आतंकवाद:भाग-३
कितने सिंदूर धोये गए हैं,
किस कदर हाय रोये गए हैं!
तोड़ कर हाथ के कंगनों को,
दर्द के खेत बोये गए हैं!
लाल टुकड़ों में खुशियों का तन है,
कब से बेचैन मेंहदी का मन है!
कैसी बारात कैसा लगन है,
आधी दुल्हन है आधा सजन है!
वो गुलाबी अधर तो उठाना,
जिसमें पायल हो वो पैर लाना!
ढूंढ़ लाना पिया की वो आँखें,
एक पूरी दुल्हन है बनाना!
कैसी तड़पन की लम्बी घड़ी है,
साँस छोटी है, आहें बड़ी हैं!
ग़म के हाथों में लम्बी छड़ी है,
चार मौसम सभी पतझड़ी हैं!
...........अगले अंकों में जारी
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
46 टिप्पणियां:
कितने सिंदूर धोये गए हैं,
किस कदर हाय रोये गए हैं!
तोड़ कर हाथ के कंगनों को,
दर्द के खेत बोये गए हैं
बड़ा दर्दनाक चित्रण किया है आपने.बहुत अच्छा लिख रहे हैं आप.
6/10
पठनीय
रचना को पढ़ते हुए बरबस ही चित्र बनने लगते हैं जो मन को विचलित करते हैं.
कैसी बरात कैसा लगन है,
आधी दुल्हन है आधा सजन है!
आतंकवाद भुगतते दुखियारों की पीडा का वास्तविक सा शब्दचित्रण लग रहा है ।
अच्छा प्रस्तुति क्रम... आभार सहित.
इतना मार्मिक चित्रण कर रहे हैं कि आंख भर आती है………………सत्य को उदघाटित करती प्रस्तुति।
"वियोगी होगा पहला कवि. आह से उपजा होगा गान'. ----- पन्त जी की उक्ति उद्भाषित हो रही है. बहुत ही हृदयविदारक चित्रण किया है आपने. एकबार फिर श्री मर्मज्ञ जी की अविध खुल कर बोल रही है. धन्यवाद !
मर्मज्ञ के संवेदनशील ह्रदय का परिचय देने के लिए यह शब्द चित्रण बहुत कुछ कहता है !
सोंचने पर मजबूर करती रचना के लिए बधाई भाई जी !
कितने सिंदूर धोये गए हैं,
किस कदर हाय रोये गए हैं!
तोड़ कर हाथ के कंगनों को,
दर्द के खेत बोये गए हैं ...
आतांक का मंज़र आँखो के सामने से गुज़र जाता है रचना को पढ़ते हुवे ...
कितने सिंदूर धोये गए हैं,
किस कदर हाय रोये गए हैं!
तोड़ कर हाथ के कंगनों को,
दर्द के खेत बोये गए हैं ...
मार्मिक चित्रण ....हृदयस्पर्शी ......
ज्ञानचंद जी,
बहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति है......एक परिपक्व पोस्ट .....शुभकामनाये|
कैसी तड़पन की लम्बी घड़ी है,
सांस छोटी है, आहें बड़ी हैं!
ग़म के हाथों में लम्बी छड़ी है,
चार सच कहूँ आपकी रचना पढ कर मन द्रवित हो उठा। पिछली रचना मे भी ऐसे ही आँखें नम हो गयी।। कितनी गहरी संवेदनायें चाहिये ऐसी रचना लिखने के लिये। बस निशब्द हूँ।
ओह....
अतिमर्मिक...
क्या कहूँ...
साधुवाद आपका...
मार्मिक चित्रण,आपकी पोस्ट ने मुझे मेरी पुरानी पोस्ट याद दिला दी .शहीदों को नमन
जहाँ की खुशबू,हवा और जुबाँ से हम महकते हैं
जिसकी हिफाज़त को हम धरम ईमान कहते हैं
सीने में जहाँ शहीद होने के अरमान रहते हैं
जिसके नाम पे हम, आज भी नाज़ करते हैं
उसी को शहीद का वतन कहते हैं !
पिता की आँखों मे जहाँ आंसू न बसते हैं
माँ की दवाई को पैसे न बचते हैं
पेंन्शन को दौड़ दौड़, मेरी बेवा के पांव न थकते हैं
खाने को कभी जहाँ पकवान न पकते हैं
हाँ! उसी को मेरी जाँ शहीद का वतन कहते हैं
ताबूत से जहाँ मेरे पैसे छनकते हैं
बेवा की पेंन्शन से प्याले छलकते हैं
न करो घर से बेघर, बीबी बच्चे कगरते हैं
घर वाले जहाँ जी जी के मेरे रोज मरते हैं
उसी को शहीद का वतन कहते हैं ??
बहुत मार्मिक प्रस्तुति ....हर पंक्ति जैसे इक दृश्य दिखने में सक्षम ..
बहुत ही सजीव चित्र खींचा है आपने इस रचना में।
आभार।
आपकी कविताएं पढ कर अच्छा लगा ।
बहुत सच कहा है, सब पतझड़ी है।
बहुत ही मार्मिक चित्रण। आभार इस प्रस्तुति के लिए।
आप सभी की आत्मीयता के लिए कृतज्ञ हूँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आपकी रचनाएं पढने का इक अलग ही मजा है. इनमे जिंदगी के तमाम पहलु और ऊर्जा मिलती है. यही मुझे जादा पसंद आया.
--
पंख, आबिदा और खुदा के लिए
लाल टुकड़ों में खुशियों का तन है, कब से बेचैन मेहंदी का मन है! कैसी बरात कैसा लगन है, आधी दुल्हन है आधा सजन है!
--
वाह-वाह!
गीत पढ़कर तो आनन्द आ गया!
अभी पिपासा बुझी नही है!
अगली पोस्ट की प्रतीक्षा है!
... bhaavpoorn rachanaa ... prasanshaneey !!!
सत्य को उदघाटित करता मार्मिक चित्रण॥
है भी मर्मज्ञ आप।
आदरणीय ज्ञानचंद जी
नमस्कार !
......बड़ा दर्दनाक चित्रण किया है
"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
कितने सिंदूर धोये गए हैं,
किस कदर हाय रोये गए हैं!
तोड़ कर हाथ के कंगनों को,
दर्द के खेत बोये गए हैं
बेहद मार्मिक चित्र खींचा है आपने.
मन भर आता है पढ़ कर...। न जाने कितनों का घर उजाड़ देने वाले क्या कभी इस पीड़ा को समझ सकेंगे...?
एक मर्मस्पर्शी रचना के लिए मेरी बधाई...।
प्रियंका
www.priyankakedastavez.blogspot.com
आतंकवाद के मर्म को दर्शाती सुन्दर रचना के लिए बधाई ।
मर्मज्ञ जी,
हमेशा की तरह शानदार...जानदार प्रस्तुति... कारुणिक मुक्तक...दिल में एक दर्द-सा उठने लगता है यह सब पढ़कर...आपको बधाई!
और हाँ...एक विनम्र ध्यानाकर्षण!
निम्नांकित शब्दों में टाइपिंग त्रुटि रह गयी है...कृपया सुधार लें, तो अच्छा लगेगा-
बरात........बारात
मेहंदी........मेंहदी
ढूंढ़..........ढूँढ़
सांस.........साँस
बहुत ही मार्मिक चित्रण। आभार इस प्रस्तुति के लिए।
बहुत मर्मिक ओर दर्द भरी रचना, जिन पर बीतती होगी कोई उन से पुछे, धन्यवाद इस अच्छी रचना के लिये
आज तीनों भाग पढ़े .आतंकवाद की विभीषिका की चित्रात्मक प्रस्तुति ,प्रभावशाली बन पड़ी है .मानवीय संवेदनाओं को जगाती हुई सार्थक रचना हेतु बधाई
लाजवाब अभिव्यक्ति.........
बधाई !
लाल टुकड़ों में खुशियों का तन है,
कब से बेचैन मेहंदी का मन है! कैसी बरात कैसा लगन है, आधी दुल्हन है आधा सजन है!
vahh! nice !!
कैसी तड़पन की लम्बी घड़ी है,
सांस छोटी है, आहें बड़ी हैं!
ग़म के हाथों में लम्बी छड़ी है,
आपकी यह रचना वास्तव में दिल को छू लेने वाली रचना हैं आपका शब्द रूपी जाल का बुनना आपकी एक महत्वपूर्ण कला हैं इसके लिए आपका धन्यवाद।
सभी पाठकों के प्रति हृदय से कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत बढ़िया रचना है।बधाई।
कितने सिंदूर धोये गए हैं,
किस कदर हाय रोये गए हैं!
तोड़ कर हाथ के कंगनों को,
दर्द के खेत बोये गए हैं
shandaar..........sir!!
now I will follow you,
barabar aaunga...........
Good one. very subtle feelings expressed beautifully.
कैसी तड़पन की लम्बी घड़ी है,
साँस छोटी है, आहें बड़ी हैं!
ग़म के हाथों में लम्बी छड़ी है,
चार मौसम सभी पतझड़ी हैं
Kya gazab kaa likhte hain aap!Hairan hun...!
बड़ा मार्मिक चित्रण!
very nice....
mere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou
दिल भारी हो गया सर जी। इस सार्थक प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई स्वीकारें।
---------
छुई-मुई सी नाज़ुक...
कुँवर बच्चों के बचपन को बचालो।
rongate khade karne wala chitran.....
par haqeeqat hee bayan karrahe hai aap.....
prashansneey lekhan.
khoobsurat aur marmik!
बहुत मार्मिक कविता रच डाली आपने :(
उत्साह वर्धन के लिए सभी पाठकों का हृदय से धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
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