फूल पर भी न सोया गया
बीज ऊसर में बोया गया
दर्द में दिल डुबोया गया
प्यास चुभने लगी कंठ में
फूल पर भी न सोया गया
फ़ेंक डाला धनुष तोड़कर
रंग सातों सँजोया गया
तोड़ कर मेरा जलता दिया
आसमाँ में पिरोया गया
बादलों में नमी ढल गयी
चाह कर भी न रोया गया
दाग़ मजबूरियों का लगा
ख़ून से भी न धोया गया
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
46 टिप्पणियां:
वाह...वाह...वाह...
अतिसुन्दर मुग्धकारी रचना..
भाव और शब्द सौन्दर्य ने मन मोह लिया वाह...
बेहतरीन, बहुत ही अच्छी, कोई शब्द नहीं है इसके लिये।
रोशनी की फसल काटकर ...बहुत ही खूबसूरत शब्दों का संगम ...।
रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया
आपने बिलकुल सही कहा है ....जब रोशनी नहीं होगी तब ही अँधेरे का बजूद है ...वर्ना रोशनी के रहते अँधेरा पास नहीं फटक ....बहुत सुंदर रचना ..आपका शुक्रिया
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
मैं जिस कवि मर्मज्ञ को जानता हूँ उनकी रचनाओं में आधुनिक विसंगतियों पर अवसाद तो होता है किन्तु आशावादिता सिसकी ले रही होती है. पर पीड़ ऐसी पर्वत सी हो चली है अब कि कवि को कहना पड़ा, "रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया". आखिर कब छंटेगा यह अँधेरा.... ? विचार ही नहीं कर्म को उद्वेलित करना होगा. कवि का व्यंग्य सुगढ़ है.
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया
Kya gazab alfaaz hain!
दाग़ मजबूरियों का लगा
ख़ून से भी न धोया गया
सशक्त वक्तव्य ।
प्यास चुभने लगी कंठ में
फूल पर भी न सोया गया.
बेहतरीन प्रस्तुति...
बहुत ही बढ़िया .
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया
आपकी कलम को सलाम
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
बड़ा दर्द है जी शेर में, वाह वाह,
रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया
गज़ब का लिखते हैं, मर्मज्ञ जी .
महसूस कर रहा हूँ ग़ज़ल के भाव!!उतारने की कोशिश कर रहा हूँ हृदय में!!
bahut khoobsoorat abhivyakti
अनोखे व्यंग्य के लिए, बसंत-पंचमी के साथ-साथ मुबारकवाद.
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया
दिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत, संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
दाग़ मजबूरियों का लगा
ख़ून से भी न धोया गया
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
वाह........ मर्मज्ञ जी क्या खूब कहा है, बेमिसाल कृति जिसकी रचना सिर्फ आपकी कलम ही कर सकती है... सशक्त रचना..
दाग़ मजबूरियों का लगा
ख़ून से भी न धोया गया
आपने बिलकुल सही कहा है
आपकी कलम को सलाम
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
बेहतरीन अभिव्यक्ति..... भावपूर्ण प्रस्तुति
बहुत सुन्दर रचना..
वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए....
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है.... फूल पर भी न सोया गया ... सबसे अधिक पसंद आया ...
इतनी गहन अभिव्यक्ति है कि निशब्द हो गयी हूँ।
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर गजल, चंद सांसों का ही बोझ था, जिंदगी से न ढोया गया, कितनी कटु सच्चाई है यह आज के समाज की, जहाँ छोटी-छोटी बात पर लोग आत्महत्या करने की बात सोचने लगे हैं !
ज्ञानचंद जी,
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल....हर शेर उम्दा...वाह...
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
बादलों में नमी ढल गयी
चाह कर भी न रोया गया
प्रत्येक पंक्ति जिंदगी की तल्ख़ सच्चाई बयान कर रही है ।
उम्दा रचना ।
आभार।
.
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
गजल का हर एक शेर काबिलेतारीफ है!
--
बसन्तपञ्चमी की शुभकामनाएँ।
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
वाह......
गुनगुनाने वाली नज़्म .....
बहुत ही प्यारी गजल कही है आपने। बधाई स्वीकारें।
---------
समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।
हर कवि अपने समय के प्रति जागरूक होता है। जब माहौल निराशा और अवसाद से भरा हो,तो उसे भी आवाज़ देना ठीक।
सुन्दर गीत... अस्सी के दशक के गीत याद आ गए.. बहुत बढ़िया..
great bahut achhi rachna bahut acche sabdo ke saath ..........badhai sweekar karen
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया
मर्मज्ञ जी , बहुत ही गहरा भाव लिये बेहतरीन कविता.......... . सुंदर प्रस्तुति.
.
सैनिक शिक्षा सबके लिये
चंद सांसों का ही बोझ था
जिन्दगी से न ढोया गया
बहुत उम्दा शेर...पूरी ग़ज़ल मुकम्मल |
atyant sundar tarike se bhavo ko ukera hai aapne.........shubhakamnaaye
रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया
आपने बिलकुल सही कहा है ..
बेहतरीन प्रस्तुति.....आपका शुक्रिया
Highly touching expressions!
वाह...
बहुत उम्दा रचना है
रचना की अदायगी इतनी खूबसूरत है
की इसकी तारीफ का शब्द अभी खोजा न गया...
bahut sunder rachna akhri do line mujhe bahut achi lagi..
रोशनी की फसल काटकर...............एक बार फिर आपकी कलम से शाश्वत सत्य का प्रवाह.,,.....................बहुत खूब।
एक निवेदन:-
मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
आदरणीय ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी
सस्नेहाभिवादन !
पूरी ग़ज़ल शानदार है । हर शे'र काबिले-ता'रीफ़ है …
रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया
यह शे'र साथ लिये' जा रहा हूं …
बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बेहतरीन प्रस्तुति...बहुत ही अच्छी
बहुत खूब...
रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया
बड़ी अच्छी बात कह दी...।
प्रियंका
आपकी यह रचना पढ़ कर दुष्यंत जी की यह पंक्तियाँ याद आ गयीं...
हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नही
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
चंद साँसों का ही बोझ था ,
ज़िन्दगी से न ढोया गया ।
वाह, मर्मज्ञ जी, क्या खूब शेर कहा है।
‘बहुत कठिन है डगर पनघट की‘
इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई।
चंद साँसों का ही बोझ था
ज़िन्दगी से न ढोया गया
रोशनी की फ़सल काटकर
फिर अँधेरों को बोया गया
खुबसूरत शब्दों का सुन्दर ताना बाना !
सुन्दर रचना !
सभी पाठकों का हृदय से धन्यवाद प्रेषित करता हूँ जिनके प्रोत्साहन के बिना भावों को शब्दों में गूंथना संभव नहीं है !
एक टिप्पणी भेजें