kahan kho gaye haim?
sunder kavita gahri soch
rachana
श्रृंखला जारी का सन्देश है पोस्ट में...
अगले गीत की प्रतीक्षा रहेगी!
बहुत ही सुन्दर गहन
अभिव्यक्ति...
हम नहीं,तुम नहीं, वो न होंगे ,
वक्त फिर भी गुज़रता रहेगा !
हम्म.....................................।
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