ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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Bangalore, Karnataka, India
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
!! श्री गणेशाय नमः !!

" शब्द साधक मंच " पर आपका स्वागत है
मेरी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

- ज्ञान चंद मर्मज्ञ

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बुधवार, 17 अगस्त 2011

" फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा "

                                                                 


                                                                           


                                                                  " मौत " भाग -४

                         " फिर भी  काँधों  पे जाना पड़ेगा "


               किसने चौखट पे दस्तक लगाई ,
               किसने दरवाज़ा यूँ खटखटाया !
               सुन  के जो भी गया खोलने को ,
               लौट कर वो  कभी भी न आया !

                                     फिर  सितारों  की  बारात होगी,
                                     फिर  किसी को सजाना पड़ेगा!
                                     यूँ  तो  पैरों  में  ताक़त बहुत है,
                                     फिर भी  काँधों  पे जाना पड़ेगा!

               रो रहा आज इतिहास कल का,
               वक़्त  पर झुर्रियाँ पड़ गयी हैं !
               कल  सलीबें  उठाई  गयी  थीं,
               आज कीलें भी तो गड़ गयी हैं!

                                     हम नहीं,तुम नहीं, वो न होंगे ,
                                     वक्त  फिर  भी गुज़रता रहेगा !
                                     ज़ख्म   यूँ   ही  सँवरते  रहेंगे ,
                                     दर्द   यूँ   ही   तड़पता  रहेगा !

                                                    -अगले अंकों में जारी
                                                          -ज्ञानचंद मर्मज्ञ












57 टिप्‍पणियां:

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा!....
saunder prastuti hetu abhaar.

Shikha Kaushik ने कहा…

सच है जो भी मौत के लिए दरवाजा खोलने गया वह वापस न कभी आया .सार्थक प्रस्तुति .आभार .
virangna maina

बेनामी ने कहा…

बहुत खुबसूरत.......कितना दर्द समेटे है ये पोस्ट.....लाजवाब|

vandana gupta ने कहा…

बिल्कुल सच और सही कहा है…………मार्मिक मगर सार्थ्क प्रस्तुति।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

यही सच है अच्छी कविता बधाई

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

यही सच है अच्छी कविता बधाई

विभूति" ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सच्ची कविता....

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय मर्मज्ञ जी
नमस्कार !
बेहद गहरे अर्थों को समेटती संवेदनशील रचना...!

Arvind Jangid ने कहा…

बहुत ही सुन्दर विशेषकर "यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा" बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ...आभार

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

सुंदर भावाभिव्यक्ति...

SANDEEP PANWAR ने कहा…

अगले अंक का इंतजार रहेगा।

संध्या शर्मा ने कहा…

"यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा"
बिल्कुल सच कहा है... संवेदनशील रचना...!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा!

यह सांसारिक ताकत वहां काम नहीं आती ।
बढ़िया प्रस्तुति ।

ZEAL ने कहा…

very touching lines with beautiful presentation.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वह तो सबके घर आयेगी।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

हम न होंगे, हमारी दास्तां होगी॥

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

गहन अभिव्यक्ति लिए सच को समझाती पंक्तियाँ

Satish Saxena ने कहा…

ज़ख्म यूँ ही सँवरते रहेंगे ,
दर्द यूँ ही तड़पता रहेगा !

वा वाह, वा वाह, वा वाह.....

शुभकामनायें मर्मज्ञ जी

Dorothy ने कहा…

संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जीवन का अंतिम सत्य तो वही है ... जो इस दरवाजे तक जाता है वापस नहीं आता ...
सार्थक चिंतन ....

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा!

मर्मस्पर्शी पंक्तियां।
यही सबके साथ होना है।

Dr Varsha Singh ने कहा…

संवेदनशील और मर्मस्पर्शी कविता ....

Kunwar Kusumesh ने कहा…

रो रहा आज इतिहास कल का,
वक़्त पर झुर्रियाँ पड़ गयी हैं !
कल सलीबें उठाई गयी थीं,
आज कीलें भी तो गड़ गयी हैं!

अहा,बहुत मार्मिक लिखा है आपने, मर्मज्ञ जी.
सीधे दिल तक पहुँचती है आपकी बात.
आपकी क़लम को सलाम करता हूँ.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक प्रस्तुति ...यही अंत है

G.N.SHAW ने कहा…

कर्म प्रधान ! अंत में चार की जरुरत पड़ेगी !

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

सही रेखांकन है।
आपकी इच्छानुसार 'स्तुतियों'हेतु नया ब्लाग "जनहित मे "27 जूलाई से प्रारम्भ हो चुका है,आपको मेल पर सूचित किया था जो शायद आपको रिसीव नहीं हो पाया है।

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक पोस्ट! मार्मिक प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

आदरणीय मर्मज्ञ जी
बहुत सही लिखा है आपने

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

अंतिम परिणति यही है,उस पर किसी का बस नहीं - लेकिन उससे पहले जो कर सकें,जहाँ हमारा वश है वही सही !

आचार्य परशुराम राय ने कहा…

बहुत सुन्दर, बहुत सुन्दर।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut dard,sachaai hai is rachna men..bahut2 badhai...

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

जीवन के सत्‍य को बयां कर दिया आपने। बधाई।

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लो जी, मैं तो डॉक्‍टर बन गया..
क्‍या साहित्‍यकार आउट ऑफ डेट हो गये हैं ?

कुमार राधारमण ने कहा…

ham sab ki niyati. Afsoso,ki jab tak hum chetate hain,samay kafi hud tak hamare haath se nikal chuka hota hai.

Ankit pandey ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!शुभकामनाएं.

ज्योति सिंह ने कहा…

रो रहा आज इतिहास कल का,
वक़्त पर झुर्रियाँ पड़ गयी हैं !
कल सलीबें उठाई गयी थीं,
आज कीलें भी तो गड़ गयी हैं!
bahut khoobsurat

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

अद्भुत शब्द प्रवाह और सुंदर कहन
हुनर सर चढ़ के बोलता है

Asha Joglekar ने कहा…

फिर सितारों की बारात होगी,

फिर किसी को सजाना पड़ेगा!

यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,

फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा!

कडवा सच हर एक को पीना है

मनोज कुमार ने कहा…

आपकी सभी रचनाएं गहरे अर्थ लिए होती हैं।

Kunwar Kusumesh ने कहा…

जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक

amrendra "amar" ने कहा…

बहुत सुन्दर मार्मिक, भावपूर्ण रचना....बहुत सुंदर...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

सुन्दर छंद....हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ
शाश्वत सत्य को उद्घाटित करती रचना

monali ने कहा…

Shashwat satya.. sundar rachna...

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

यूँ तो पैरों में ताक़त बहुत है,
फिर भी काँधों पे जाना पड़ेगा!....

bahut hi marmik prsatuti ghyanchand ji........

kafi dino baad aayi hun .......swasthy kharab ki vajah se

रंजना ने कहा…

वाह...के सिवाय और क्या कहूँ...समझ कहाँ पड़ रहा....?

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ... बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Satish Saxena ने कहा…


१७ अगस्त के बाद कुछ नहीं लिखा मर्मज्ञ जी !
आप स्वस्थ तो हैं ??
शुभकामनायें आपके लिए !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…



भाई साहब ,
आप हमेशा अच्छा ही लिखते हैं …
आपकी यह रचना भी अच्छी है … लेकिन बोझिलता बढ़ने लगी है …
सादर निवेदन है कि
मौत की शृंखला को थोड़ा विराम दे'कर विविध रस-भाव की कुछ रचनाएं डालें अब … :)


आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

वाह वाह वाह ...क्या बात है ! बहुत खूब !

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ।

daanish ने कहा…

काव्य में सच
सच में काव्य

amrendra "amar" ने कहा…

बहुत खुबसूरत..........लाजवाब|

संतोष पाण्डेय ने कहा…

aajkal kahan kho gaye haim?

मेरा साहित्य ने कहा…

sunder kavita gahri soch
rachana

अनुपमा पाठक ने कहा…

श्रृंखला जारी का सन्देश है पोस्ट में...
अगले गीत की प्रतीक्षा रहेगी!

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही सुन्दर गहन
अभिव्यक्ति...

Asha Joglekar ने कहा…

हम नहीं,तुम नहीं, वो न होंगे ,
वक्त फिर भी गुज़रता रहेगा !

हम्म.....................................।