कुछ बढ़ाई गई कुछ घटाई गई
कुछ बढ़ाई गई कुछ घटाई गई
ज़िन्दगी उम्र भर आज़माई गई
फेंक दो ऐ किताबें अंधेरों की हैं
जिल्द उजली किरन की चढ़ाई गई
जब भी आँखों से आँसू बहे जान लो
मुस्कराने की क़ीमत चुकाई गई
घेर ली रावनों ने अकेली सिया
और रेखा लखन की मिटाई गई
टांग देते थे जिन खूटीयों पे गगन
उनकी दीवारे हिम्मत गिराई गई
झील में डूबता चाँद देखा गया
और तारों पे तोहमत लगाईं गई
झूठ की एक गवाही को सच मानकर
हर सज़ा पे सज़ा फिर सुनाई गई
यूँ तो चिंगारियों में कोई दम न था
पर अदा बिजलियों की दिखाई गई
राम की मुश्किलों में हमेशा यहाँ
बेगुनाही की सीता जलाई गई
देश की हर गली में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई
-ज्ञानचन्द मर्मज्ञ
34 टिप्पणियां:
ग़ज़ल का एक-एक शे’र उम्दा है। यह न सिर्फ़ दिल को छूती है बल्कि दिमाग पर भी असर करती है।
दमदार पंक्तियाँ।
देश की हर गली में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई
यूँ तो पूरी गज़ल झंझोड देती है हर शेर एक कडवा सच पेश कर रहा है और ये आखिरी शेर ने तो गज़ब कर दिया कुछ कहने लायक ही नही छोडा।
7.5/10
बहुत खूब .. बहुत खूब
क्या बेहतरीन ग़ज़ल लिख दी आपने
"कुछ बढ़ाई गई कुछ घटाई गई
ज़िन्दगी उम्र भर आज़माई गई "
हर शेर बेहतरीन .. वाह :
"झील में डूबता चाँद देखा गया
और तारों पे तोहमत लगाईं गई "
गजब ढा दिया जनाब :
"यूँ तो चिंगारियों में कोई दम न था
पर अदा बिजलियों की दिखाई गई "
और आखिर में तो लूट ही लिया :
"देश की हर गली में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई "
मनोज जी,प्रवीन जी,वंदना जी और उस्ताद जी,
हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
घेर ली रावनों ने अकेली सिया
और रेखा लखन की मिटाई गई
झील में डूबता चाँद देखा गया
और तारों पे तोहमत लगाईं गई
बहुत बधाई इस लाजवाब ग़ज़ल पर ... कमाल के श्वेर निकाले हैं सुभान अल्ला ....
वाह...वाह...वाह...
और क्या कहूँ....
बस लाजवाब !!!!
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विरले ही कोई इतनी गहराई से हकीकत को उतार पाता है अपनी रचनाओं में। सच को बयान करती बेहतरीन रचना। आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ। आना सफल हो गया।
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बेहतरीन गज़ल है सर
wah. bahut sunder likhe hain aap.
"यूँ तो चिंगारियों में कोई दम न था
पर अदा बिजलियों की दिखाई गई "
वाह क्या शेर है, बधाई
बहुत बढ़िया गज़ल ....
हर शेर सोचने पर मजबूर करता हुआ
राम की मुश्किलों में हमेशा यहाँ
बेगुनाही की सीता जलाई गई
बहुत बढिया कटाक्ष है।
"कुछ बढ़ाई गई कुछ घटाई गई ज़िन्दगी उम्र भर आज़माई गई" दमदार ग़ज़ल लिख दी आपने. बहुत बहुत बधाई इस लाजवाब रचना के लिए!
जब भी आँखों से आँसू बहे जान लो
मुस्कराने की क़ीमत चुकाई गई
क्या बात कही है .
देश की हर गली
में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई
जबर्दस्त्त...
aanand aa gya sahab....
sसब से पहले काव्य संग्रह छपने के लिये बधाई। गज़ल दिल को छू गयी हर शेर उमदा भाव लिये।
जब भी आँखों से आँसू बहे जान लो
मुस्कराने की क़ीमत चुकाई गई
घेर ली रावनों ने अकेली सिया
और रेखा लखन की मिटाई गई
वाह बहुत खूब।
"झील में डूबता चाँद देखा गया
और तारों पे तोहमत लगाईं गई"
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति.
ज़िन्दगी उम्र भर आज़माई गई
jindagi roj hi aajmai jaati hai.
मन को छूने वाली हैं सभी पंक्तियाँ..... बहुत सुंदर
मन को छू गई...एक बेहतरीन ग़ज़ल..।
एक सशक्त रचना के लिए मेरी हार्दिक बधाई...।
देश की हर गली में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई
बहुत सुन्दर गज़ल है. बधाई.
मैं सभी पाठकों एवं शुभचिंतकों को प्रोत्साहित करने हेतु धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
ये हम सब के अनुभव की बाते हैं मगर आम आदमी जिस अभिव्यक्ति के लिए शब्द और शैली नहीं ढूंढ पाता,कवि-हृदय उसे सहजता से करता है।
very nice
Dil aur dimag ko sparsh karti hui aapki yeh Gazal antarman mein sthayi roop sthapit karne mein aapki abhivyakati purnrupen saphal sidh rahi. Marmik aur sargarbhit post ke liye dhanyavad.mere blog par aap amantrit hain.
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा।
..अच्छी गज़ल।
laajawab panktiyan!
sundar rachna!
ज्ञान जी आपकी पूरी प्रोफाइल देखी ....सम्मान भी और गजलें भी ....
बहुत ही उम्दा लेखन है आपका ....और लेखन के अनुसार सम्मान भी ....बधाई ....!!
फेंक दो ऐ किताबें अंधेरों की हैं
जिल्द उजली किरन की चढ़ाई गई
बहुत बढिया शे'र ......
बिलकुल न्य और तजा ......
पर मुझे लगा फेंक दो ऐ की जगह फेंक दो ये किताबें होता तो ज्यादा अच्छा लगता ....
झूठ की एक गवाही को सच मानकर
हर सज़ा पे सज़ा फिर सुनाई गई
बहुत उम्दा .....वाह .....!!
देश की हर गली में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई
लाजवाब ......!!
गज़ब का लिखते हैं आप .....!!
स्वागत है ....!!
सोच रही हूँ क्या लिखूं. सब कुछ तो सभी ने लिख दिया. आपके ब्लॉग पर आकार बहुत अच्छा लगा. एक से बढ़ कर एक ग़ज़ल हैं सभी.
देश की हर गली में भटकती मिली
वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गई
लाजवाब !!
टूट कर जो गिर गये, वो तारे कहाँ मिलते हैं,
नदी की उम्र तक किनारे कहाँ मिलते हैं,
ढूढने वालों बस एक बात याद रख लेना,
वक्त की राख में अंगारे कहाँ मिलते हैं!
......
बेहतरीन ग़ज़ल !
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झील में डूबता चाँद देखा गया
और तारों पे तोहमत लगाईं गई
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बेहतरीन ग़ज़ल
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ghazal muktak kavita sab kuch padha...bahut anand aaya....is ghazal ne to man moh liya jane kitni baar padhunga ise.... aapka bahut bahut dhanyawad meri ghazal ko waqt dene ke liye
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