ज्ञानचंद मर्मज्ञ

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
Bangalore, Karnataka, India
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
!! श्री गणेशाय नमः !!

" शब्द साधक मंच " पर आपका स्वागत है
मेरी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

- ज्ञान चंद मर्मज्ञ

_____________________

मंगलवार, 24 मई 2011

मौत



ज़िन्दगी की भूलभुलैया में हम ऐसे खो जाते हैं कि कभी कभी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी सच्चाई "मौत" को ही भुला बैठते हैं ! कभी सोच कर देखिये अगर मौत ज़िन्दगी के साथ नहीं होती तो क्या होता ! क्या ज़िन्दगी के मायने ऐसे ही होते जैसे आज हैं ! गंतव्य विहीन सफ़र का क्या कोई औचित्य होता? तो क्या जीवन की सार्थकता मृत्यु से प्रेरित होती है ?
आज सोचा जो अटल है क्यों न उसके बारे में कुछ लिखा जाय !
आपके सारगर्भित विचार सादर आमंत्रित है !

                                      मौत                                                                                                     

               चंद  यादों  का  कल ज़िन्दगी है, 
               धड़कनों  की नक़ल ज़िन्दगी है!
               ज़िन्दगी   को   कहाँ  ढूढते   हो,
               मौत  की हमशकल ज़िन्दगी है!

                                   हम न ठहरेंगे अब इस ज़मीं पर,
                                   प्राण  आकाश  का  हो  चुका है !
                                   दर्द  तो  यूँ  ही  ज़िन्दा खड़ा  है ,
                                   क़त्ल अहसास  का  हो चुका है! 

               हम  बुझायेंगे साँसे सम्भल के ,
               प्राण  फिर  भी बहेगा उबल के !
               आ  रही  नींद  तो  हल्के  हल्के 
               कौन जाने चिपक  जाएँ पलकें !

                                      एक  मुर्दा  कफ़न  से  चुराकर,
                                      आईने    में  उतारा  गया   है !
                                      मृत्यु  का  हाय  श्रृंगार  कैसा ,
                                      झील  में  चाँद  मारा गया  है !

                                           ........ अगले अंकों में जारी  

                                                          -ज्ञानचंद मर्मज्ञ 
    

44 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

एक मुर्दा कफ़न से चुराकर,
आईने में उतारा गया है !
मृत्यु का हाय श्रृंगार कैसा ,
झील में चाँद मारा गया है !

बेहतरीन , गुनगुनाने लायक रचना ! बधाई भाई जी !

Shikha Kaushik ने कहा…

hamesha ki tarah sarthak bhavabhivyakti .aabhar

डॉ टी एस दराल ने कहा…

ज़िन्दगी को कहाँ ढूढते हो,
मौत की हमशकल ज़िन्दगी है!

सबसे सुन्दर पंक्तियाँ । बढ़िया रचना ।

Sunil Kumar ने कहा…

ज़िन्दगी को कहाँ ढूढते हो,
मौत की हमशकल ज़िन्दगी है!
बेहतरीन रचना ! बधाई .....

ZEAL ने कहा…

एक मुर्दा कफ़न से चुराकर,
आईने में उतारा गया है !
मृत्यु का हाय श्रृंगार कैसा ,
झील में चाँद मारा गया है !...

गजब का अलंकरण है , बेहतरीन रचना।
बधाई ज्ञान जी।
.

Sushil Bakliwal ने कहा…

ज़िन्दगी को कहाँ ढूढते हो,
मौत की हमशकल ज़िन्दगी है!

वाकई सार्थक सत्य...

शुभकामनाओं सहित...

vandana gupta ने कहा…

एक मुर्दा कफ़न से चुराकर,
आईने में उतारा गया है !
मृत्यु का हाय श्रृंगार कैसा ,
झील में चाँद मारा गया है !

वाह कितनी गहरी बात कही है।

ज्योति सिंह ने कहा…

एक मुर्दा कफ़न से चुराकर,
आईने में उतारा गया है !
मृत्यु का हाय श्रृंगार कैसा ,
झील में चाँद मारा गया है !
bahut khoob kahi ,sundar

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

प्रिय बंधुवर ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

ज़िंदगी और मौत को ले'कर बहुत दार्शनिक अंदाज़ में कहा है आपने
ज़िदगी को कहां ढूढ़ते हो, मौत की हमशकल ज़िदगी है!
बहुत गहराई से कहा है …

हम बुझाएंगे सांसे संभल के , प्राण फिर भी बहेगा उबल के ! आ रही नींद तो हल्के हल्के कौन जाने चिपक जाएं पलकें !
आपका अंदाज़ अछूता है … बहुत ख़ूब !
अच्छे सृजन के लिए बधाई !

मैंने भी एक नज़्म में कहा था -
ज़िंदगी दर्द का फ़साना है
हर घड़ी सांस को गंवाना है
जीते रहना है मरते जाना है
ख़ुद को ख़ोना है ख़ुद को पाना है


… और अगली पोस्ट्स का इंतज़ार भी रहेगा… … …
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

ज़िन्दगी को कहाँ ढूढते हो,
मौत की हमशकल ज़िन्दगी है!

गहन अभिव्यक्ति लिए हैं पंक्तियाँ...

Unknown ने कहा…

एक मुर्दा कफ़न से चुराकर,
आईने में उतारा गया है !
मृत्यु का हाय श्रृंगार कैसा ,
झील में चाँद मारा गया है

बेहतरीन,बहुत सुंदर बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत गहन अभिव्यक्ति ..मौत को भी खूबसूरती से लिखा है ..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बिम्ब पहली बार सत्य को झंकृत करते हुये देखे गये हैं।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहतरीन,बहुत सुंदर बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए .

शारदा अरोरा ने कहा…

बेहद खूबसूरत , ये मौत है या जिन्दगी ...
उल्टी गिनती है लम्हों की , और जश्न मनाते हुए हम ....आपने बेहद खूबसूरती से अक्स उभार दिए हैं ...

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

चंद यादों का कल ज़िन्दगी है धड़कनों की नक़ल ज़िन्दगी है!
ज़िन्दगी को कहाँ ढूढते हो,
मौत की हमशकल ज़िन्दगी है!


अत्यंत दार्शनिक पंक्तियां....

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

एक मुर्दा कफ़न से चुराकर,
आईने में उतारा गया है !
मृत्यु का हाय श्रृंगार कैसा ,
झील में चाँद मारा गया है !

नए बिम्बों से सजी सुंदर भावमयी कविता।

रंजना ने कहा…

वाह...बहुत ही सुन्दर ढंग से गंभीर विषय को मर्मस्पर्शी शब्दों में बाँध विस्तार दिया है आपने...

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

Anita ने कहा…

हम बुझाएंगे सांसें सम्भल के, प्राण फिर भी रहेंगे उबल के...बहुत सुंदर पंक्तियाँ, इतने गम्भीर विषय को कितनी खूबसूरती से आपने व्यक्त किया है, अगली पोस्ट् की प्रतीक्षा है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत प्रवाहमयी रचना!
जिन्दगी की बहुत सी परिभाषाएँ मिलीं!

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

दर्द तो यूँ ही ज़िन्दा खड़ा है ,
क़त्ल अहसास का हो चुका है! .....
वाह ! सुंदर अभिव्यक्ति ! सुंदर रचना !
वैसे मेरा मानना है की मृत्यु को एक कड़वा सच कहा जाता रहा है और हम मैं से कोई भी मृत्यु नहीं चाहता है लेकिन वह मृत्यु ही है जिसने जीवन को मायने प्रदान किये हैं , मृत्यु है तभी जीवन का मूल्य समझ में आया है .....संक्षेप में कहूँ तो मृत्यु का भय ही जीवन को गति प्रदान करता है ...
उपरोक्त सुंदर रचना हेतु आपका आभार व्यक्त करता हूँ .....

बेनामी ने कहा…

कुछ अलग सोचने और उसे शब्द देने के लिए आपको सलाम......बहुत शानदार लगी पोस्ट....आखिरी शेर तो बहुत ही उम्दा.....लाजवाब|

Kunwar Kusumesh ने कहा…

ज़िन्दगी को कहाँ ढूढते हो,
मौत की हमशकल ज़िन्दगी है!

क्या बात है आपके कहन की.मौत को इन लफ़्ज़ों में आप की क़लम ही बाँध सकती है.

और ये पंक्तियाँ:-
एक मुर्दा कफ़न से चुराकर,
आईने में उतारा गया है !
मृत्यु का हाय श्रृंगार कैसा ,
झील में चाँद मारा गया है !

एक नई सोंच के साथ बहुत खूबसूरत अंदाज़ में नज़र आयीं.कमाल है मर्मज्ञ जी.

कुमार राधारमण ने कहा…

मृत्यु का सहज स्वीकार ही जीवन को सम्पूर्णता में जीने का उपाय है।

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत गहन अभिव्यक्ति|धन्यवाद|

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

maut kee hamshakal.. bilkul sahi kaha aapne.. aapkee kavitaa kee rawaangee bhaavon ko khulkar ubhaartee hai.. aabhaar aapkee behatreen kavitaaon ke liye!!

virendra sharma ने कहा…

चंद यादों का कल ज़िन्दगी है ,
धडकनों की नक़ल ज़िन्दगी है ।
अगली किश्त का इंतज़ार ज़िन्दगी है ...

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत ही अच्‍छा लिखा है ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

चंद यादों का कल ज़िन्दगी है,
धड़कनों की नक़ल ज़िन्दगी है!
ज़िन्दगी को कहाँ ढूढते हो,
मौत की हमशकल ज़िन्दगी है!...

लाजवाब ... ग़ज़ब की रवानगी लिए .... बहुत ही अनमोल भाव और शब्दों से सजी रचना है ...

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

प्रवाहमय सुन्दर गीत ।

Urmi ने कहा…

टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

मर्मज्ञ जी,
जिंदगी और मौत के संबंधों को परिभाषित करते सभी मुक्तक बेजोड़ हैं....

'चंद यादों का कल जिंदगी है |
धडकनों की नक़ल जिंदगी है |
जिंदगी को..... कहाँ ढूंढते हो ,
मौत की हम शकल जिंदगी है |
.................................इससे सरल और सहज ढंग और क्या हो सकता है जिंदगी और मौत के रिश्ते बताने का !
................................आखिरी मुक्तक तो बहुत गहराई तक ले जाता है

Rajesh Kumari ने कहा…

एक मुर्दा कफ़न से चुराकर,
आईने में उतारा गया है !
मृत्यु का हाय श्रृंगार कैसा ,
झील में चाँद मारा गया हैbahut hi behtreen panktiyan.aap bahut achcha likhte hain.mere blog par aane aur apne precious comment dene ke liye haardik dhanya vaad.aapke blog ko follow kar rahi hoon,taaki aapka update jaan sakoon.

Coral ने कहा…

एक मुर्दा कफ़न से चुराकर,
आईने में उतारा गया है !
मृत्यु का हाय श्रृंगार कैसा ,
झील में चाँद मारा गया है !

बहुत गहन अभीव्यक्ति

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना ... आपने सही कहा है ... मौत एक शास्वत सत्य है जिसे कोई नहीं नकार सकता है ... मैं तो इसे इस तरह समझता हूँ कि माँ लीजिए आप कहीं नौकरी कर रहे हैं तो आपको जो भी काम दिया जाता है उसे पूरा करने के लिए एक निश्चित समय सीमा तय होती है ... जिंदगी भी एक ऐसी ही समय सीमा है जिसमें हमें अपना कर्तव्यों का निर्वाह करना है ...

Satish Saxena ने कहा…

कहाँ खो गए मर्मज्ञ जी ! आपके प्रसंशक इंतज़ार में हैं ! शुभकामनायें आपको !

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

मौत एक सत्य है उस पर आपके विचार उत्कृष्ट हैं.

virendra sharma ने कहा…

"झील में चाँद मारा गया है "आपकी अलग एक और रचना का इंतज़ार .

बेनामी ने कहा…

gajab ki prastuti...........AAbhaar!

Unknown ने कहा…

बहुत ही प्यारी कविता !
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - अज्ञान

Coral ने कहा…

ज़िन्दगी को कहाँ ढूढते हो,
मौत की हमशकल ज़िन्दगी है!

सत्य ....बहुत ही सुन्दर ...
Happy Environmental Day !

अनुपमा पाठक ने कहा…

'मौत की हमशकल ज़िन्दगी है!'
अटल सत्य को सुन्दरता से पिरोया है!