गिर पड़े आसमाँ न ज़मीं पर,
अब सुनाता हूँ मैं वो कहानी!
सुन सकोगे जो मासूम चीख़ें,
सूख जाएगा आँखों का पानी!
वक़्त भी सोच कर गड़ गया है,
हो गए कैसे इंसां कसाई!
देख कर नन्हें फूलों से बच्चे,
इनको थोड़ी दया भी न आई!
छोटी छोटी अंगुलियाँ न देखो,
हादसों की सिसकियाँ बड़ी हैं!
माँ के आँचल में छुपने को आतुर,
नन्हें बच्चों की लाशें पड़ी हैं!
अब हँसेंगे खिलौनें कभी ना,
अब न बन्दर चलेगा ठुमक कर!
माँ ने सपनें सँजो कर बुने जो,
रोयेगा सर्दियों में वो स्वेटर!
मौत के बाद भी कुछ भरम था,
होंठ उसका अभी भी नरम था!
था कलेजे का मासूम टुकड़ा,
लाश ठंडी थी पर खूं गरम था!
........ अगले अंकों में जारी
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
60 टिप्पणियां:
अब हँसेंगे खिलौनें कभी ना,
अब न बन्दर चलेगा ठुमक कर!
माँ ने सपनें सँजो कर बुने जो,
रोयेगा सर्दियों में वो स्वेटर!
Aah! Aakhon me anayas paanee bhar aaya!
उफ़! रौंगटे खडे हो गये……………बेहद मार्मिक्।
खौफनाक मंज़र ....बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति
प्रिय मर्मज्ञ जी,
इंटरनेट की सुविधा से न जुड़े होने के कारण प्रतिदिन आपका मेल नहीं देख पाता हूँ। इसके लिए क्षमा करेंगे। आपकी कविताओं में आपकी प्रतिभा स्पष्ट दिखती है। आपसे क्षमा याचना के साथ केवल इतना ही आग्रह करूँगा कि छन्द में वार्णिक या मात्रिक वृत्त का अवश्य ध्यान रखें जिससे कविता में प्राञ्जलता भंग न हो।
माँ ने सपनें सँजो कर बुने जो,
रोयेगा सर्दियों में वो स्वेटर!
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति !
मार्मिक।
आखिरी मुक्तक में बेहद खौफनाक नज़ारा है ।
बहुत ही दिलकश अंदाज़ में आपने समाज़ की काली तस्वीर सामने रखी है !
जैसे सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं में एक प्रकार की चित्रात्मक लयबद्धता दिखती है,कुछ वैसा ही महसूस हुआ। अगली कड़ियों का इंतज़ार है।
छोटी छोटी अंगुलियाँ न देखो,
हादसों की सिसकियाँ बड़ी हैं!
माँ के आँचल में छुपने को आतुर,
नन्हें बच्चों की लाशें पड़ी हैं!
.......... उफ़ ... बेहद मार्मिक... !
इस से अधिक कुछ कहा नहीं जा रहा... !
... prasanshneey rachanaa !!!
छोटी छोटी अंगुलियाँ न देखो,
हादसों की सिसकियाँ बड़ी हैं!
माँ के आँचल में छुपने को आतुर,
नन्हें बच्चों की लाशें पड़ी हैं!
आतंक के बाद के दृश्य को बहुत ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है आपने, पढ़कर मन द्रवित हो गया।
वक़्त भी सोच कर गड़ गया है,
हो गए कैसे इंसां कसाई!
देख कर नन्हें फूलों से बच्चे,
इनको थोड़ी दया भी न आई ...
क्या जबरदस्त चल रही है ये रचना ... आतंकियों का दिल नहीं दहलता ये सब करते हुवे .... रोंगटे खड़े करने वाली रचना है ......
क्षमा जी,वंदना जी, संगीता जी,पुरुषोत्तम राय जी,सुनील जी,डा.टी.यस .दराल जी,जगदीश जी,कुमार राधारमण जी,करन जी,उदय जी,महेंद्र वर्मा जी,दिगंबर नासवा जी!
आप सभी का मेरा मनोबल बढ़ाने हेतु आभार प्रकट करता हूँ !
आप सबका स्नेहाकांक्षी,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
छोटी छोटी अंगुलियाँ न देखो,
हादसों की सिसकियाँ बड़ी हैं!
माँ के आँचल में छुपने को आतुर,
नन्हें बच्चों की लाशें पड़ी हैं!
आतंकवाद कितना भ्यावह है आपकी रचना ने बखुबी ब्याँ किया है। सच मी ये रचनायें पढ कर आँखें नम हो गयी हमेशा की तरह दिल से लिखा है आपने। शुभकामनायें।
आतंकवादीय सच का मार्मिक चित्रण।
पढकर पत्थर का कलेजा भी काँप जाता है.. कैसे निर्मम होंगे वो जिनपर कोई असर नहीं होता!!
ज्ञान चंद जी, अद्भुत शैली है, द्रश्य उओअस्थित ही जाता है और रौंगटे खड़े हो जाते हैं!!
बेहतर कलम है आपकी पर इतना भयावह न लिखें तो अच्छा रहेगा भाई जी ! ख़ास तौर पर बच्चों पर......
सादर
आपकी इस सुन्दर और सशक्त रचना की चर्चा
आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/375.html
.
ज्ञान जी,
बेहतरीन तरीके से यथार्थ को चित्रित किया है। सच तो शायद इससे भी कहीं ज्यादा भयावह है। आत्मा को झंझोड़ देने की क्षमता रखने वाली उम्दा रचना के लिए आभार।
सादर,
दिव्या।
.
bilkul sahi likha hai aapne in aatank failane valon ko bachchon par bhi daya nahi aati .mere blog ''vichronkachabootra''par aane ke liye hardik dhanywad .
भयानक मंजर उभारा है ... दिल को झकझोरने वाला मंजर ... आपमें बहुत ज्यादा प्रतिभा है और वो आपकी रचनाओं से साफ़ पता चलता है ...
मार्मिक चित्रण...
आँखें नम हैं!
कैसे और क्या लिखुं आपके लिखे पर , कुछ समझ नहीं आता । मर्म ऐसा की सहा भी नहीं जाता । खून खौल उठता है कि उन दरिन्दों के सर कलम कर दूं , जिन्होनें अपने शैतानी सरों को छिपाने सफ़ेद टोपियाँ पहन रखीं हैं … नमन करता हूँ माँ सरस्वती को , जो यहाँ बसी है आपकी कलम में और उन हजारों हजार माँओं को जो आपके अन्तरमन में बसीं हैं। नमन। "खबरों की दुनियाँ"।
छोटी छोटी अंगुलियाँ न देखो,
हादसों की सिसकियाँ बड़ी हैं!
माँ के आँचल में छुपने को आतुर,
नन्हें बच्चों की लाशें पड़ी हैं!
बड़ा सजीव और मार्मिक चित्रण है आतंकवाद का.आपकी लेखनी दमदार है भाई
यथार्थ का मार्मिक चित्रण आपने बखूबी किया है। शुभकामनायें।
लाश ठंडी थी पर खूं गरम था!
Gahrai se dard ki abhivyakti hai is rachna me, aatankwaad ki khofnak dastan...
कुछ दिन इन्टरनेट से अनुपस्थित रहने की सजा हर जगह से मिल रही है...देखिये आपके भी पिछले तीन पोस्ट्स एक साथ पढ़ गया..
आतंकवाद पे एक सीरीज जारी किया जा सकता है, कभी सोचा नहीं था...
सही में रोंगटे खड़े हो जाते हैं...
निर्मला जी,प्रवीण जी,सलिल जी,सतीश जी,डा.रूपचंद जी,दिव्या जी,शिखा जी,इन्द्रनील जी,अनुपमा जी,आशुतोष जी,कुसुमेश जी,शरद जी,संध्या जी और अवि जी,
आप सभी का ब्लॉग पर स्वागत करते हुए हृदय से धन्यवाद प्रेषित करता हूँ !
आप के स्नेह से अभिभूत हूँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आँखे नम हो गयी
बहुत अच्छी रचना है... हमेश अहि आपकी रचनाएँ यथार्थ को बहुत अच्छे से प्रस्तुत कर देतीं हैं...
अंत की पंक्तियों न तो दिल निकाल लिया...
एक सच का मार्मिक चित्रण .
अन्दर तक आहत कर जाते भाव!!
अच्छी अभिव्यक्ती.
उफ! बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है... पलकें गीलीं हो गईं मर्मज्ञ जी।
aise prajjwalit mudde par aapki ye samvednaayein aur bhaawnaayein qaabil-e-tareef hain gcm ji....
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है। एक कटु यथार्थ का सुन्दर एवं सवेदनशील चित्रण
मानवीय संवेदना का एक यथार्थ पक्ष.......जीवन संघर्ष का एक मार्मिक पहलू..............बहुत कुछ है आपकी कविता में।
यही क्रौञ्च वध की व्यथा है जिसे सदा वाल्मीकिरूपी कवि अपनी वाणी देता है और अपने मानसिक सन्ताप एवं करुणा से मुक्ति पाता है।
बहुत ही मार्मिक!
समयानुकूल और भावपूर्ण कबिता अच्छी अभिब्यक्ति के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
भाव पूर्ण मार्मिक अभिब्यक्ति---.
hi sir ...
aap ka blog bahut aacha hai kuch sachyi biyan karta hai....
http://punjabismsshayari.blogspot.com
yeh hamara blog hai kabhi time lage to aajaiya kariya ga shayari k liye
मौत के बाद भी कुछ भरम था,
होंठ उसका अभी भी नरम था!
था कलेजे का मासूम टुकड़ा,
लाश ठंडी थी पर खूं गरम था
upar likhi sari tippaniyon ke bhaavoN ka samavesh hi meri tippani hai ...NI:shaabd karti panktiyan
ओह....निःशब्द हूँ.....
कुछ नहीं कहने को मेरे पास...
आपकी लेखनी को नमन !!!!
…बेहद मार्मिक्
छोटी छोटी अंगुलियाँ न देखो,
हादसों की सिसकियाँ बड़ी हैं!
माँ के आँचल में छुपने को आतुर,
नन्हें बच्चों की लाशें पड़ी हैं!
रौंगटे खडे हो गये........
rongte khade kardene wala aakho dekha thryushy sa samne aa gaya ....itana jeevant prastutikaran raha......
Bahut khoob.
'मौत के बाद भी कुछ भरम था,
होंठ उसका अभी भी नरम था!
था कलेजे का मासूम टुकड़ा,
लाश ठंडी थी पर खूं गरम था!'
झकझोरने वाली पंक्तियाँ हैं. मार्मिक रचना.
माँ ने सपनें सँजो कर बुने जो,
रोयेगा सर्दियों में वो स्वेटर!
बहुत मार्मिक वर्णन, आखिरी बंद तो बस...वेदना दे गया....
पवन जी,पूजा जी,शिखा जी,सुज्ञ जी,लोकेन्द्र जी,सुरेन्द्र जी,ममता जी,मुकेश जी,P.N.सुब्रमनियम जी,बेनामी जी,दीर्घतमा जी,निर्झर नीर जी,अरुणेश जी,मंजुला जी,अपनात्वा जी,भूषन जी और वीना जी
आप सभी का आभार प्रकट करते हुए बड़ी प्रसन्नता हो रही है !
आपके विचार ही मेरी उर्जा है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
वाह ज्ञानचंद जी,
आपकी इन रचनाओ पर आपको मेरा सलाम|
मर गए सपने , मर गए मन के कुछ हिस्से , अभिव्यक्ति जानदार है ...
hriday hil jata hai..
bahut hi marmlk panktiyan..
बहुत ही मार्मिक चित्रण।
भाई ज्ञान चंद मर्मज्ञ जी, आतंकवाद को लेकर बहुत ही सशक्त प्रस्तुति है ये| वाकई काफ़ी विचारोत्तेजक और सोचने पर विवश करती है ये काव्य कृति| आपकी रचानाधर्मिता को सादर नमन|
"मौत के बाद भी कुछ भरम था,
होंठ उसका अभी भी नरम था!
था कलेजे का मासूम टुकड़ा,
लाश ठंडी थी पर खूं गरम था!"अत्यंत मार्मिक लेखन है आपका, ठीक मर्मज्ञ जी के अनुरूप. बहुत बहुत साधुवाद. अश्विनी रॉय
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
इमरान जी,शारदा जी,सुरेन्द्र जी,मनोज जी, नवीन जी,अश्विनी जी और राजीव जी ,
आप सभी का मेरा मनोबल बढाने हेतु धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
आशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.
आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं
सादर
डोरोथी
अब हँसेंगे खिलौनें कभी ना,
अब न बन्दर चलेगा ठुमक कर!
माँ ने सपनें सँजो कर बुने जो,
रोयेगा सर्दियों में वो स्वेटर!
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...........अगली कड़ियों का इंतज़ार है।
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