मुखौटा
उस चिलचिलाती धूप में
अगर मेरी आँखें पिघलकर बह जातीं
तो
पूरी भीड़ मझे पहचान लेती
और
मरे कफ़न की तरह
मुझे भी नोच डाला जाता !
साँसें
अहसास के बिखरे हुए टुकड़ों में बँट कर किसी लावारिश लाश की तरह
सड़क के किनारे पड़ी मिलतीं !
ऐसा कुछ भी न हो
बस इसी लिए मैंने वह मुखौटा लगाया था !
और इस लिए भी कि........
नागफनी पर पसरे प्रतीक्षा कर रहे
विश्वास के लहू में पैर रखकर आसानी से वह बाज़ार पार कर जाऊं
जहाँ
सिक्कों पर ईमान की मुस्कराहट बिक जाती है
जहाँ
केवल इंसान का व्यापार होता है
और लाँघ जाऊं
सड़क पर पड़े उन तमाम लाशों के ढेर को
जो अपने ही कफ़न के लिए भीख मांग रहे हैं!
कसमों और वादों की अर्थी उसी तरह ज्यों की त्यों पड़ी रह जाय
जिससे जिंदा होने का स्वांग करते ये मरे हुए लोग उधर से गुज़रें
तो उन्हें
अपना भविष्य उज्वल होने की कल्पना
साकार होने का स्वप्न फिर से दिखने लगे !
इस प्रकार
मुखौटा पहनकर
दिल पर पत्थर का दिल बांधकर
' व्यवस्था ' के बाज़ार को पार करने की मेरी कोशिश सफल तो हो गयी
मगर
जब दर्पण से सामना हुआ तो स्तब्ध रह गया
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
60 टिप्पणियां:
' व्यवस्था ' के बाज़ार को पार करने की मेरी कोशिश सफल तो हो गयी
मगर
जब दर्पण से सामना हुआ तो स्तब्ध रह गया
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !
आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।
जीवन का एक नंगा सत्य। मन को बहला कर हम कुछ कर जाते हैं पर अन्ततः आईने के सामने तो हम नंगे हैं।
‘मेरी आँखें पिघलकर बह जातीं’
बात पल्ले नहीं पड़ी :(
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !
मार्मिक व्यथा उकेरी है, आपने।
वर्त्तमान समाज का आईना प्रस्तुत किया है आपने.. मुखौटा उतारकर रख दिया है!!
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !
यही मुखौटा लिए तो सारा जीवन गुज़र जाता है..... बहुत मार्मिक ...पर सच को समेटे रचना
इस प्रकार
मुखौटा पहनकर
दिल पर पत्थर का दिल बांधकर
' व्यवस्था ' के बाज़ार को पार करने की मेरी कोशिश सफल तो हो गयी
मगर
जब दर्पण से सामना हुआ तो स्तब्ध रह गया
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !
Ekdam adbhut!
आईना हमें अपना चेहरा दिखाता है और हम खुद से झूठ नहीं कह सकते ...
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !
जीवन की सच्चाई को वयां करती हुई रचना, बधाई
कसमों और वादों की अर्थी उसी तरह ज्यों की त्यों पड़ी रह जाय
जिससे जिंदा होने का स्वांग करते ये मरे हुए लोग उधर से गुज़रें
atiuttam
self explained kavita hai.
जीवन की सच्चाई को वयां करती हुई रचना,
बधाई
वाह.....ज्ञानचंद जी....आज लफ्ज़ कम पद रहे हैं आपकी इस पोस्ट की तारीफ़ के लिए.....मेरा सलाम है आपको......बहुत ज़बरदस्त लिखते हैं आप......ज़मीं से जुड़े लगों की हकीक़त......सुभानाल्लाह......
सड़क पर पड़े उन तमाम लाशों के ढेर को
जो अपने ही कफ़न के लिए भीख मांग रहे हैं!
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !
यही मुखौटा पहने तो पूरा जीवन गुज़र लेता है इन्सान, और फिर अपने चेहरे और मुखोटे के बीच का फर्क भी भूल जाता है ..... बहुत मार्मिक रचना..
darpan jhooth na bole..:)
ज़माने की सच्चाई बयां की है साहब.... अपने इस रचना के साथ....
जिंदगी के घिनोने सच को दर्शाती रचना ।
सशक्त रचना ।
इन्सानी व्यापार की यथार्थताएँ कितने ही मुखौटे मिलकर भी छुपा नहीं सकते ।
जब दर्पण से सामना हुआ तो स्तब्ध रह गया वह मुखौटा उस धूप में पिघलकर मेरा चहरा बन गया था.
उफ़ सचाई से ऐसा सामना न कराईये मर्मज्ञ जी कि जान ही निकल जाए. बी आहूत ही सुंदर रचना. बधाईयां.
' व्यवस्था ' के बाज़ार को पार करने की मेरी कोशिश सफल तो हो गयी
मगर
जब दर्पण से सामना हुआ तो स्तब्ध रह गया
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !
climax बहुत अच्छा है मर्मज्ञ जी ,वाह वाह क्या बात है.
जब दर्पण से सामना हुआ तो स्तब्ध रह गया
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !...
अंतस को झकझोरती हुई रचना...
हार्दिक बधाई।
आपकी ये रचना आज के समाज का दर्पण है ।
मुखौटा कब हमारा असली चेहरा बन जाता है हमें ही पता नहीं चलता ! और फिर हमें उसकी आदत ही हो जाती है.
वाह ज्ञान जी ... आपको छन्द मुक्त रचनाओं में भी इतनी ही महारत रखते अहीं जितनी छन्द बद्ध रचनाओं में ... हर शब्द जैसे पिघलता हुवा लावा हो ... बहुत संवेदनशील ...
बहुत अच्छी व्यंग्यपूर्ण कविता। आभार।
और इस लिए भी कि........नागफनी पर पसरे प्रतीक्षा कर रहे विश्वास के लहू में पैर रखकर आसानी से वह बाज़ार पार कर जाऊं जहाँ सिक्कों पर ईमान की मुस्कराहट बिक जाती है जहाँ केवल इंसान का व्यापार होता है
आद ज्ञानचंद जी, कविता का एक एक शब्द दिल पर उतरता है ......
बहुत ही सशक्त रचना .....
मगर जब दर्पण से सामना हुआ तो स्तब्ध रह गया वह मुखौटा उस धूप में पिघलकर मेरा चहरा बन गया था !
वाह .....अद्भुत वर्णन .....
दिल पर पत्थर का दिल बांधकर
' व्यवस्था ' के बाज़ार को पार करने की मेरी कोशिश सफल तो हो गयी
मगर
जब दर्पण से सामना हुआ तो स्तब्ध रह गया
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !
ऐसा खरा सत्य....निःशब्द हो गयी...
अप्रतिम रचना...
बहुत बढ़िया , आपने Cmpershad ji को उत्तर नहीं दिया ? ‘मेरी आँखें पिघलकर बह जातीं’ इन पंक्तियों से जो मैंने समझा ...वह यह है अगर आँखें पिघल कर बह जातीं यानि अगर पहचान के भाव उभर आते तो ...यानि एक सोची समझी दूरी बना कर हम चलते रहते हैं ...क्या ये अर्थ ठीक है ?
आद. शारदा जी,
'आँखें पिघलने' का भावार्थ एक आम आदमी की पहचान की उस स्थिति से है जो व्यवस्था के हाथों मजबूर होकर अपने जीवन का वह मंज़र देखने के लिए बाध्य होता है जहाँ उसकी बेबसी की अकुलाहट उसे तिल तिल कर मरने को विवश कर देती है !पिघल कर बहती हुई ऐसी अनगिनत आँखें आम आदमी के दर्द की अनसुनी कहानी हैं !
आपने जो अर्थ लिया है ,सही है !
वैसे किसी भी कविता का भावार्थ उसकी व्यंजना में छुपा होता है जो पाठकों की संवेदनाशीलता के अनुसार प्रतिविम्बित होता है !
आपका बहुत आभार !
"मगर
जब दर्पण से सामना हुआ तो स्तब्ध रह गया
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चेहरा बन गया था "
********************
आद० मर्मज्ञ जी ,
बहुत ही सुन्दर ढंग से आपने जीवन और समाज की असुन्दरता को अभिव्यक्ति दी है |
विसंगतियों से बचने-बचाने में मनुष्य अंततः स्वयं ही इसका शिकार कब हो जाता है , पता ही
नहीं चलता | जब वह आत्म समीक्षा करता है तब कहीं समझ पाता है कि वह कहाँ खड़ा है |
सुन्दर एवं भावपूर्ण.....प्रभावशाली कविता के लिए बधाई स्वीकारें |
बहुत ही सशक्त रचना| धन्यवाद|
मनुष्य भीड़ का हिस्सा बन तो जाता है मगर अंततः वह है अकेला ही!
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !
बहुत खूब कहा है आपने ...।
आदरणीय ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी
नमस्कार !
आपकी ये रचना आज के समाज का दर्पण है ।
रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
बहुत बढ़िया लिखा हैं...काबिले तारीफ
मुखौटा पहनकर
दिल पर पत्थर का दिल बांधकर
' व्यवस्था ' के बाज़ार को पार करने की मेरी कोशिश सफल तो हो गयी
मगर
जब दर्पण से सामना हुआ तो स्तब्ध रह गया
वह मुखौटा
उस धूप में पिघलकर
मेरा चहरा बन गया था !
जीवन के कटु सत्य को जिससे हम बच कर निकल जाना चाहते हैं बहुत ही मार्मिकता से उकेरा है आपने इस रचना में..अद्भुत प्रस्तुति..बहुत मर्मस्पर्शी..होली की हार्दिक शुभकामनायें!
मर्मज्ञ जी, बहुत ही सच्चाई बयां की है आपने ने. आखिर मुखौटा कब तक सच्चाई छुपा सकता है. असली सच्चाई तो उजागर होती ही है. सुंदर प्रस्तुति.
भाई मर्मग्य जी होली की रंगभरी शुभकामनाएं |
भाई मर्मग्य जी होली की रंगभरी शुभकामनाएं |
मर्मज्ञ जी,
बहुत अद्भुत लिखा है आपने.
पूरी रचना ही खूबसूरत है.
तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं.
बहुत खूब.
बहुत ही खूब.
शुभ कामनाएं.
जीवन का सच दिखाता आईना\ आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें।
जीवन सत्य को परिलक्षित करती रचना.
बहुत सुन्दर रचना!
--
उनको रंग लगाएँ, जो भी खुश होकर लगवाएँ,
बूढ़ों और असहायों को हम, बिल्कुल नहीं सताएँ,
करें मर्यादित हँसी-ठिठोली।
आओ हम खेलें हिल-मिल होली।।
--
होलिकोत्सव की शुभकामनाएँ!
मुखौटा धूप में पिघल कर चेहरा बन गया, नया और सुंदर प्रयोग, बधाई.
इतनी अच्छी बैचारिक कबिता के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद .
रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख
bahut khoob likha hai janaab...
रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख
bahut khoob likha hai janaab...
that's why it is said "mirror never lies" nice article...
Holee kee dhero shubhkamnayen!
होली पर कोई पोस्ट नहीं लिखी ...??? आशा है आप स्वस्थ व सानंद होंगे !!
आपको और परिवार को शुभकामनायें मर्मज्ञ जी !
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
आइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।
बस इतना ही कह सकती हूँ , वाह! क्या खूब लिखा है...|
प्रियंका
हफ़्तों तक खाते रहो, गुझिया ले ले स्वाद.
मगर कभी मत भूलना,नाम भक्त प्रहलाद.
होली की हार्दिक शुभकामनायें.
होली पर मैं आपको तथा परिवार के लिए मंगल कामनाएं करता हूँ !
आपको होली की शुभकामनाएँ
प्रहलाद की भावना अपनाएँ
एक मालिक के गुण गाएँ
उसी को अपना शीश नवाएँ
मौसम बदलने पर होली की ख़शियों की मुबारकबाद
सभी को .
बहुत मार्मिक पोस्ट
आपको होली कि हार्दिक शुभकामनाये
आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं
क्या बात है ज्ञान जी! बहुत खूब.
रंग-पर्व पर हार्दिक बधाई.
आपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....
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