रातों की स्याही है ...
रातों की स्याही है,धूप का निखार है,
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
सुनसान गलियों में सहमी हैं सांसे ,
दंगों के खेतों में उगती हैं लाशें,
सांसों का मोल नहीं कैसा व्यापार है!
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
जब भी लिखी हादसों की कहानी,
लुटती रही यूँ ही खुशियों की रानी,
माटी की दुल्हन है,सोलह श्रृंगार है!
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
आहट है चिंगारी, दस्तक हैं शोले,
कैसे उठें और दरवाज़ा खोलें,
बूढ़ी है अभिलाषा, आशा बीमार है!
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
फिर से वही शोर, सहमी ज़मी है,
गिद्धों की बस्ती में खूं की कमी है,
कितना घिनौना ज़माने का प्यार है!
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
खुशियों की गौरैया,दहशत का आंगन,
बोझिल सी आँखों में डूबा है जीवन,
आँखों की जीत हुई,सावन की हार है!
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
इन पत्थरों का पिघलना है बाकी,
कुछ कोशिशों का उछलना है बाकी,
बौना है आदमी, ऊँची दीवार है,
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
22 टिप्पणियां:
मस्त रहो, स्वस्थ रहो, रोना बेकार है।
सुंदर कविता.. प्रेरित करती हुई
वाह मन को छू गयी आपकी यह अप्रतिम कविता...
इस रचना में भाव और कला शौष्ठव दर्शनीय है...
अतिसुन्दर इस रचना को पढवाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार...
बहुत अच्छी लगी रचना..
आपने याद किया, और ये लीजिए.. मैं हाज़िर!
इस भावगर्भित गीत पर हार्दिक साधुवाद! यूँ ही सूचना देते रहें नयी पोस्ट की।
अर्थगम्भीर भावों का प्रकटीकरण, और लयबद्ध भी।
यथार्थपरक, बधाई
ज़िंदगी का आईना दिखा दिया आपने... ज़रूरत है कि इससे कोई सीख ले.
sundar rachna!!!
आप बहुत सुन्दर कबिता लिखते है
बहुत अच्छा लगा.
मर्मज्ञ जी आप के शब्द आपके नाम के अनुरूप मर्मस्पर्शी है. इतनी सुन्दर कृति को सरल शब्दों में प्रस्तुत कर आपने सचमुच मेरा मन मोह लिया. बहुत बहुत साधुवाद! अश्विनी रॉय
sach mei , kisi bhi baat k liye rona bekar hai...is se behtar , kuchh karna uchit hai...achchhi rachna ki badhayi...
रातों की स्याही है,धूप का निखार है,
यार यही जीवन है, रोना बेकार है ..
बहुत खूब ... सच कहा है ... रोने से क्या लाभ ....
भाषा और शब्दों का चयन आपकी कविता की खूबसूरती में चार चाँद लगा गए
प्रेरक रचना। विचारोत्तेजक।
समकालीन डोगरी साहित्य के प्रथम महत्वपूर्ण हस्ताक्षर : श्री नरेन्द्र खजुरिया
इन पत्थरों का पिघलना है बाकी,
कुछ कोशिशों का उछलना है बाकी,
बौना है आदमी, ऊँची दीवार है,
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!
nice creation.
सारगर्भित टिप्पणियां ही मनोबल बढाती हैं ! सार्थक टिप्पणियों के लिए आप सभी का हृदय से आभार प्रकट करता हूँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
bahut khub
very nice achchhi kavita hai
.
आहट है चिंगारी, दस्तक हैं शोले,
कैसे उठें और दरवाज़ा खोलें,
बूढ़ी है अभिलाषा, आशा बीमार है!
यार यही जीवन है, रोना बेकार है!...
I am loving the beautiful and inspiring philosophy in this poem.
The life thus moves on...
.
बहुत ही सुन्दर रचना .
बधाई
very well said Gyan Bhai - Badhai ho !!
बहुत खूब ,,,,
हार्दिक शुभकामनायें !
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