"मौत" भाग -३
'आते आते कफ़न छोड़ आये'
प्राण के ब्याह की रात आई,
उम्र के गाँव बारात आई!
गल गयी फूल की पंखुरी तक,
एक ऐसी भी बरसात आई!
फिर से ख़ुशबू की रंगीन साँसें ,
हम ना मधुबन हैं जो पी सकेंगे!
प्राण मेरा ना संजीवनी है,
हम ना लक्षमन हैं जो जी सकेंगे!
दर्द में दो नयन छोड़ आये,
हम बिरह में सजन छोड़ आये!
बंद करके सलाख़ों के भीतर,
इक तड़पता सुगन छोड़ आये !
आँधियों में चमन छोड़ आये,
आँसुओं में सपन छोड़ आये!
याद आई ज़माने की फ़ितरत,
आते आते कफ़न छोड़ आये !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
47 टिप्पणियां:
प्राण के ब्याह की रात आई,
उम्र के गाँव बारात आई!
गल गयी फूल की पंखुरी तक,
एक ऐसी भी बरसात आई!
वाह …………गज़ब के अल्फ़ाज़ और भावों को संजोया है।
दर्द में दो नयन छोड़ आये,
हम बिरह में सजन छोड़ आये!
बंद करके सलाख़ों के भीतर,
इक तड़पता सुगन छोड़ आये !
वाह...अद्भुत...
दर्द में दो नयन छोड़ आये,
हम बिरह में सजन छोड़ आये!
बंद करके सलाख़ों के भीतर,
इक तड़पता सुगन छोड़ आये !
बहुत सुंदर लिखा है...
फिर से ख़ुशबू की रंगीन साँसें ,
हम ना मधुबन हैं जो पी सकेंगे!
प्राण मेरा ना संजीवनी है,
हम ना लक्षमन हैं जो जी सकेंगे!
बहुत सुंदर! शब्दों और भावों का समन्वय बहुत अच्छा बन पड़ा है.
प्राण के ब्याह की रात आई,
उम्र के गाँव बारात आई!
गल गयी फूल की पंखुरी तक,
एक ऐसी भी बरसात आई!
बहुत खूब.......शानदार लगी ये पंक्तियाँ और पोस्ट.......आभार|
दर्द में दो नयन छोड़ आये,
हम बिरह में सजन छोड़ आये!
बंद करके सलाख़ों के भीतर,
इक तड़पता सुगन छोड़ आये !
भावनाओं को बखूबी अभिव्यक्त किया है आपने ..आपका आभार
अद्भुत शब्द-भाव संयोजन।
गल गयी फूल की पंखुरी तक,
एक ऐसी भी बरसात आई!......
संक्षेप में यही कहूँगा की निशब्द कर दिया आपने,
आभार व्यक्त करता हूँ उपरोक्त सुंदर रचना हेतु .........
याद आई ज़माने की फ़ितरत,
आते आते कफ़न छोड़ आये !
एक नई अभिव्यक्ति. बहुत खूब.
चारों मुक्तक अच्छे लगे . लेकिन दूसरे में गड़बड़ क्यों ?
भावना प्रवाह में सीजा भीगा गीत .सुन्दर मनोहर भाव .
behtreen rachna...
चमत्कृत हैं आपके शब्द, और मुग्ध करती है उनकी लयबद्धता... विह्वल करते हैं उनमें व्यक्त भाव, और चिंतित करती है वह सोच, जो आप छोड़ जाते हैं!! अप्रतिम ज्ञान चंद जी!!
Itani behatareen rachna padhvane ke liye jee shukriya
आँधियों में चमन छोड़ आये,
आँसुओं में सपन छोड़ आये!
याद आई ज़माने की फ़ितरत,
आते आते कफ़न छोड़ आये !
बहुत खूब...उम्दा रचना
दर्द में दो नयन छोड़ आये,
हम बिरह में सजन छोड़ आये!
बंद करके सलाख़ों के भीतर,
इक तड़पता सुगन छोड़ आये !
भावनाओं की लाजवाब अभिव्यक्ति.........
दर्द में दो नयन छोड़ आये,
हम बिरह में सजन छोड़ आये!
बंद करके सलाख़ों के भीतर,
इक तड़पता सुगन छोड़ आये !
आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
बहुत भावुक करती पंक्तियां। प्रवाह देखते ही बनता है।
इन पंक्तियों की गेयता अद्भुत है| सरल, सुमधुर और सुगम्य| आप को बहुत बहुत बधाई|
बेहतर है मुक़ाबला करना
मृत्यु को भी खितनी खूबसूरती से शब्दों में बांधा है ।
अति सुंदर ।
याद आई ज़माने की फ़ितरत,
आते आते कफ़न छोड़ आये !
वाह,ग़ज़ब की लयात्मकता.
ग़ज़ब का शब्द सामंजस्य.
सब कुछ अनोखा रहता है आपके कलाम में.मर्मज्ञ जी.
लाजवाब लाजवाब.
अहाह!
तड़पता ... और कफ़न छोड़ आए! बहुत ही संवेदनशील रचना। मन को छू गई।
'याद आई ज़माने की फितरत
आते आते कफ़न छोड़ आये ''
..............बहुत सुन्दर पंक्तियाँ मर्मज्ञ जी
रचना का हर बंद गहन अंतर्भाव को सशक्त अभिव्यक्ति दे रहा है
आदरणीय मर्मज्ञ जी
नमस्कार !
हम बिरह में सजन छोड़ आये!
बंद करके सलाख़ों के भीतर,
इक तड़पता सुगन छोड़ आये !
आन्तरिक भावों को बखूबी अभिव्यक्त किया है आपने ..
सुंदर भाव लिए प्रभावित करती रचना ..
अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
गज़ब के भाव है इस रचना में ... छंद मय रचना में तो आप कमाल करते हैं ज्ञान जी ...
आपकी रचनाओं का शिल्प और भाव अभिभूत कर जाता है....
अद्वितीय लिखते हैं आप...
आपकी लेखनी को नमन....
प्राण के ब्याह की रात आई,
उम्र के गाँव बारात आई!
गल गयी फूल की पंखुरी तक,
एक ऐसी भी बरसात आई!
क्या बात है,
साभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत ही लाज़बाब कविता। अंतिम पंक्ति का क्या कहना। बहुत सुन्दर, बहुत सुन्दर। साधुवाद।
कमाल की सरलता दिखी इस रचना में मर्मज्ञ भाई ! !
हार्दिक शुभकामनायें ..
बहुत खूब.......शानदार पोस्ट.......आभार|
भाई ज्ञानचंद जी नमस्ते बहुत सुंदर कविता आपको बधाई और शुभकामनायें |
दर्द में दो नयन छोड़ आये,
हम बिरह में सजन छोड़ आये!
बंद करके सलाख़ों के भीतर,
इक तड़पता सुगन छोड़ आये !
वाह ...बहुत ही बढि़या ...।
thoughtful and touching
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! कवी ने गहराई से दर्द को महसूस और अभिव्यक्त किया है इस रचना में.
प्राण के ब्याह की रात आई,
उम्र के गाँव बारात आई!
गल गयी फूल की पंखुरी तक,
एक ऐसी भी बरसात आई!
बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
फिर से ख़ुशबू की रंगीन साँसें ,
हम ना मधुबन हैं जो पी सकेंगे!
प्राण मेरा ना संजीवनी है,
हम ना लक्षमन हैं जो जी सकेंगे!
bahut hi sundar rachna
फिर से ख़ुशबू की रंगीन साँसें ,
हम ना मधुबन हैं जो पी सकेंगे!
प्राण मेरा ना संजीवनी है,
हम ना लक्षमन हैं जो जी सकेंगे!
बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण पंक्तियाँ! लाजवाब प्रस्तुती!
फिर से ख़ुशबू की रंगीन साँसें
हम ना मधुबन हैं जो पी सकेंगे!
प्राण मेरा ना संजीवनी है
हम ना लक्षमन हैं जो जी सकेंगे!
बहुत अच्छी काव्य रचना।
शुभकामनाएं।
sunder kavy rachana .aapka shavd chayan kabile tareef hai....
मन को झंकृत कर देने वाले भाव।
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कम्प्यूटर से तेज़!
इस दर्द की दवा क्या है....
adbhut... parantu mujhe aashcharya nahi hua kyonki aapki rachnaen hamesha hi adbhut hoti hai...
दिल को छू लिया इन लाइनों ने ....शुभकामनायें मर्मज्ञ जी !
याद आई ज़माने की फ़ितरत,
आते आते कफ़न छोड़ आये !
A wonderful expression..!!
bahut khoobsoorat prastuti
प्राण मेरा ना संजीवनी है,
हम ना लक्षमन हैं जो जी सकेंगे!
Nice reference!
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