ज्ञानचंद मर्मज्ञ

मेरे बारे में

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Bangalore, Karnataka, India
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
!! श्री गणेशाय नमः !!

" शब्द साधक मंच " पर आपका स्वागत है
मेरी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

- ज्ञान चंद मर्मज्ञ

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रविवार, 30 जनवरी 2011

भीड़ को हम नज़र आ गए




                                                             ग़ज़ल 



               किस डगर हम इधर आ गए 
               उलझनों  के  शहर  आ  गए 


                              अजनबी  है  यहाँ  हर  कोई
                              हम समझते थे  घर आ गए


               क़त्ल  की रात ढलने को थी 
               भीड़  को  हम नज़र आ गए


                              लूट  लेते   हैं  ख़ुद   मंज़िलें
                              कौन  से   राहबर  आ   गए


               ज़िन्दगी  का  सफ़र यूँ लगे 
               बस  उधर  से इधर आ गए


                                           -ज्ञानचंद मर्मज्ञ    

61 टिप्‍पणियां:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आज तो शहरयार साहब का कलाम याद करा दियाः
सीने में जलन,आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है,
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूँ है!
आपकी ग़ज़ल इसी वेदना को रेखांकित करती है!!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

ज़िन्दगी का सफ़र यूँ लगे
बस उधर से इधर आ गए

बहुत खूब .... यूं ही लगता है यह सफ़र

बेनामी ने कहा…

मर्मज्ञ जी!
सीधे सादे शब्दों में
बहुत ही सशक्त रचना पेश की है आपने!

kshama ने कहा…

ज़िन्दगी का सफ़र यूँ लगे
बस उधर से इधर आ गए
Kya gazab likha hai...hameshaki tarah!

vandana gupta ने कहा…

ज़िन्दगी का सफ़र यूँ लगे
बस उधर से इधर आ गए

सच कहा …………
ऐसा लगने लगे तो क्या बात हो
शायद तब ज़िन्दगी से मुलाकात हो

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत अच्छे.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए

बहुत खूब ..बढ़िया गज़ल ..

Sushil Bakliwal ने कहा…

ज़िन्दगी का सफ़र यूँ लगे
बस उधर से इधर आ गए
बहुत खूब... चलती रहे जिन्दगी.

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

bhut khoob....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच में, लगता है बस जिन्दगी भटके जा रही है।

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

ज़िन्दगी का सफ़र यूँ लगे
बस उधर से इधर आ गए



बहुत खूब लिखा आपने......बधाई .....आभार मेरे ब्लॉग पर आये ,और स्नेह पाती रहूँ ....

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय मर्मज्ञ जी!
नमस्कार !
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
बेहतरीन ग़ज़ल.......दिल से मुबारकबाद|

संजय भास्‍कर ने कहा…

लूट लेते हैं ख़ुद मंज़िलें
कौन से राहबर आ गए
ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी .... बेहतरीन शब्द , बेहतरीन भाव , बेहतरीन सन्देश ... लाजवाव रचना ...

Anita ने कहा…

एक लाजवाब गजल ! 'बस उधर से इधर आ गये ' में बहुत गहरी बात कह दी है !

बेनामी ने कहा…

ज्ञानचंद जी,

बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल है आपकी.....हर शेर उम्दा.....ये शेर सबसे अच्छा लगा-

क़त्ल की रात ढलने को थी
भीड़ को हम नज़र आ गए

करण समस्तीपुरी ने कहा…

ज़िन्दगी का सफ़र यूँ लगे
बस उधर से इधर आ गए

चंद अलफ़ाज़ में हक़ीक़त-ए-जिंदगी बयाँ कर दी है. एक शे'र मैं भी कह दूँ,

"मांझी तेरे नाव के तलबगार बहुत हैं,
कुछ इस पार तो उस पार बहुत है !
जिस शहर खोली है तू ने शीशे की दूकान ,
उस शहर में पत्थर के खरीदार बहूत हैं !!

सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी ने कहा…

क़त्ल की रात ढलने को थी
भीड़ को हम नज़र आ गए..
वाह ... मर्मज्ञ जी. खूब.,,,,,,,,,,

निर्मला कपिला ने कहा…

ज़िन्दगी का सफ़र यूँ लगे
बस उधर से इधर आ गए

अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए
मर्मग्य जी लाजवाब गज़ल है हर शेर ज़िन्दगी के सच को ब्याँ करता हुया। बधाई।

Arvind Jangid ने कहा…

बेहतरीन.........बस उधर से इधर आ गए..आभार.

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

हर नज़्म बहुत ही भाव पूर्ण और सुंदर..... बेहतरीन प्रस्तुति.

Kunwar Kusumesh ने कहा…

क़त्ल की रात ढलने को थी
भीड़ को हम नज़र आ गए


बड़ी सादगी और सलाहियत से अपनी बात शेर में कह दी आपने.
हर शेर लाजवाब है.
आपकी हर कविता आपके दिल से निकलती है और दूसरे के दिल के अन्दर सीधे पहुँचती है.
वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह.

ज्योति सिंह ने कहा…

ज़िन्दगी का सफ़र यूँ लगे
बस उधर से इधर आ गए
bahut badhiya ,kuchh yoon hi hai jindagi ka safar .

संध्या शर्मा ने कहा…

अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए

दिल की गहराइयों से निकली एक बेहतरीन रचना..

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

क़त्ल की रात ढलने को थी
भीड़ को हम नज़र आ गए

क्या बात है .....
बहुत खूब ....!!

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

यथार्थ अभिव्यक्ति है.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

मिट्टी की पलकें पर बधाई॥

लूट लेते हैं ख़ुद मंज़िलें

कौन से राहबर आ गए

अब इन रहबरों की शिनाख्त कौन करें.. सभी को मालूम तो है :)

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

sundar gazal bahut bahut badhai

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

sundar gazal bahut bahut badhai

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

sundar gazal bahut bahut badhai

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

sundar gazal bahut bahut badhai

ZEAL ने कहा…

.

अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए

----------
ऐसा ही होता है ..
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी ,
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी।

.

रंजना ने कहा…

हर शेर मन को छूता हुआ...

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...

पढवाने के लिए आभार...

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए

बहुत ख़ूब लिखा है आपने ।

उम्दा ग़ज़ल। बधाई।

Satish Saxena ने कहा…

एक संवेदनशील दिल की व्यथा है यह रचना ! हार्दिक शुभकामनायें मर्मज्ञ जी !

Suman ने कहा…

bahut sunder gajal hai........

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

वाह! वाह!

'"अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए''

सारगर्भित गज़ल की प्रस्तुति हेतु बधाई!
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी

Unknown ने कहा…

ज़िन्दगी का सफ़र यूँ लगे
बस उधर से इधर आ गए!!
वेदना को प्रकट करती,सशक्त रचना!!

shikha varshney ने कहा…

अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए

क्या बात कही है सशक्त रचना.

वाणी गीत ने कहा…

अजनबी शहर के अजनबी रास्ते ...
कहाँ चले थे किधर आ गए ..
क़त्ल की रात ढलने को थी की भीड़ को हम नजर आ गए ...
उम्दा शेर !

Surendra Singh Bhamboo ने कहा…

बहुत अच्छी कविता बहुत सुन्दर विचार है। आपके धन्यवाद

हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

मालीगांव
साया
लक्ष्य

Anupama Tripathi ने कहा…

किस डगर हम इधर आ गए
उलझनों के शहर आ गए


ठीक ही लिखा है -
ज़िन्दगी उलझनों से भरा शहर ही है -

daanish ने कहा…

ज़िन्दगी का सफ़र यूँ लगे
बस उधर से इधर आ गए
एक अच्छी ग़ज़ल के
अच्छे शेरों में
यह शेर बहुत अच्छा लगा

Rahul Singh ने कहा…

आदमी मुसाफिर है...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

क्या बात.....क्या बात.....क्या बात.....

PN Subramanian ने कहा…

"अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए"
बेहद सुन्दर.

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर लिखा है, ये ही आज की जिन्दगी की हकीकत है.

विशाल ने कहा…

बहुत ही बढ़िया है पूरी ग़ज़ल.
किस शेर को छोडूं और किस की दाद दूं.
आप की कलम को सलाम.

Kailash Sharma ने कहा…

अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए...

लाज़वाब गज़ल..हरेक शेर दिल को छू जाता है..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए ...

बहुत खूब ज्ञान जी .. छोटी बहार में इतने सरल शब्दों में कमाल की ग़ज़ल लिख दी है आपने ... सुभान अल्ला ... क्या कमाल किया है ..

कविता रावत ने कहा…

ज़िन्दगी का सफ़र यूँ लगे
बस उधर से इधर आ गए

अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए ...

बहुत रचना रचना!!बधाई

Sunil Kumar ने कहा…

अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए ..
शेर अच्छा लगा, बधाई

POOJA... ने कहा…

जब भी आपकी ग़ज़ल या रचना पढ़ती हूँ, सीखने की कोशिश करती हूँ...
बहुत सुन्दर ग़ज़ल... धन्यवाद...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

अजनबी है यहाँ हर कोई

हम समझते थे घर आ गए

उम्दा शेर....सुन्दर ग़ज़ल

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

अजनबी है यहाँ हर कोई,
हम समझते थे घर आ गए।

वाह, मर्मज्ञ जी, क्या खूब लिखा है।
कभी-कभी घर के लोग भी अजनबी लगने लगते हैं।
यथार्थपरक ग़ज़ल।

रचना दीक्षित ने कहा…

क़त्ल की रात ढलने को थी
भीड़ को हम नज़र आ गए

बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल है

संतोष पाण्डेय ने कहा…

खुबसूरत ग़ज़ल. बहुत खूब.

Dorothy ने कहा…

अजनबी है यहाँ हर कोई
हम समझते थे घर आ गए

दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

आप सभी सुधी पाठकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ !
आपके विचार मेरी उर्जा बनकर मुझे प्रोत्साहित करते हैं

Amrita Tanmay ने कहा…

हर शेर उम्दा..सशक्त रचना

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

साधारण शब्दों में बड़ी असाधारण बात कह जाते हैं आप...।
मेरी बधाई...

प्रियंका

आचार्य परशुराम राय ने कहा…

मर्मज्ञ जी,
आपकी यह कविता और इसकी शब्द योजना बड़ी ही प्यारी लगी। साधुवाद।