ज्ञानचंद मर्मज्ञ

मेरे बारे में

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Bangalore, Karnataka, India
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !
!! श्री गणेशाय नमः !!

" शब्द साधक मंच " पर आपका स्वागत है
मेरी प्रथम काव्य कृति : मिट्टी की पलकें

रौशनी की कलम से अँधेरा न लिख
रात को रात लिख यूँ सवेरा न लिख
पढ़ चुके नफरतों के कई फलसफे
इन किताबों में अब तेरा मेरा न लिख

- ज्ञान चंद मर्मज्ञ

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सोमवार, 13 दिसंबर 2010

आतंकवाद:भाग-३

            
             आतंकवाद:भाग-३


          कितने    सिंदूर   धोये   गए  हैं,
          किस   कदर  हाय  रोये  गए  हैं!
          तोड़   कर  हाथ  के  कंगनों  को,
          दर्द    के   खेत   बोये   गए   हैं!

                            लाल टुकड़ों में खुशियों का तन है,
                            कब  से  बेचैन  मेंहदी  का मन है!
                            कैसी    बारात   कैसा   लगन   है,
                            आधी  दुल्हन है  आधा सजन  है!

          वो   गुलाबी   अधर  तो   उठाना,
          जिसमें  पायल  हो  वो पैर लाना!
          ढूंढ़  लाना  पिया  की   वो  आँखें,
          एक    पूरी   दुल्हन   है   बनाना!

                              कैसी  तड़पन  की लम्बी घड़ी है,
                              साँस   छोटी  है, आहें   बड़ी   हैं!
                              ग़म  के हाथों  में लम्बी छड़ी है,
                              चार  मौसम  सभी  पतझड़ी  हैं!
    
                                   ...........अगले अंकों में जारी
                                               -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

46 टिप्‍पणियां:

Kunwar Kusumesh ने कहा…

कितने सिंदूर धोये गए हैं,
किस कदर हाय रोये गए हैं!
तोड़ कर हाथ के कंगनों को,
दर्द के खेत बोये गए हैं

बड़ा दर्दनाक चित्रण किया है आपने.बहुत अच्छा लिख रहे हैं आप.

उस्ताद जी ने कहा…

6/10

पठनीय
रचना को पढ़ते हुए बरबस ही चित्र बनने लगते हैं जो मन को विचलित करते हैं.

Sushil Bakliwal ने कहा…

कैसी बरात कैसा लगन है,
आधी दुल्हन है आधा सजन है!
आतंकवाद भुगतते दुखियारों की पीडा का वास्तविक सा शब्दचित्रण लग रहा है ।
अच्छा प्रस्तुति क्रम... आभार सहित.

vandana gupta ने कहा…

इतना मार्मिक चित्रण कर रहे हैं कि आंख भर आती है………………सत्य को उदघाटित करती प्रस्तुति।

करण समस्तीपुरी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
करण समस्तीपुरी ने कहा…

"वियोगी होगा पहला कवि. आह से उपजा होगा गान'. ----- पन्त जी की उक्ति उद्भाषित हो रही है. बहुत ही हृदयविदारक चित्रण किया है आपने. एकबार फिर श्री मर्मज्ञ जी की अविध खुल कर बोल रही है. धन्यवाद !

Satish Saxena ने कहा…


मर्मज्ञ के संवेदनशील ह्रदय का परिचय देने के लिए यह शब्द चित्रण बहुत कुछ कहता है !
सोंचने पर मजबूर करती रचना के लिए बधाई भाई जी !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कितने सिंदूर धोये गए हैं,
किस कदर हाय रोये गए हैं!
तोड़ कर हाथ के कंगनों को,
दर्द के खेत बोये गए हैं ...


आतांक का मंज़र आँखो के सामने से गुज़र जाता है रचना को पढ़ते हुवे ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

कितने सिंदूर धोये गए हैं,
किस कदर हाय रोये गए हैं!
तोड़ कर हाथ के कंगनों को,
दर्द के खेत बोये गए हैं ...

मार्मिक चित्रण ....हृदयस्पर्शी ......

बेनामी ने कहा…

ज्ञानचंद जी,

बहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति है......एक परिपक्व पोस्ट .....शुभकामनाये|

निर्मला कपिला ने कहा…

कैसी तड़पन की लम्बी घड़ी है,
सांस छोटी है, आहें बड़ी हैं!
ग़म के हाथों में लम्बी छड़ी है,
चार सच कहूँ आपकी रचना पढ कर मन द्रवित हो उठा। पिछली रचना मे भी ऐसे ही आँखें नम हो गयी।। कितनी गहरी संवेदनायें चाहिये ऐसी रचना लिखने के लिये। बस निशब्द हूँ।

रंजना ने कहा…

ओह....
अतिमर्मिक...
क्या कहूँ...

साधुवाद आपका...

रचना दीक्षित ने कहा…

मार्मिक चित्रण,आपकी पोस्ट ने मुझे मेरी पुरानी पोस्ट याद दिला दी .शहीदों को नमन

जहाँ की खुशबू,हवा और जुबाँ से हम महकते हैं

जिसकी हिफाज़त को हम धरम ईमान कहते हैं

सीने में जहाँ शहीद होने के अरमान रहते हैं

जिसके नाम पे हम, आज भी नाज़ करते हैं

उसी को शहीद का वतन कहते हैं !




पिता की आँखों मे जहाँ आंसू न बसते हैं

माँ की दवाई को पैसे न बचते हैं

पेंन्शन को दौड़ दौड़, मेरी बेवा के पांव न थकते हैं

खाने को कभी जहाँ पकवान न पकते हैं

हाँ! उसी को मेरी जाँ शहीद का वतन कहते हैं




ताबूत से जहाँ मेरे पैसे छनकते हैं

बेवा की पेंन्शन से प्याले छलकते हैं

न करो घर से बेघर, बीबी बच्चे कगरते हैं

घर वाले जहाँ जी जी के मेरे रोज मरते हैं

उसी को शहीद का वतन कहते हैं ??

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत मार्मिक प्रस्तुति ....हर पंक्ति जैसे इक दृश्य दिखने में सक्षम ..

ZEAL ने कहा…

बहुत ही सजीव चित्र खींचा है आपने इस रचना में।
आभार।

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

आपकी कविताएं पढ कर अच्छा लगा ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत सच कहा है, सब पतझड़ी है।

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत ही मार्मिक चित्रण। आभार इस प्रस्तुति के लिए।

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

आप सभी की आत्मीयता के लिए कृतज्ञ हूँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

Amit K Sagar ने कहा…

आपकी रचनाएं पढने का इक अलग ही मजा है. इनमे जिंदगी के तमाम पहलु और ऊर्जा मिलती है. यही मुझे जादा पसंद आया.
--
पंख, आबिदा और खुदा के लिए

बेनामी ने कहा…

लाल टुकड़ों में खुशियों का तन है, कब से बेचैन मेहंदी का मन है! कैसी बरात कैसा लगन है, आधी दुल्हन है आधा सजन है!
--
वाह-वाह!
गीत पढ़कर तो आनन्द आ गया!
अभी पिपासा बुझी नही है!
अगली पोस्ट की प्रतीक्षा है!

कडुवासच ने कहा…

... bhaavpoorn rachanaa ... prasanshaneey !!!

सुज्ञ ने कहा…

सत्य को उदघाटित करता मार्मिक चित्रण॥

है भी मर्मज्ञ आप।

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय ज्ञानचंद जी
नमस्कार !
......बड़ा दर्दनाक चित्रण किया है
"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...

shikha varshney ने कहा…

कितने सिंदूर धोये गए हैं,
किस कदर हाय रोये गए हैं!
तोड़ कर हाथ के कंगनों को,
दर्द के खेत बोये गए हैं
बेहद मार्मिक चित्र खींचा है आपने.

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

मन भर आता है पढ़ कर...। न जाने कितनों का घर उजाड़ देने वाले क्या कभी इस पीड़ा को समझ सकेंगे...?
एक मर्मस्पर्शी रचना के लिए मेरी बधाई...।

प्रियंका
www.priyankakedastavez.blogspot.com

डॉ टी एस दराल ने कहा…

आतंकवाद के मर्म को दर्शाती सुन्दर रचना के लिए बधाई ।

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar ने कहा…

मर्मज्ञ जी,
हमेशा की तरह शानदार...जानदार प्रस्तुति... कारुणिक मुक्तक...दिल में एक दर्द-सा उठने लगता है यह सब पढ़कर...आपको बधाई!


और हाँ...एक विनम्र ध्यानाकर्षण!
निम्नांकित शब्दों में टाइपिंग त्रुटि रह गयी है...कृपया सुधार लें, तो अच्छा लगेगा-

बरात........बारात
मेहंदी........मेंहदी
ढूंढ़..........ढूँढ़
सांस.........साँस

Unknown ने कहा…

बहुत ही मार्मिक चित्रण। आभार इस प्रस्तुति के लिए।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत मर्मिक ओर दर्द भरी रचना, जिन पर बीतती होगी कोई उन से पुछे, धन्यवाद इस अच्छी रचना के लिये

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

आज तीनों भाग पढ़े .आतंकवाद की विभीषिका की चित्रात्मक प्रस्तुति ,प्रभावशाली बन पड़ी है .मानवीय संवेदनाओं को जगाती हुई सार्थक रचना हेतु बधाई

Shabad shabad ने कहा…

लाजवाब अभिव्यक्ति.........
बधाई !

saraswat shrankhla ने कहा…

लाल टुकड़ों में खुशियों का तन है,
कब से बेचैन मेहंदी का मन है! कैसी बरात कैसा लगन है, आधी दुल्हन है आधा सजन है!

vahh! nice !!

Surendra Singh Bhamboo ने कहा…

कैसी तड़पन की लम्बी घड़ी है,
सांस छोटी है, आहें बड़ी हैं!
ग़म के हाथों में लम्बी छड़ी है,
आपकी यह रचना वास्तव में दिल को छू लेने वाली रचना हैं आपका शब्द रूपी जाल का बुनना आपकी एक महत्वपूर्ण कला हैं इसके लिए आपका धन्यवाद।

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

सभी पाठकों के प्रति हृदय से कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना है।बधाई।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

कितने सिंदूर धोये गए हैं,
किस कदर हाय रोये गए हैं!
तोड़ कर हाथ के कंगनों को,
दर्द के खेत बोये गए हैं

shandaar..........sir!!
now I will follow you,
barabar aaunga...........

JAGDISH BALI ने कहा…

Good one. very subtle feelings expressed beautifully.

shama ने कहा…

कैसी तड़पन की लम्बी घड़ी है,
साँस छोटी है, आहें बड़ी हैं!
ग़म के हाथों में लम्बी छड़ी है,
चार मौसम सभी पतझड़ी हैं
Kya gazab kaa likhte hain aap!Hairan hun...!

अनुपमा पाठक ने कहा…

बड़ा मार्मिक चित्रण!

ManPreet Kaur ने कहा…

very nice....

mere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

दिल भारी हो गया सर जी। इस सार्थक प्रस्‍तुतिकरण के लिए बधाई स्‍वीकारें।

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छुई-मुई सी नाज़ुक...
कुँवर बच्‍चों के बचपन को बचालो।

Apanatva ने कहा…

rongate khade karne wala chitran.....
par haqeeqat hee bayan karrahe hai aap.....
prashansneey lekhan.

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

khoobsurat aur marmik!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

बहुत मार्मिक कविता रच डाली आपने :(

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

उत्साह वर्धन के लिए सभी पाठकों का हृदय से धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ